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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 117 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 117/ मन्त्र 2
    ऋषिः - कौशिक देवता - अग्निः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - आनृण्य सूक्त
    64

    इ॒हैव सन्तः॒ प्रति॑ दद्म एनज्जी॒वा जी॒वेभ्यो॒ नि ह॑राम एनत्। अ॑प॒मित्य॑ धा॒न्य यज्ज॒घसा॒हमि॒दं तद॑ग्ने अनृ॒णो भ॑वामि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒ह । ए॒व । सन्त॑: । प्रति॑ । द॒द्म॒: । ए॒न॒त् । जी॒वा: । जी॒वेभ्य॑: । नि । ह॒रा॒म॒: । ए॒न॒त् । अ॒प॒ऽमित्य॑ । धा॒न्य᳡म् । यत् । ज॒घस॑ । अ॒हम् । इ॒दम् । तत् । अ॒ग्ने॒। अ॒नृ॒ण: । भ॒वा॒मि॒ ॥११७.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इहैव सन्तः प्रति दद्म एनज्जीवा जीवेभ्यो नि हराम एनत्। अपमित्य धान्य यज्जघसाहमिदं तदग्ने अनृणो भवामि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इह । एव । सन्त: । प्रति । दद्म: । एनत् । जीवा: । जीवेभ्य: । नि । हराम: । एनत् । अपऽमित्य । धान्यम् । यत् । जघस । अहम् । इदम् । तत् । अग्ने। अनृण: । भवामि ॥११७.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 117; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ऋण से छूटने का उपदेश।

    पदार्थ

    (इह) यहाँ [इस शरीर में] (एव) ही (सन्तः) रहते हुए हम (एनत्) इस [ऋण] को (प्रति दद्मः) चुका देवें, (जीवाः) जीते हुए हम (जीवेभ्यः) जीते हुए पुरुषों को (एनत्) यह [उधार] (नि) नियम से (हरामः) दे देवें। (यत्) जो (धान्यम्) धान्य (अपमित्य) उधार लेकर (अहम्) मैंने (जघस) खाया है, (अग्ने) हे विद्वान् ! (इदम्) अभी (तत्) उससे मैं (अनृणः) अऋण (भवामि) हो जाऊँ ॥२॥

    भावार्थ

    मनुष्य संसार के सब जीवों का उपकार अपने पर विचार कर अपने और उनके जीवन में ही यथोचित सेवा से उनका ऋण चुकावे ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(इह) अस्मिन् शरीरे (एव) (सन्तः) विद्यमाना वयम् (प्रति दद्मः) प्रत्यर्पयामः (एनत्) ऋणम् (जीवाः) जीवन्तो वयम् (नि) नियमेन (हरामः) प्रापयामः (एनत्) ऋणम् (अपमित्य) उदीचां माङो व्यतीहारे। पा० ३।४।१९। इति मेङ् प्रणिदाने−क्त्वा, ल्यबादेशे। मयतेरिदन्यतरस्याम् पा० ६।१।७१। इति। तुक्। ऋणे गृहीत्वा (धान्यम्) अन्नम् (जघस) अद भक्षणे, लिटि घस्लृ आदेशः। भक्षितवानस्मि (अहम्) (इदम्) इदानीम् (तत्) तस्मात् (अग्ने) विद्वन् (अनृणः) ऋणरहितः (भवामि) ॥

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    विषय

    जीवनकाल में ही ऋण चुकाना

    पदार्थ

    १. (इह एव सन्त:) = इस लोक में होते हुए ही हम (एनत् प्रति दना:) = इस ऋण को उत्तमर्ण के लिए प्रत्यर्पित कर देते हैं। (जीवा:) = जीते हुए ही हम-अपने जीवनकाल में ही (जीवेभ्यः) = जीवित उत्तमों के लिए देह त्यागने से पहले ही (एनत् निहरामः) = इस ऋण को नियम से चुका देते हैं। २. (धान्यम्) = व्रीहि, यवादि को उत्तमर्ण से (अपमित्य) = उधार लेकर (यत् अहं जघास) = जो मैंने खाया है, हे (अग्ने) = परमात्मन् ! (इदम्) = अब [इदानीन् तत्-तस्मात्] उस परकीय (धान्य) = भक्षण से (अनृण:) = ऋणरहित (भवामि) = होता हूँ। ऋण चुकाने के कारण नरकपात से मैं बच जाता हूँ।

    भावार्थ

    हम लिये हुए ऋण को जीवनकाल में ही चुकाने का प्रयत्न करें। ऋण न चुकाना नरक-पात का कारण बनता है।

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    भाषार्थ

    (इह एव) यहां ही (सन्तः) विद्यमान रहते (एनत्) इस ऋण को (प्रति दद्मः) वापिस हम दे देते हैं, (जीवा:) जीवित हम (जीवेभ्यः) जीवित ऋणदाताओं के लिए (एनत्) इस ऋण को (निहरामः) नियम से या सम्पूर्णतया चुका देते हैं। (धान्यम्) धान्य को (अपमित्य) मापपूर्वक अपाकृत करके (अहम्) मैंने (यत्) जो धान्य (जघस) खाया है (अग्ने) हे अग्निनामक परमेश्वर ! (इदम् तत्) यह वह मैं (अनृणः) ऋण रहित (भवामि) होता हूं।

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    विषय

    ऋण रहित होने का उपदेश।

    भावार्थ

    हम लोग (इह एव) इस लोक में ही (सन्तः) वर्त्तमान रहते रहते (एनत्) उस ऋणको (प्रति दद्मः) चुका दिया करें और (जीवाः) हम जीते जी (जीवेभ्यः) जीते हुए पुरुषों के (एनत्) इस ऋण को (नि हरामः) सर्वथा साफ़ कर दिया करें। (यत् धान्यं) जो धान्य आदि ऋण लेकर भी (अहं जघस) मैं खाऊं, उसको भी (अप मित्य) वापिस देकर हे (अग्ने) न्यायाधीश ! (इदं तत्) यह इस प्रकार मैं (अनृणः) ऋणरहित (भवामि) होऊं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अनृणकामः कौशिक ऋषिः। अग्नि र्देवता। त्रिष्टुभः। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    The Debt of Obligation

    Meaning

    Let us pay back the debt of obligation while we are here, living, let us offer this gift of creative action for the other living beings and be free from the debt. Whatever food and other things I have consumed, that is my debt of obligation to others, to the law, and to the law giver. And here is this, my contribution of creation and production, and thus, O lord of light and law, Agni, I become free from the debt of obligation.

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    Translation

    While living here, we pay back this debt alive, we repay it to the living ones. What gains I have consumed having borrowed, from that debt, O adorable Lord, now I become free.

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    Translation

    We even dwelling in this world return or repay this debt, we clear this debt, returning debtors living in the time when we are alive. Returning the grain taken as loan to whence I have eaten, may I be free from that.

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    Translation

    In our life-time we should pay back the debt. The debtors while living should pay the debt to their creditors in their life-time. The corn I have eaten as a loan, O learned person, I pay back and become free from debt.

    Footnote

    A father should discharge his debt in his life time and not leave it for his children to pay.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(इह) अस्मिन् शरीरे (एव) (सन्तः) विद्यमाना वयम् (प्रति दद्मः) प्रत्यर्पयामः (एनत्) ऋणम् (जीवाः) जीवन्तो वयम् (नि) नियमेन (हरामः) प्रापयामः (एनत्) ऋणम् (अपमित्य) उदीचां माङो व्यतीहारे। पा० ३।४।१९। इति मेङ् प्रणिदाने−क्त्वा, ल्यबादेशे। मयतेरिदन्यतरस्याम् पा० ६।१।७१। इति। तुक्। ऋणे गृहीत्वा (धान्यम्) अन्नम् (जघस) अद भक्षणे, लिटि घस्लृ आदेशः। भक्षितवानस्मि (अहम्) (इदम्) इदानीम् (तत्) तस्मात् (अग्ने) विद्वन् (अनृणः) ऋणरहितः (भवामि) ॥

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