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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 8 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 8/ मन्त्र 2
    ऋषिः - कुत्सः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-८
    49

    अ॒र्वाङेहि॒ सोम॑कामं त्वाहुर॒यं सु॒तस्तस्य॑ पिबा॒ मदा॑य। उ॑रु॒व्यचा॑ ज॒ठर॒ आ वृ॑षस्व पि॒तेव॑ नः शृणुहि हू॒यमा॑नः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒र्वाङ् । आ । इ॒हि॒ । सोम॑ऽकामम् । त्वा॒ । आ॒ह: । अ॒यम् । सु॒त: । तस्य॑ । पि॒ब॒ । मदा॑य ॥ उ॒रु॒ऽव्यचा॑: । ज॒ठरे॑ । आ । वृ॒ष॒स्व॒ । पि॒ताऽइ॑व । न॒: । शृ॒णु॒हि॒ । हू॒यमा॑न: ॥८.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अर्वाङेहि सोमकामं त्वाहुरयं सुतस्तस्य पिबा मदाय। उरुव्यचा जठर आ वृषस्व पितेव नः शृणुहि हूयमानः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अर्वाङ् । आ । इहि । सोमऽकामम् । त्वा । आह: । अयम् । सुत: । तस्य । पिब । मदाय ॥ उरुऽव्यचा: । जठरे । आ । वृषस्व । पिताऽइव । न: । शृणुहि । हूयमान: ॥८.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 8; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे सभाध्यक्ष !] (अर्वाङ्) सामने (आ इहि) आ, (त्वा) तुझको (सोमकामम्) ऐश्वर्य चाहनेवाला (आहुः) वे कहते हैं, (अयम्) यह (सुतः) सिद्ध किया हुआ [सोमरस] है, (मदाय) हर्ष के लिये (तस्य) उसका (पिब) पान कर। (उरुव्यचाः) बड़े सत्कारवाला तू (जठरे) अपने पेट में [उसे] (आ वृषस्व) सींच ले, (पिता इव) पिता के समान (हूयमानः) पुकारा गया तू (नः) हमारी [बात] (शृणुहि) सुन ॥२॥

    भावार्थ

    प्रजागण सभापति आदि महापुरुषों को पिता के समान उत्तम पदार्थों और हितवचनों से प्रसन्न रक्खें और प्रधान पुरुष भी प्रजाजनों को पुत्र के समान पालें ॥२॥

    टिप्पणी

    यह मन्त्र ऋग्वेद में है-१।१०४।९ ॥ २−(अर्वाङ्) अभिमुखः (आ इहि) आगच्छ (सोमकामम्) ऐश्वर्यं कामयमानम् (त्वा) त्वाम् (आहुः) कथयन्ति विद्वांसः (अयम्) (सुतः) निष्पादितः सोमरसः (तस्य) (पिब) पानं कुरु (मदाय) हर्षाय (उरुव्यचा) उरु+वि+अञ्चु गतिपूजनयोः-असुन्। उरु बहुविधं व्यचो विज्ञानं पूजनं सत्करणं वा यस्य सः (जठरे) उदरे (आ) समन्तात् (वृषस्व) सिञ्चस्व (पिता) (इव) यथा (नः) अस्माकं वार्ताम् (शृणुहि) शृणु (हूयमानः) कृताह्वानः ॥

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    विषय

    'सोम-काम' प्रभु

    पदार्थ

    १. हे प्रभो! आप (अर्वाङ् एहि) = हमें अन्दर हदयों में प्राप्त होइए। (सोमकामं त्वा) = आपको सोम की कामनाओंवाला (आहुः) = कहते हैं-आपकी कामना यही है कि उपासक सोम का सम्पादन करे । (अयं सुतः) = यह सोम शरीर में उत्पन्न किया गया है। (तस्य पिब) = उसका आप शरीर में ही पान कीजिए और (मदाय) = हमारे उल्लास के लिए होइए। २. (उरुव्यचा:) = अनन्त विस्तारवाले सर्वव्यापक आप (जठरे आवृषस्व) = हमारे जठर में ही शरीर के मध्य में ही सोम का सेचन कीजिए। (इयमानः) = पुकारे जाते हुए आप (पिता इव) = पिता की भाँति (नः शृणुहि) = हमारी प्रार्थना को सुनिए। हमारी पुकार व्यर्थ न जाए।

