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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 51 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 51/ मन्त्र 3
    ऋषिः - पुष्टिगुः देवता - इन्द्रः छन्दः - प्रगाथः सूक्तम् - सूक्त-५१
    36

    प्र सु श्रु॒तं सु॒राध॑स॒मर्चा॑ श॒क्रम॒भिष्ट॑ये। यः सु॑न्व॒ते स्तु॑व॒ते काम्यं॒ वसु॑ स॒हस्रे॑णेव॒ मंह॑ते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । सु । श्रु॒तम । सु॒ऽराध॑सम् । अर्च॑ । श॒क्रम् । अ॒भिष्ठ॑ये ॥ य: । सु॒न्व॒ते । स्तु॒व॒ते । काम्य॑म् । वसु॑ । स॒हस्रे॑णऽइव । मंहते ॥५१.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र सु श्रुतं सुराधसमर्चा शक्रमभिष्टये। यः सुन्वते स्तुवते काम्यं वसु सहस्रेणेव मंहते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । सु । श्रुतम । सुऽराधसम् । अर्च । शक्रम् । अभिष्ठये ॥ य: । सुन्वते । स्तुवते । काम्यम् । वसु । सहस्रेणऽइव । मंहते ॥५१.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 51; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    परमेश्वर की उपासना का उपदेश।

    पदार्थ

    (सु श्रुतम्) बड़े विख्यात, (सुराधसम्) सुन्दर धनों के देनेवाले, (शक्रम्) शक्तिमान् [परमेश्वर] को (अभिष्टये) अभीष्ट सिद्ध के लिये (प्र अर्च) अच्छे प्रकार पूज। (यः) जो [परमात्मा] (सुन्वते) तत्त्व निचोड़नेवाले, (स्तुवते) स्तुति करनेवाले को (काम्यम्) मनभावना (वसु) धन (सहस्रेण इव) सहस्र प्रकार से (मंहते) देता है ॥३॥

    भावार्थ

    परमात्मा अपने अनन्त भण्डार से अपने सेवकों की कामनाएँ पूरी करता है ॥३॥

    टिप्पणी

    मन्त्र ३, ४ ऋग्वेद में है-८।०।१, २ [सायणभाष्य परिशिष्ट, बालखिल्य]। १, २ ॥ ३−(प्र) प्रकर्षेण (सु) सुष्ठु (श्रुतम्) विख्यातम् (सुराधसम्) म० १। बहुधनदातारम् (अर्च) (शक्रम्) शक्तिमन्तम् (अभिष्टये) अभीष्टसिद्धये (यः) परमेश्वरः (सुन्वते) तत्त्वं संस्कुर्वते (स्तुवते) स्तुतिं कुर्वते (काम्यम्) कमनीयम्। मनोहरम् (वसु) धनम् (सहस्रेण इव) म० १। (मंहते) ददाति-निघ० ३।२० ॥

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    विषय

    काम्यं वसु

    पदार्थ

    १. उस (सुश्रुतम्) = उत्तम ज्ञानवाले, (सुराधसम्) = उत्तम ऐश्वयाँवाले (शक्रम्) = सर्वशक्तिमान् प्रभु को (अभिष्टये) = इष्ट-प्राप्ति के लिए अथवा वासनारूप शत्रुओं पर आक्रमण के लिए [अभिष्टि attack] प्र अर्च-प्रकर्षेण पूजित कर । प्रभु की अर्चना से वासनारूप शत्रुओं पर विजय प्राप्त करके हम भी उत्तम ज्ञान-ऐश्वर्य व शक्तिवाले बनेंगे। २. उस प्रभु का तू पूजन कर जोकि (सुन्वते) = यज्ञशील (स्तुवते) = स्तोता के लिए (काम्यं वसु) = कमनीय [चाहने योग्य] धन को (सहस्त्रेण इव) = हजारों के रूप में (मंहते) = देते हैं।

    भावार्थ

    प्रभु-पूजन से वासनाओं का विजय करके हम उत्तम ज्ञान-ऐश्वर्य व शक्ति को प्राप्त करें। ऐश्वर्य को प्रास करके हम यज्ञशील स्तोता बनें। इसप्रकार हम प्रभु के काम्य वसुओं की प्राप्ति के पात्र होंगे।

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    भाषार्थ

    हे उपासक! (अभिष्टये) अभीष्ट की प्राप्ति के लिए—(श्रुतम्) वेदों में सुने गये, (सुराधसम्) सुगमता से अभीष्ट-साधक, (शक्रम्) शक्तिशाली परमेश्वर की (प्र) प्रकर्षरूप में (सु) अच्छे प्रकार (अर्च) अर्चना किया कर, (यः) जो परमेश्वर कि (सुन्वते) भक्तिरसवाले (स्तुवते) स्तोता को, (सहस्रेण इव) मानो हजारों प्रकार से (काम्यं वसु) अभीष्टधन अर्थात् मोक्ष (मंहते) प्रदान करता है।

