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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 48 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 48/ मन्त्र 3
    ऋषिः - खिलः देवता - गौः, सूर्यः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-४८
    46

    वज्रा॑पव॒साध्यः॑ की॒र्तिर्म्रि॒यमा॑ण॒माव॑हन्। मह्य॒मायु॑र्घृ॒तं पयः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वज्रा॑पव॒साध्य॑: । की॒र्ति: । म्रि॒यमा॑ण॒म् । आव॑हन् ॥ मह्य॑म् । आयु॑: । घृ॒तम् । पय॑: ॥४८.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वज्रापवसाध्यः कीर्तिर्म्रियमाणमावहन्। मह्यमायुर्घृतं पयः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वज्रापवसाध्य: । कीर्ति: । म्रियमाणम् । आवहन् ॥ मह्यम् । आयु: । घृतम् । पय: ॥४८.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 48; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    १-३ परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

    पदार्थ

    (वज्रापवसाध्यः) शस्त्रों के शोधनेवालों [उजले शस्त्रवालों] की सिद्धि करनेवाला, (कीर्तिः) कीर्तिरूप [बड़े ही यश वाला, परमेश्वर] (मह्यम्) मेरे लिये (म्रियमाणम्) नष्ट होते हुए (आयुः) जीवन, (घृतम्) घी [वा जल] और (पयः) दूध [वा अन्न] को (आवहन्) यथावत् लाता हुआ है ॥३॥

    भावार्थ

    जब हम किसी विपत्ति से निर्बल होकर अति दुःखी होवें, तब हम उस जगत्पालक परमात्मा का आश्रय लेकर शस्त्र आदि कर्तव्य ठीक करके कार्यसिद्धि करें ॥३॥

    टिप्पणी

    सूचना−पं० सेवकलाल कृष्णदास परिशोधित संहिता के अनुसार इस मन्त्र का यह पाठ है−उ॒ग्राय॑ य॒शसो॒ धियः॑ की॒र्तिमि॑न्द्रि॒यमा व॑हान्। मह्य॒मायु॑र्घृ॒तं॒ पयः॑ ॥३॥ (यशसः) यशस्वी [परमेश्वर] (उग्राय मह्यम्) मुझ तेजस्वी के लिये (धियः) बुद्धियाँ (कीर्तिम्) कीर्ति [बड़ाई], (इन्द्रियम्) ऐश्वर्य, (आयुः) जीवन, (घृतम्) घी [वा जल] (पयः) दूध [वा अन्न] (आ) अच्छे प्रकार (वहान्) लावे ॥३॥मनुष्य परमेश्वर का आश्रय लेकर उत्तम विद्याएँ पाकर आवश्यकीय पदार्थ पावे ॥३॥ ३−(वज्रापवसाध्यः) वज्र+आ+पूञ् शोधने-अप्। ऋहलोर्ण्यत्। पा० ३।१।१२४। साध संसिद्धौ-ण्यत्। कृत्यल्युटो बहुलम्। पा० ३।३।११३। इति कर्तरि प्रत्ययः। साध्याः साधनात्-निरु० ८।४०। वज्राणां शस्त्राणाम्। आपवानां संशोधकानां साध्यः साधकः सिद्धिकर्ता (कीर्तिः) यशोरूपः परमेश्वरः (म्रियमाणम्) विनश्यमानम् (आवहन्) आ समन्ताद् वहन् प्रापयन् वर्तते (मह्यम्) उपासकाय (आयुः) जीवनम् (घृतम्) आज्यं जलं वा (पयः) दुग्धमन्नं वा ॥ ३−(उग्राय) तेजस्विने (यशसः) अर्शआद्यच्। यशस्वी परमात्मा (धियः) प्रज्ञाः (कीर्तिम्) यशः (इन्द्रियम्) ऐश्वर्यम् (आ) समन्तात् (वहान्) लेट्। वहेत्। प्रापयेत् (मह्यम्) उपासकाय। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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    विषय

    आयुः, घृतं, पयः

    पदार्थ

    १. (वज्र आपव-साध्यः) = [वज गतौ, पू पवने] क्रियाशीलता व पवित्रता के द्वारा सिद्ध होनेवाला (कीर्तिः) = यश (म्रियमाणम्) = युद्ध में प्राणत्याग करनेवाले को (आवहन्) = स्वर्ग में प्राप्त करानेवाला हो। जीवन में हम क्रियाशील बनें तथा पवित्रता को सिद्ध करें। इसप्रकार यशस्वी जीवनवाले हों। इस जीवन-संग्राम में वीरतापूर्वक प्राणत्यागनेवाले हों। वह जीवन हमें स्वर्ग प्राप्त करानेवाला हो २. (मह्यम्) = मुझे इस जीवन में (आयु:) = दीर्घ जीवन प्राप्त हो (घृतम्) = ज्ञान की दीप्ति व मलों का क्षरण, अर्थात् निर्मलता प्राप्त हो [घृक्षरणदीसयोः], (पयः) = मुझे सब शक्तियों का आप्यायन प्राप्त हो।

