अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 26/ मन्त्र 7
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - विष्णुः
छन्दः - द्विपदा प्राजापत्या बृहती
सूक्तम् - नवशाला सूक्त
37
विष्णु॑र्युनक्तु बहु॒धा तपां॑स्य॒स्मिन्य॒ज्ञे सु॒युजः॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठविष्णु॑: । यु॒न॒क्तु॒ । ब॒हु॒ऽधा । तपा॑सि । अ॒स्मिन् । य॒ज्ञे । सु॒ऽयुज॑: । स्वाहा॑ ॥२६.७॥
स्वर रहित मन्त्र
विष्णुर्युनक्तु बहुधा तपांस्यस्मिन्यज्ञे सुयुजः स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठविष्णु: । युनक्तु । बहुऽधा । तपासि । अस्मिन् । यज्ञे । सुऽयुज: । स्वाहा ॥२६.७॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
समाज की वृद्धि करने का उपदेश।
पदार्थ
(सुयुजः) सुयोग्य (विष्णुः) कामों में व्यापक पुरुष (स्वाहा) सुन्दर वाणी से (बहुधा) अनेक प्रकार (तपांसि) अपनी विभूतियों को (अस्मिन्) इस (यज्ञे) परस्पर मेल में (युनक्तु) लगावे ॥७॥
भावार्थ
चतुर पुरुषार्थी पुरुष दुसरों की उन्नति करने में अपनी उन्नति करे ॥७॥
टिप्पणी
७−(विष्णुः) कर्मसु व्यापकः पुरुषः (युनक्तु) योजयतु (बहुधा) अनेकप्रकारेण (तपांसि) तप संतापे ऐश्वर्ये च−असुन्। ऐश्वर्याणि। विभूतयः। अन्यद् गतम् ॥
पदार्थ
१. (सुयुज:) = हमें उत्तम कर्मों में लगानेवाला (विष्णु:) = वह सर्वव्यापक प्रभु (अस्मिन् यज्ञे) = इस जीवन-यज्ञ में (बहुधा) = बहुत प्रकार से (तपांसि युनत्तु) = तपों को हमारे साथ जोड़े। (स्वाहा) = हम उस प्रभु के प्रति अपना अर्पण करें।
भावार्थ
प्रभुकृपा से हमारा जीवन तपोमय हो। 'ऋतं तपः, सत्यं तपः, शान्तं तपः, शमस्तपः, दमस्तपः' के अनुसार हम 'ऋत, सत्य, शान्त, शम, दम' आदि तपों में लगे रहें।
भाषार्थ
(विष्णुः) रश्मियों से व्याप्त तेजस्वी सूर्य के समान, तेजस्वी परमेश्वर (बहुधा तपांसि) बहुत प्रकार के तपों को (अस्मिन् यज्ञे) इस यज्ञ में (युनक्तु) संयुक्त करे।
टिप्पणी
[यज्ञ के प्रारम्भ से यज्ञ की समाप्ति तक, नानाविध तपोमयी जीवनचर्या करनी होती है तथा तदनुसार उत्तम योजनाएं करनी होती हैं, जिससे कि तपोभंग न हो। ये भी यज्ञाङ्ग हैं।]
विषय
योग साधना।
भावार्थ
हे (सुयुजः) उत्तम रीति से योग का सम्पादन करने हारे विद्वान् पुरुषो ! (अस्मिन् यज्ञे) इस योगमय अध्यात्म-यज्ञ में (विष्णुः) वह प्रभु परमात्मा (तपांसि) तपस्याओं को (युनक्तु) आप में सफलतापूर्वक लगावे। (स्वाहा) यही सबसे श्रेष्ठ आहुति है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। वास्तोष्पत्यादयो मन्त्रोक्ता देवताः। १, ५ द्विपदार्च्युष्णिहौ। २, ४, ६, ७, ८, १०, ११ द्विपदाप्राजापत्या बृहत्यः। ३ त्रिपदा पिपीलिकामध्या पुरोष्णिक्। १-११ एंकावसानाः। १२ प्रातिशक्वरी चतुष्पदा जगती। द्वादशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Yajna in the New Home
Meaning
May Vishnu, omnipresent spirit of divinity, the sage of universal love, companionable friend, bring us manifold disciplines of austerity and join us in this yajna. This is my prayer and submission in truth.
Translation
May the omnipresent lord (visnu) use appropriate heating processes in various ways in this sacrifice. Svaha.
Translation
Let the accomplished priest: give the advantage of his various austerities in this yajna. Whatever is uttered herein is correct.
Translation
O learned, nice practisers of yoga, may God furnish Ye with varioussorts of austerity, in this spiritual yoga-yajna. This is the best oblation.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
७−(विष्णुः) कर्मसु व्यापकः पुरुषः (युनक्तु) योजयतु (बहुधा) अनेकप्रकारेण (तपांसि) तप संतापे ऐश्वर्ये च−असुन्। ऐश्वर्याणि। विभूतयः। अन्यद् गतम् ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal