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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 45 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 45/ मन्त्र 3
    ऋषिः - शुनःशेपः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-४५
    38

    ऊ॒र्ध्वस्ति॑ष्ठा न ऊ॒तये॒ऽस्मिन्वाजे॑ शतक्रतो। सम॒न्येषु॑ ब्रवावहै ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ऊ॒र्ध्व: । ति॒ष्ठ॒ । न॒: । ऊ॒तये॑ । अ॒स्मिन् । वाजे॑ । श॒त॒क्र॒तो॒ । इति॑ शतऽक्रतो ॥ सम् । अ॒न्येषु॑ । ब्र॒वा॒व॒है॒ ॥४५.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऊर्ध्वस्तिष्ठा न ऊतयेऽस्मिन्वाजे शतक्रतो। समन्येषु ब्रवावहै ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ऊर्ध्व: । तिष्ठ । न: । ऊतये । अस्मिन् । वाजे । शतक्रतो । इति शतऽक्रतो ॥ सम् । अन्येषु । ब्रवावहै ॥४५.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 45; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    सभापति के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (शतक्रतो) हे सैकड़ों कर्मों वा बुद्धियोंवाले (नः) हमारी (ऊतये) रक्षा के लिये (अस्मिन्) इस (वाजे) सङ्ग्राम में (ऊर्ध्वः) ऊपर (तिष्ठ) ठहर, (अन्येषु) दूसरे कामों पर (सम्) मिलकर (ब्रवावहै) हम दोनों बात करें ॥३॥

    भावार्थ

    विद्वान् लोग प्रजापालक सेनापति से बात-चीत करके कर्तव्य को करते हुए और अकर्तव्य को छोड़ते हुए युद्ध में विजय प्राप्त करें ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(ऊर्ध्वः) उन्नतः (तिष्ठ) (नः) अस्माकम् (ऊतये) रक्षायै (अस्मिन्) (वाजे) संग्रामे (शतक्रतो) बहुकर्मन्। बहुप्रज्ञ (सम्) मिलित्वा (अन्येषु) युद्धाद् भिन्नविषयेषु (ब्रवावहै) आवां विचारयाव ॥

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    विषय

    प्रभु-प्रेरणा से कार्य करें

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र का सौम्य पुरुष प्रभु से प्रार्थना करता है कि हे (शतक्रतो) = अनन्त प्रज्ञानवाले प्रभो! (अस्मिन् वाजे) = इस जीवन-संग्राम में (नः ऊतये) = हमारे रक्षण के लिए (ऊर्ध्व:तिष्ठ) = आप सदा ऊपर स्थित हों-जागरित रहें। हमें सदा आपका रक्षण प्राप्त हो। २. हम (अन्येषु) = जीवन के अन्य सब कार्यों में भी सं (ब्रवावहै) = मिलकर बात कर लें, अर्थात् आपसे पूछकर-अन्त:स्थित आपकी प्रेरणा को लेकर ही हम सब कार्यों को करनेवाले हों।

    भावार्थ

    सौम्य पुरुष सदा संग्राम में प्रभु से रक्षणीय होता है। यह प्रभु-प्रेरणा से प्रेरित होकर ही सब कार्यों को करता है। हृदयान्तरिक्ष में सदा क्रियाशीलता की भावनावाला यह 'इरिम्बिठि' कहाता है। यह इस रूप में इन्द्र का स्तवन करता है

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    भाषार्थ

    (शतक्रतो) हे सैकड़ों अद्भूत कर्मोंवाले परमेश्वर! (अस्मिन्) इस (वाजे) आत्मिक-शक्ति की प्राप्ति के निमित्त, (नः) हमारी (ऊतये) रक्षा के लिए, (ऊर्ध्वः तिष्ठ) आप सदा उद्यत रहिए। हम दोनों अर्थात् आप और मैं (समन्येषु) पारस्परिक मननयोग्य कार्यों में (ब्रवावहै) परस्पर बातचीत किया करें।

    टिप्पणी

    [समन्येषु=समनम्, समननम्, संमाननम् (निरु০ ७.४.१७)। ब्रवावहै=आत्मिक बातचीत, न कि वाचिक।]

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    विषय

    आत्मा परमात्मा

    भावार्थ

    हे (शतक्रतो) सैकड़ों प्रज्ञाओं और कर्मों से युक्त शतक्रतो ! तू (अस्मिन् वाजे) इस संग्राम, या बलयुक्त कार्य में (नः ऊतये) हमारी रक्षा के लिये (ऊर्ध्वः) सर्वोपरि विराजमान होकर (तिष्ठ) रह। हम दोनों गुरु शिष्य और स्त्री पुरुष और प्रजा राजा दोनों (अन्येषु) सब प्रजाजन अन्य शत्रुओं के निवारणार्थ (सं ब्रवावहै) परस्पर मिलकर एक दूसरे को उपदेश करें, कथोपकथन करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    देवरातः शुनः शेष ऋषिः। इन्द्रो देवता। गायत्र्यः। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    India Devata

    Meaning

    Indra, hero of a hundred great acts of yajnic creation, rise and stay high for our defence and protection in this battle of life. And we would sing your praises in prayer with joy in other battles too together with you.

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    Translation

    O mighty ruler, O lord of hundred powers, you stand up for our protection in this battle and let us agree in others too.

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    Translation

    O mighty ruler, O lord of hundred powers, you stand up for our protection in this battle and let us agree in others too.

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    Translation

    O Lord of hundreds acts and sacrifices, lettest Thou stand far above all for our protection and shelter in this great struggle of life. Let us both counsel together in other things, too.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(ऊर्ध्वः) उन्नतः (तिष्ठ) (नः) अस्माकम् (ऊतये) रक्षायै (अस्मिन्) (वाजे) संग्रामे (शतक्रतो) बहुकर्मन्। बहुप्रज्ञ (सम्) मिलित्वा (अन्येषु) युद्धाद् भिन्नविषयेषु (ब्रवावहै) आवां विचारयाव ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    সভাধ্যক্ষকৃত্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (শতক্রতো) হে শতকর্মযুক্ত বা বুদ্ধিযুক্ত (নঃ) আমাদের (ঊতয়ে) রক্ষার জন্য (অস্মিন্) এই (বাজে) সংগ্রামে (ঊর্ধ্বঃ) উপরে (তিষ্ঠ) স্থির/স্থিত হও, (অন্যেষু) অন্য কর্মে (সম্) মিলে মিশে (ব্রবাবহৈ) আমরা উভয়ে চর্চা করবো ॥৩॥

    भावार्थ

    বিদ্বানগন প্রজাপালক সেনাপতির সাথে পরামর্শ করে কর্তব্য করে এবং অকর্তব্য ত্যাগ করে যুদ্ধে বিজয় প্রাপ্ত করুক ॥৩॥

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    भाषार्थ

    (শতক্রতো) হে শত অদ্ভূত কর্মযুক্ত পরমেশ্বর! (অস্মিন্) এই (বাজে) আত্মিক-শক্তির প্রাপ্তির জন্য, (নঃ) আমাদের (ঊতয়ে) রক্ষার জন্য, (ঊর্ধ্বঃ তিষ্ঠ) আপনি সদা উদ্যত থাকুন। আমরা অর্থাৎ আপনি এবং আমি (সমন্যেষু) পারস্পরিক মননযোগ্য কার্যে (ব্রবাবহৈ) পরস্পর বিবৃতি/কথোপকথন/বার্তালাপ করি।

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