    भावार्थ

    मेरा यह जीवन सुन्दर बने तथा परलोक में भी मुझे उत्तम गति प्राप्त हो।

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    भाषार्थ

    (कीर्तिः) प्रभु का कीर्तन, (आयुः) पवित्र आयु, (घृतम्) घृतसमान वीर्य, (पयः) तथा वेदमाता का ज्ञान दुग्ध, इनमें से प्रत्येक, जो कि (वज्रापवसाध्यः) पापों के प्रति वज्रसमान है तथा आपूत वेदवाणी द्वारा साध्य है—ये सब (मह्यम्) मुझे प्राप्त हुए हैं, और ये सब, (म्रियमाणम्) विषयविषों द्वारा मरे जाते हुए मुझ को, हे परमेश्वर! आपके प्रति (आवहन्) ले आये हैं।

    टिप्पणी

    [घृतम्=रेतः, वीर्य। यथा—“रेतः कृत्वा आज्यं देवाः पुरुषमाविशन्” (अथर्व০ ११.८.२९)। कीर्ति और आयु का साधन वेदवाणी, यथा—स्तुता मया वरदा वेदमाता प्र चोदयन्तां पावमानी द्विजानाम्। आयुः प्राणं प्रजां पशुं कीर्त्तिं द्रविणं ब्रह्मवर्चसं, मह्यं दत्त्वा व्रजत ब्रह्मलोकम्” (अथर्व০ १९.७१.१)।]

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    विषय

    ईश्वरोपासना।

    भावार्थ

    कृष्णलाल शोधित-संहितानुसारं ग्रीफिथ सम्मतश्च संहितापाठस्तु— भा० - प्रथम पाठ के अनुसार (वज्रापवसाध्यः ?) (कीर्त्तिः) और कीर्त्ति (म्रियमाण) मरते हुए पुरुष को भी (आवहन्) प्राप्त कराती है। और (मह्यम्) मुझे (आयुः घृतम् पयः) दीर्घ जीवन, घृत, तेज और पुष्टिकारक अन्न (आवहन्) प्राप्त करावें। द्वितीय पाठ के अनुसार—(यशसः) यश, वीर्यजनक (धियः) बुद्धियां और कर्म (उग्राय) बलवान् पुरुष को (कीर्त्तिम्) कीर्त्ति और (इन्द्रियम्) इन्द्र का परमैश्वर्य युक्त पद (आवहान्) प्राप्त कराते हैं और (मह्यम्) मुझ राष्ट्र के प्रजाजन को (आयुः घृतं पयः) दीर्घ जीवन, तेज और अन्न प्रदान करते हैं। अर्थात् वीर कर्मों से बलवान् पुरुष को कीर्त्ति और साम्राज्य प्राप्त होता है, और प्रजा को जीवन रक्षा, बल और अन्न प्राप्त होता है। (प्र०) ‘वज्रापय साध्यः’ ‘वज्रायवसाध्यः’ इति पाठभेदौ (द्वि०) ‘मावहान’ ‘कीर्त्तिप्रि’ इति च पाठभेदौ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १-३ इन्द्रः। ४-६ सार्पराज्ञी सूर्यो वा देवता। गायत्र्यः। षडृचं सूक्तम्॥ ‘अभित्वा’ इति द्वाभ्यां सूक्ताभ्यां खिलौ इति बृहत् सर्वा०।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    Words of divine adoration and the discipline of diamond purity, thunder power and razor edge dedication have blest the mortal me with good health and full age, liquid refinement of love and courtesy and the life-giving milk of mother Veda.

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    Translation

    The fame which is to be attained through strength and vigour (Vajra) and the purities should bring corn (Ayuh) ghee and milk to me kill the time I am to die.

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    Translation

    The fame which is to be attained through strength and vigor (Vajra) and the purities should bring corn (Ayuh) ghee and milk to me kill the time I am to die.