    भावार्थ

    प्रभु को वही व्यक्ति प्रिय है, जो शरीर में सोम का रक्षण करता है। सोम-रक्षण भी प्रभु के अनुग्रह से ही होता है। हम सदा उस रक्षक प्रभु को ही पिता जानें, उसी की आराधना करें।

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    भाषार्थ

    हे परमेश्वर! (अर्वाङ् एहि) हमारी ओर कृपादृष्टि कीजिए। (सोमकामं त्वा आहुः) आपके सम्बन्ध में उपासक कहते हैं कि आप भक्तिरस की कामना करते हैं। (अयम्) यह भक्तिरस (सुतः) निष्पन्न हुआ है, (तस्य) उसका आप (मदाय) अपनी प्रसन्नता के लिए (पिब) पान कीजिए। (उरुव्यचाः) आप अतिविस्तारवाले हैं, सर्वगत हैं, (जठरे) वृद्धावस्था के कारण कठोर शरीरवाले उपासक पर (आ वृषस्व) आनन्दरस की वर्षा कीजिए। (हूयमानः) बुलाए जाने पर (शृणुहि) मेरी प्रार्थनाओं को सुनिए, (इव पिता) जैसे कि पिता सन्तानों की प्रार्थनाओं को सुनता है।

    टिप्पणी

    [उरुव्यचाः=उरु+वि+अञ्च् गतौ। जठरम्=कठिनम् (उणादि कोष ५.३८)।]

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    विषय

    परमेश्वर और राजा।

    भावार्थ

    हे (इन्द्र) इन्द्र ! (अर्वाङ् एहि) तू साक्षात् प्राप्त हो (त्वा) तुझको (सोमकामम् आहुः) विद्वान् पुरुष ‘सोम काम’ कहते हैं। तू सोम अर्थात् समस्त संसार में काम कामना, या संकल्प रूप से प्रेरक होकर सर्वत्र विद्यमान है। (अयं सुतः) यह तैयार किया हुआ सोम, समस्त संसार तेरे ही लिये है। (तस्य) उसका तू (मदाय) हर्ष के लिये (पिब) पान कर। (उरुव्यचाः) तू महान् आकाश के समान सर्वव्यापक है। तू अपने ही (जठरे) उत्पादक सामर्थ्य में (आ वृषस्व) इसको समस्त रसों से पूर्ण कर. सिंचन कर। और। (हूयमानः) जब भी तुझे पुकारा जाय तभी (पिता इव) पिता के समान (नः) हमारी पुकार (शृणुहि) श्रवण कर। राजा के पक्ष में—हे राजन् ! तुम हमारे पास आओ। तुझे राष्ट्र की कामना वाला, कहते हैं। तू इसका भोग कर। तू महान् सामर्थ्यवान् होकर अपने ही अधिकार में इसको पुष्ट कर। और हम प्रजाओं की पुकार पिता के समान सुन।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    क्रमशो भरद्वाजः कुत्सोः विश्वामित्रश्च ऋषयः। इन्द्रो देवता। त्रिष्टुभः। तृचं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indr a Devata

    Meaning

    Indra, come right here and now. They say you love soma. Distilled is the soma of life’s joy, drink of it to your fill for the bliss of life. Lord of great honour and universal reverence, invoked by all with love in faith, listen to our prayers as father and shower the rains of bliss.