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    विषय

    ईश्वरोपासना आत्मदर्शन।

    भावार्थ

    (श्रुतम्) वेद आदि ग्रन्थों द्वारा गुरुपदेश से श्रवण करने योग्य (सुराधसम्) उत्तम रीति से योगादि द्वारा आराधना करने योग्य अथवा (श्रुतम्) जगत्प्रसिद्ध एवं (सुराधसम्) उत्तम ऐश्वर्यवान् (शक्रम्) उस शक्तिमान परमेश्वर को (अभिष्टये) अभीष्ट फल की प्राप्ति के लिये (प्र सु अर्च) खूब अच्छी प्रकार अर्चना कर। (यः) जो (सुन्वते) योगादि द्वारा ज्ञान प्राप्त करने वाले (स्तुवते) वेदवाणी द्वारा गुणानुवाद करने वाले को (काम्यं) अभिलाषा योग्य (वसु) ऐश्वर्य (सह स्त्रेण इव) हजारों प्रकार से (मंहते) प्रदान करता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रागाथः प्रस्कण्व ऋषिः। इन्द्रो देवता। गायत्र्यः। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    For the sake of life’s fulfilment, honour and adore Indra, renowned and mighty master and controller of the superstructure of existence, who grants desired wealth, power and honour, and augments it a thousandfold for the celebrant who seeks and works for the soma joy and excellence of life with yajnic effort.

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    Translation

    O man, worship eminent praiseworthy powerful God for attaining your desired ends. He delivers desired richness for the man resorting effort and for adorer in thousand ways.

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    Translation

    O man, worship eminent praiseworthy powerful God for attaining your desired ends. He delivers desired richness for the man resorting effort and for adorer in thousand ways.

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    Translation

    O devotee, thoroughly worship Him, Who is well-known, through the Vedic verses, Worthy to be worshipped through deep meditation, and Allpowerful, in order to attain your desired object, and Who showers the desired fortunes on the devoted praise-singer in a thousand ways.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    मन्त्र ३, ४ ऋग्वेद में है-८।०।१, २ [सायणभाष्य परिशिष्ट, बालखिल्य]। १, २ ॥ ३−(प्र) प्रकर्षेण (सु) सुष्ठु (श्रुतम्) विख्यातम् (सुराधसम्) म० १। बहुधनदातारम् (अर्च) (शक्रम्) शक्तिमन्तम् (अभिष्टये) अभीष्टसिद्धये (यः) परमेश्वरः (सुन्वते) तत्त्वं संस्कुर्वते (स्तुवते) स्तुतिं कुर्वते (काम्यम्) कमनीयम्। मनोहरम् (वसु) धनम् (सहस्रेण इव) म० १। (मंहते) ददाति-निघ० ३।२० ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    পরমেশ্বরোপাসনোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (সু শ্রুতম্) বিশাল বিখ্যাত, (সুরাধসম্) উৎকৃষ্ট ধন-সম্পদ প্রদানকারী, (শুক্রম্) শক্তিমানকে [পরমেশ্বরকে] (অভিষ্টয়ে) অভীষ্ট সিদ্ধির জন্য (প্র অর্চ) উত্তমরূপে অর্চনা করো। (য়ঃ) যে [পরমাত্মা] (সুন্বতে) তত্ত্ব নিষ্পাদনকারী, (স্তুবতে) স্তোতাকে তাঁর (কাম্যম্) কমনীয় (বসু) ধন (সহস্রেণ ইব) সহস্র প্রকারে (মংহতে) দান করেন।। ৩।।

    भावार्थ

    পরমাত্মা নিজের অনন্ত ধন-ভাণ্ডার দ্বারা নিজের সেবক, ভক্তদের কামনা পূরণ করেন।। ৩।। মন্ত্র ৩, ৪ ঋগ্বেদে আছে-৮।০।১, ২ [সায়ণভাষ্য পরিশিষ্ট, বালখিল্য]। ১, ২ ॥

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    भाषार्थ

    হে উপাসক! (অভিষ্টয়ে) অভীষ্ট প্রাপ্তির জন্য—(শ্রুতম্) বেদোং মেং সুনে গয়ে, (সুরাধসম্) সুগমতাপূর্বক অভীষ্ট-সাধক, (শক্রম্) শক্তিশালী পরমেশ্বরের (প্র) প্রকর্ষরূপে (সু) ভালোভাবে (অর্চ) অর্চনা করো, (যঃ) যে পরমেশ্বর (সুন্বতে) ভক্তিরসযুক্ত (স্তুবতে) স্তোতাদের, (সহস্রেণ ইব) মানো সহস্র প্রকারে (কাম্যং বসু) অভীষ্টধন অর্থাৎ মোক্ষ (মংহতে) প্রদান করেন।

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