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    Translation

    The vital breaths, Prana and Apana produced through electrolysis and glorious energy revitalise the dying person even. Let them provide me too, with long life, clarified butter and milk (nourishing drinks). Or The vitalising deeds and intelligence invest a powerful and daring person with glory and fortune. Let them also provide me with a long life, nourishing food and drink like butter and milk.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    सूचना−पं० सेवकलाल कृष्णदास परिशोधित संहिता के अनुसार इस मन्त्र का यह पाठ है−उ॒ग्राय॑ य॒शसो॒ धियः॑ की॒र्तिमि॑न्द्रि॒यमा व॑हान्। मह्य॒मायु॑र्घृ॒तं॒ पयः॑ ॥३॥ (यशसः) यशस्वी [परमेश्वर] (उग्राय मह्यम्) मुझ तेजस्वी के लिये (धियः) बुद्धियाँ (कीर्तिम्) कीर्ति [बड़ाई], (इन्द्रियम्) ऐश्वर्य, (आयुः) जीवन, (घृतम्) घी [वा जल] (पयः) दूध [वा अन्न] (आ) अच्छे प्रकार (वहान्) लावे ॥३॥मनुष्य परमेश्वर का आश्रय लेकर उत्तम विद्याएँ पाकर आवश्यकीय पदार्थ पावे ॥३॥ ३−(वज्रापवसाध्यः) वज्र+आ+पूञ् शोधने-अप्। ऋहलोर्ण्यत्। पा० ३।१।१२४। साध संसिद्धौ-ण्यत्। कृत्यल्युटो बहुलम्। पा० ३।३।११३। इति कर्तरि प्रत्ययः। साध्याः साधनात्-निरु० ८।४०। वज्राणां शस्त्राणाम्। आपवानां संशोधकानां साध्यः साधकः सिद्धिकर्ता (कीर्तिः) यशोरूपः परमेश्वरः (म्रियमाणम्) विनश्यमानम् (आवहन्) आ समन्ताद् वहन् प्रापयन् वर्तते (मह्यम्) उपासकाय (आयुः) जीवनम् (घृतम्) आज्यं जलं वा (पयः) दुग्धमन्नं वा ॥ ३−(उग्राय) तेजस्विने (यशसः) अर्शआद्यच्। यशस्वी परमात्मा (धियः) प्रज्ञाः (कीर्तिम्) यशः (इन्द्रियम्) ऐश्वर्यम् (आ) समन्तात् (वहान्) लेट्। वहेत्। प्रापयेत् (मह्यम्) उपासकाय। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    ১-৩ অধ্যাত্মোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (বজ্রাপবসাধ্যঃ) শস্ত্রসমূহ শোধনকারীদের [উজ্বল শস্ত্রধারীদের] সিদ্ধকারী, (কীর্তিঃ) সেই কীর্তিরূপ [যশবান, পরমেশ্বর] (মহ্যম্) আমার জন্য (ম্রিয়মাণম্) নাশমান (আয়ুঃ) জীবন, (ঘৃতম্) ঘী [বা জল] এবং (পয়ঃ) দুধ [বা অন্নকে] (আবহন্) যথাবৎ আনা হয়েছে ॥৩॥

    भावार्थ

    যখন আমরা কোনো বিপত্তি দ্বারা নির্বল হয়ে অতিদুঃখী হব, তখন যেন আমরা সেই জগৎপালক পরমাত্মার আশ্রয় গ্রহণ করে শস্ত্রাদি কর্তব্য ঠিক করে কার্যসিদ্ধি করি ॥৩॥ সূচনা−পং০ সেবকলাল কৃষ্ণদাস পরিশোধিত সংহিতা অনুসারে এই মন্ত্রের পাঠ−উ॒গ্রায়॑ য॒শসো॒ ধিয়ঃ॑ কী॒র্তিমি॑ন্দ্রি॒য়মা ব॑হান্। মহ্য॒মায়ু॑র্ঘৃ॒তং॒ পয়ঃ॑ ॥৩॥ (যশসঃ) যশস্বী [পরমেশ্বর] (উগ্রায় মহ্যম্) তেজস্বী আমার জন্য (ধিয়ঃ) বুদ্ধি (কীর্তিম্) কীর্তি [প্রশংসা], (ইন্দ্রিয়ম্) ঐশ্বর্য, (আয়ুঃ) জীবন, (ঘৃতম্) ঘী [বা জল] (পয়ঃ) দুধ [বা অন্ন] (আ) উত্তমরূপে (বহান্) আনয়ন/বহন করেন॥৩॥মনুষ্য পরমেশ্বরের আশ্রয় গ্রহণ করে উত্তম বিদ্যা প্রাপ্ত করে আবশ্যকীয় পদার্থ প্রাপ্ত হোক ॥৩॥

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    भाषार्थ

    (কীর্তিঃ) প্রভুর কীর্তন, (আয়ুঃ) পবিত্র আয়ু, (ঘৃতম্) ঘৃতসমান বীর্য, (পয়ঃ) তথা বেদমাতার জ্ঞান দুগ্ধ, এগুলোর মধ্যে প্রত্যেকটি, যা (বজ্রাপবসাধ্যঃ) পাপের প্রতি বজ্রসমান তথা বেদবাণী দ্বারা সাধ্য—এই সব (মহ্যম্) আমাকে/আমি প্রাপ্ত হয়েছে/হয়েছি, এবং এই সব, (ম্রিয়মাণম্) বিষয়বিষ দ্বারা মরণাপন্ন আমাকে, হে পরমেশ্বর! আপনার প্রতি (আবহন্) নিয়ে এসেছে।

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