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    Translation

    O God Almighty, please come in to my intuitional vision, you are as learned says he who matteralizes the initiative desire to create Soma the world, this world is born and protect it for its well-being. You pervading the whole like space, you sprinkle this with protection within you and you being called hear of us like father.

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    Translation

    O God Almighty, please come in to my intuitional vision, you are as learned says he who materializes the initiative desire to create Soma the world, this world is born and Protect it for its well-being. You pervading the whole like space, you sprinkle this with protection within you and you being called hear of us like father.

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    Translation

    O Adorable God, reveal Thyself to all of us. They call Thee ‘Desirous of Creation.’ Here is this created universe. Let Thee drink deep of it for the sake of pleasure Pervading it through and through saturate it with peace and grace. Being called, listen to us like a father.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    यह मन्त्र ऋग्वेद में है-१।१०४।९ ॥ २−(अर्वाङ्) अभिमुखः (आ इहि) आगच्छ (सोमकामम्) ऐश्वर्यं कामयमानम् (त्वा) त्वाम् (आहुः) कथयन्ति विद्वांसः (अयम्) (सुतः) निष्पादितः सोमरसः (तस्य) (पिब) पानं कुरु (मदाय) हर्षाय (उरुव्यचा) उरु+वि+अञ्चु गतिपूजनयोः-असुन्। उरु बहुविधं व्यचो विज्ञानं पूजनं सत्करणं वा यस्य सः (जठरे) उदरे (आ) समन्तात् (वृषस्व) सिञ्चस्व (पिता) (इव) यथा (नः) अस्माकं वार्ताम् (शृणुहि) शृणु (हूयमानः) कृताह्वानः ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    মনুষ্যকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    [হে সভাধ্যক্ষ !] (অর্বাঙ্) সামনে (আ ইহি) এসো, (ত্বা) তোমাকে (সোমকামম্) ঐশ্বর্য কামনাকারী (আহুঃ) বলা হয়, (অয়ম্) ইহা (সুতঃ) নিষ্পাদিত [সোমরস], (মদায়) আনন্দের জন্য (তস্য) তা (পিব) পান করো। (উরুব্যচাঃ) বহুবিধ সংস্কারসম্পন্ন তুমি (জঠরে) নিজের পেটের মধ্যে [তা] (আ বৃষস্ব) সীঞ্চন করো, (পিতা ইব) পিতার সমান (হূয়মানঃ) আহূত তুমি (নঃ) আমাদের [কথা] (শৃণুহি) শ্রবণ করো ॥২॥

    भावार्थ

    প্রজাগণ সভাপতি আদি মহাপুরুষদের পিতার সমান উত্তম পদার্থ এবং হিতবচন দ্বারা প্রসন্ন রাখুক এবং প্রধান পুরুষও প্রজাদের পুত্রের সমান পালন করুক ॥২॥ এই মন্ত্র ঋগ্বেদে আছে-১।১০৪।৯ ॥

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    भाषार्थ

    হে পরমেশ্বর! (অর্বাঙ্ এহি) আমাদের দিকে কৃপাদৃষ্টি করুন। (সোমকামং ত্বা আহুঃ) আপনার বিষয়ে উপাসক বলে, আপনি ভক্তিরস কামনা করেন। (অয়ম্) এই ভক্তিরস (সুতঃ) নিষ্পন্ন হয়েছে, (তস্য) উহা আপনি (মদায়) নিজের প্রসন্নতার জন্য (পিব) পান করুন। (উরুব্যচাঃ) আপনি অতিবিস্তারযুক্ত, সর্বগত, (জঠরে) বৃদ্ধাবস্থার কারণে কঠোর শরীরযুক্ত উপাসকের ওপর (আ বৃষস্ব) আনন্দরসের বর্ষণ করুন। (হূয়মানঃ) আহ্বান/স্তুতি করলে (শৃণুহি) আমার প্রার্থনা শ্রবণ করুন, (ইব পিতা) যেমন পিতা সন্তানদের প্রার্থনা শোনে।

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