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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 5 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 3
    ऋषिः - इरिम्बिठिः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-५
    77

    इन्द्र॒ प्रेहि॑ पु॒रस्त्वं विश्व॒स्येशा॑न॒ ओज॑सा। वृ॒त्राणि॑ वृत्रहं जहि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑ । प्र । इ॒हि॒ । पु॒र: । त्वम् । विश्व॑स्य । ईशा॑न: । ओज॑सा ॥ वृ॒त्राणि॑ । वृ॒त्र॒ऽह॒न्। ज॒हि॒ ॥५.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्र प्रेहि पुरस्त्वं विश्वस्येशान ओजसा। वृत्राणि वृत्रहं जहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्र । प्र । इहि । पुर: । त्वम् । विश्वस्य । ईशान: । ओजसा ॥ वृत्राणि । वृत्रऽहन्। जहि ॥५.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 5; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    सोम रस के सेवन का उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे इन्द्र ! [परम ऐश्वर्यवाले राजन् !] (ओजसा) अपने बल से (विश्वस्य) सबका (ईशानः) स्वामी (त्वम्) तू (पुरः) सामने से (प्र इहि) आगे बढ़। (वृत्रहन्) हे वैरियों के नाश करनेवाले ! (वृत्राणि) वैरियों को (जहि) नाश कर ॥३॥

    भावार्थ

    मनुष्य महाबली होकर आगे बढ़ता हुआ सब विघ्नों को मिटावे ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(इन्द्र) (प्र) प्रकर्षेण (इहि) गच्छ (पुरः) अग्रतः (त्वम्) (विश्वस्य) सर्वस्य (ईशानः) स्वामी (ओजसा) स्वबलेन (वृत्राणि) शत्रून् (वृत्रहन्) हे शत्रुनाशक (जहि) नाशय ॥

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    विषय

    प्रभु-स्मरण-शक्ति-वासनाविनाश

    पदार्थ

    १. हे (इन्द्र:) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो! (त्वम्) = आप (पुरः प्रेहि) = सदा हमारे सामने होइए। हम आपको कभी भूल न जाएँ। आप (ओजसा) = ओज के द्वारा (विश्वस्य) = सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के (ईशान:) = ईशान हैं। २. हे (वृत्रहन्) = हमारे ज्ञान की आवरणाभूत वासना को विनष्ट करनेवाले प्रभो! आप (चूत्राणि जहि) = वासनाओं को विनष्ट कीजिए। आपका स्मरण हमें वासनाओं से बचानेवाला है।

    भावार्थ

    हम सदा प्रभु का स्मरण करें-प्रभु को भूले नहीं। यह प्रभु-स्मरण हमें शक्ति देगा और हमारी वासनाओं को विनष्ट करेगा।

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    भाषार्थ

    (इन्द्र) हे परमेश्वर! (त्वम्) आप (प्रेहि) हमारे हृदयों में शीघ्र आइए, (पुरः) हमें दर्शन दीजिए। आप (ओजसा) दूसरों को नम्र कर देनेवाले निज पराक्रम द्वारा (विश्वस्य) ब्रह्माण्ड के (ईशानः) अधीश्वर हैं। (वृत्रहन्) हे राग-द्वेष काम-क्रोध आदि वृत्रों के हनन करनेवाले! आप (वृत्राणि) हमारे समग्र वृत्रों का (जहि) हनन कीजिए।

    टिप्पणी

    [ओजः=बलम्; उब्ज आर्जवे]

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    विषय

    ईश्वर और राजा का वर्णन।

    भावार्थ

    हे (वृत्रहन्) वारण करने वाले विपक्ष विघ्नों को नाश करने हारे इन्द्र ! ऐश्वर्यवान् परमेश्वर ! तु (ओजसा) ओज से, पराक्रस से (विश्वस्य ईशानः) समस्त विश्व को अपने वश करने और उसको संचालन करने में समर्थ होकर (त्वं पुरः प्रेहि) तू ही सबसे आगे चल। और (वृत्राणि) समस्त विघ्नों का (जहि) नाश कर। राजा या सेनापति—शत्रु नाशक होने से या राष्ट्र के विघ्नकारी लोगों को नाश करने हारा होने से ‘वृत्रहा’ है। वह अपने पराक्रम से समस्त राष्ट्र का स्वामी होकर सबसे आगे आगे चले और शत्रु बलों का नाश करे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    इरिम्बष्ठिर्ऋषिः। इन्द्रो देवता। गायत्र्यः। सप्तर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indr a Devata

    Meaning

    Indra, ruler and ordainer of the world by your power and splendour, come to us and, O dispeller of darkness, go forward, destroy the evils and adversities of ignorance, injustice and poverty.

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    Translation

    O king you dispeller of foes and ruler of all with power come forward and kill the wickeds.

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    Translation

    O. king you dispeller of foes and ruler of all with power come forward and kill the wickeds.

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    Translation

    O Lord of splendour, the Destroyer of all.the handicaps, ruling over the whole universe by Thy Valour and Prowess, Thou movest in front of all and effaces all the impediments,

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(इन्द्र) (प्र) प्रकर्षेण (इहि) गच्छ (पुरः) अग्रतः (त्वम्) (विश्वस्य) सर्वस्य (ईशानः) स्वामी (ओजसा) स्वबलेन (वृत्राणि) शत्रून् (वृत्रहन्) हे शत्रुनाशक (जहि) नाशय ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    সোমসেবনোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (ইন্দ্র) হে ইন্দ্র ! [পরম ঐশ্বর্যবান রাজন্ !] (ওজসা) নিজের শক্তি দ্বারা (বিশ্বস্য) সকলের (ঈশানঃ) স্বামী (ত্বম্) তুমি (পুরঃ) সামনে থেকে (প্র ইহি) অগ্রসর হও। (বৃত্রহন্) হে শত্রুদের বিনাশকারী ! (বৃত্রাণি) শত্রুদের (জহি) বিনাশ করো॥৩।।

    भावार्थ

    মনুষ্য মহা শক্তিশালী হয়ে অগ্রসর হয়ে সকল বিঘ্ন দূর করুক ॥৩॥

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    भाषार्थ

    (ইন্দ্র) হে পরমেশ্বর! (ত্বম্) আপনি (প্রেহি) আমাদের হৃদয়ে শীঘ্র আসুন, (পুরঃ) আমাদের দর্শন দিন। আপনি (ওজসা) অন্যদের নম্রকারী নিজ পরাক্রম দ্বারা (বিশ্বস্য) ব্রহ্মাণ্ডের (ঈশানঃ) অধীশ্বর। (বৃত্রহন্) হে রাগ-দ্বেষ কাম-ক্রোধ প্রভৃতি বৃত্র-সমূহের হননকারী! আপনি (বৃত্রাণি) আমাদের সমগ্র বৃত্র-সমূহের (জহি) হনন করুন।

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