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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 26 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 26/ मन्त्र 3
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - सविता छन्दः - त्रिपदा विराड्गायत्री सूक्तम् - नवशाला सूक्त
    41

    इन्द्र॑ उक्थाम॒दान्य॒स्मिन्य॒ज्ञे प्र॑वि॒द्वान्यु॑नक्तु सु॒युजः॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑: । उ॒क्थ॒ऽम॒दानि॑ । अ॒स्मिन् । य॒ज्ञे । प्र॒ऽवि॒द्वान् । यु॒न॒क्तु॒ । सु॒ऽयुज॑: । स्वाहा॑ ॥२६.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्र उक्थामदान्यस्मिन्यज्ञे प्रविद्वान्युनक्तु सुयुजः स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्र: । उक्थऽमदानि । अस्मिन् । यज्ञे । प्रऽविद्वान् । युनक्तु । सुऽयुज: । स्वाहा ॥२६.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 26; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    समाज की वृद्धि करने का उपदेश।

    पदार्थ

    (प्रविद्वान्) बड़ा विद्वान्, (सुयुजः) सुयोग्य (इन्द्रः) बड़े ऐश्वर्यवाला पुरुष (उक्थमदानि) शास्त्रों और सुखों को (अस्मिन्) इस (यज्ञे) संगति में (स्वाहा) सुन्दर वाणी से (युनक्तु) उपयुक्त करे ॥३॥

    भावार्थ

    मनुष्य विद्या प्राप्त करके वेदादि शास्त्रों का प्रचार करे ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् पुरुषः (उक्थमदानि) उक्थानि−अ० २।१२।२। वक्तव्यानि शास्त्राणि, मदानि हर्षकर्माणि च (सुयुजः) युजिर् योगे−इगुपधत्वात् कः। सुयोग्यः। अन्यद् गतम् ॥

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    विषय

    उक्थामदानि [स्तोत्रों का आनन्द]

    पदार्थ

    १. (अस्मिन् यज्ञे) = इस जीवन-यज्ञ में वह (इन्द्रः) = कामदि शत्रुओं का विद्रावक (प्रविद्वान्) = प्रकृष्ट ज्ञानी (सुयुज:) = उत्तम कर्मों में लगानेवाला प्रभु (उक्थामदानि) = स्तोत्रों के आनन्दों को (युनक्तु) = हमारे साथ जोड़े। (स्वाहा) = हम उस प्रभु के प्रति अपना अर्पण करते हैं।

    भावार्थ

    हम प्रभु के स्तोत्रों में आनन्द लेते हुए प्रभु के प्रति अपना अर्पण करनेवाले बनें।

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    भाषार्थ

    (प्रविद्वान्) प्रज्ञानी या प्रकृष्ट-ज्ञानवाला, (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् परमेश्वर (अस्मिन् यज्ञे) इस यज्ञ में (उक्थामदानि) मोदकारी तथा हर्षप्रद सामवेद के स्तोत्रों को तथा तत्सम्बन्धी (सुयुजः) उत्तम योजनाओं को, (युनक्तु) संयुक्त करे, (स्वाहा) और स्वाहापूर्वक हविर्यज्ञों में दी जाने वाली आहुतियां हों।

    टिप्पणी

    [इन्द्रः= इदि परमैश्वर्ये (भ्वादिः)। परमेश्वर को ऐश्वर्यवान् कहकर यह सूचित किया है कि यज्ञकर्ता को, फलरूप में, यज्ञ द्वारा होनेवाला ऐश्वर्य प्राप्त होता है। उक्थामदानि= उक्थानि, मदानि। 'उक्थानि' हैं सामवेद के गेयस्तोत्र और 'मदानि' हैं इन गेयस्तोत्रों के गान द्वारा प्राप्त मोद तथा हर्ष। उक्थम् =सामवेद (आप्टे)। स्वाहा=स्वाहाकृतयः (निरुक्त ८।३।२१), यज्ञों में बार-बार आहुतियां देने के लिए उच्चार्यमाण 'स्वाहा' पद। सुयुजः= उत्तम योजनाएं-यज्ञशाला निर्माण आदि। यज्ञकर्म से फल-प्राप्ति यज्ञकर्म में प्रेरिका है।]

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    विषय

    योग साधना।

    भावार्थ

    (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान्, ज्ञानी पुरुष (अस्मिन् यज्ञे) इस यज्ञमय परम आत्मा में (उक्थ-मदानि) ब्रह्म के आनन्दों को (प्र विद्वान्) भलीभांति लाभ करता हुआ (सु-युज:) उत्तम रूप से योग करने वाले योगियों को या इन्द्रियों को (युनक्तु) उसी प्रभु में लगा दे (स्वाहा) यह सब से उत्तम आहुति है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। वास्तोष्पत्यादयो मन्त्रोक्ता देवताः। १, ५ द्विपदार्च्युष्णिहौ। २, ४, ६, ७, ८, १०, ११ द्विपदाप्राजापत्या बृहत्यः। ३ त्रिपदा पिपीलिकामध्या पुरोष्णिक्। १-११ एंकावसानाः। १२ प्रातिशक्वरी चतुष्पदा जगती। द्वादशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Yajna in the New Home

    Meaning

    May the eminent scholar and friendly companion, Indra, use inspiring and exhilarating hymns of the Veda in this yajna here in the home. This is my prayer and submission in truth of heart and soul.

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    Translation

    May the resplendent self, fore-knowing use appropriate delighting praise-songs (luktha) in this sacrifice.

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    Translation

    May learned and duxter Priest employ the verses of adoration in this yajna, Whatever is uttered here in is correct

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    Translation

    An able, highly learned, venerable person, should offer to the sacrificingGod, joyous recitations of His praise. This is the best oblation.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् पुरुषः (उक्थमदानि) उक्थानि−अ० २।१२।२। वक्तव्यानि शास्त्राणि, मदानि हर्षकर्माणि च (सुयुजः) युजिर् योगे−इगुपधत्वात् कः। सुयोग्यः। अन्यद् गतम् ॥

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