अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 126/ मन्त्र 2
ऋषिः - अथर्वा
देवता - दुन्दुभिः
छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप्
सूक्तम् - दुन्दुभि सूक्त
64
आ क्र॑न्दय॒ बल॒मोजो॑ न॒ आ धा॑ अ॒भि ष्टन दुरि॒ता बाध॑मानः। अप॑ सेध दुन्दुभे दु॒च्छुना॑मि॒त इन्द्र॑स्य मु॒ष्टिर॑सि वी॒डय॑स्व ॥
स्वर सहित पद पाठआ । क्र॒न्द॒य॒ । बल॑म् । ओज॑: । न॒: । आ । धा॒: । अ॒भि । स्त॒न॒ । दु॒:ऽइ॒ता । बाध॑मान: । अप॑ । से॒ध॒ । दु॒न्दु॒भे॒ । दु॒च्छुना॑म् । इ॒त: । इन्द्र॑स्य । मु॒ष्टि: । अ॒सि॒ । वी॒डय॑स्व ॥१२६.२॥
स्वर रहित मन्त्र
आ क्रन्दय बलमोजो न आ धा अभि ष्टन दुरिता बाधमानः। अप सेध दुन्दुभे दुच्छुनामित इन्द्रस्य मुष्टिरसि वीडयस्व ॥
स्वर रहित पद पाठआ । क्रन्दय । बलम् । ओज: । न: । आ । धा: । अभि । स्तन । दु:ऽइता । बाधमान: । अप । सेध । दुन्दुभे । दुच्छुनाम् । इत: । इन्द्रस्य । मुष्टि: । असि । वीडयस्व ॥१२६.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
राजा और सेना के कर्तव्यों का उपदेश।
पदार्थ
[हे राजन् !] (बलम्) बल और (ओजः) पराक्रम (नः) हमें (आ धाः) अच्छे प्रकार दे, [शत्रुओं को] (आ क्रन्दय) सब ओर से .... और (दुरिता) कष्टों को (बाधमानः) हटाता हुआ (अभि) सब ओर (स्तन) मेघध्वनि कर। (दुन्दुभे) हे दुन्दुभी [के समान गरजनेवाले !] (इतः) यहाँ से (दुच्छुनाम्) दुष्ट गति को (अप सेध) हटा दे, तू (इन्द्रस्य) बिजुली की (मुष्टिः) मूँठ [के समान दुष्टों को मारनेवाला] (असि) है, [राज्य को] (वीडयस्व) दृढ कर ॥२॥
भावार्थ
जैसे राजा बलवान् होकर यथावत् अस्त्र-शस्त्रों से शत्रुओं को जीतकर प्रजापालन करता है, वैसे ही मनुष्य आत्मदोष मिटा कर धर्मिष्ठ होवें ॥२॥
टिप्पणी
२−(आ) समन्तात् (क्रन्दय) रोदय शत्रून् (बलम्) (ओजः) पराक्रमम् (नः) अस्मभ्यम् (आ) (धा) धेहि (अभि) सर्वतः (स्तन) स्तन मेघशब्दे। मेघध्वनिं कुरु (दुरिता) कष्टानि (बाधमानः) निवारयन् (अप सेध) अपगमय (दुन्दुभे) दुन्दुभिरिव शब्दायमान (दुच्छुनाम्) अ० ५।१७।४। दुर्गतिम् (इतः) अस्माद् देशात् (इन्द्रस्य) विद्युतः (मुष्टिः) मुष्टिरिव दुष्टानां हन्ता (असि) (वीडयस्व) बलयस्व राज्यम् ॥
विषय
शत्रुभञ्जन
पदार्थ
१. हे (दुन्दुभे) = रणभेरि! (बलम्) = शत्रु-सैन्य को (आक्रन्दय) = विलापयुक्त कर दे। (न:) = हममें (ओज: आधा:) = बल की स्थापना कर। दुरिता (बाधमान:) = शत्रुकृत दुर्गतों व दुःखों को निवृत्त करती हुई-दुर करती हुई तू (अभिष्टन) = अभितः शत्रुहदयभञ्जक परुष शब्द कर । २. हे दुन्दुभे! (इत:) = इस युद्धरङ्ग से (दुच्छुनाम्) = दु:खकारी शत्रुसेना को (अपसेध) = दूर भगा दे। (इन्द्रस्य) = शत्रुविद्रावक सेनापति की तू (मुष्टिः असि) = मुष्टिवत् शत्रुओं की भञ्जक है, अत: तू (वीडयस्व) = अत्यन्त दृढ़ हो-शत्रुओं पर पराक्रम प्रकट करनेवाली हो।
भावार्थ
दुन्दुभिनाद शत्रुओं में क्रन्दन मचा दे और हमारे सैन्य में ओजस्विता का आधान करे, शत्रुकृत दुर्गतियों को यह दूर करनेवाला हो। यह मुष्टिप्रहार की भाँति शत्रुभञ्जक बने।
भाषार्थ
(दुन्दुभे) हे सैन्यढोल ! (आक्रन्दय) तू शत्रुओं का आह्वान कर, उन्हें ललकार, (नः) हमारे लिये या हम में (बलम्, ओजः, आधाः) बल१ ओजस्१ का आधान कर, (दुरिता= दुरितानि) शत्रुओं द्वारा सम्भाव्यमान दुष्परिणामों को (बाधमानः) हटाता हुआ (अभिष्टन) तू गर्ज। (इतः) इस हमारी भूमि से (दुच्छनाम्) दुःखकारी शत्रु सेना को (अप सेध) अपगत कर भगा दे, (इन्द्रस्य) सम्राट की (मुष्टिः) मुट्ठी (असि) तू है, (वीडयस्व) तू बलकृति या वीरता कर।
टिप्पणी
[यद्यपि है तो सैन्यढोल का वर्णन, परन्तु है यथार्थ वर्णन। ढोल गोल होता है अतः उसे मुट्ठी कहा है। मृट्टी भी गोल होती है। इन्द्र है साम्राज्य का मुखिया उसके सैन्यढोल का गर्जना मानों शत्रुसेना को ललकारना है, और निज सेना में बल और ओजस् का स्थापन करना है। शत्रु, गर्जना सुनते, अपगत हो जाते हैं और युद्धजन्य किसी दुष्परिणाम को पैदा करने का साहस नहीं करते। अभिष्टन= अभि + स्तन गदी देवशब्दे (चुरादिः); देवशब्द= बादल का गर्जन। दुच्छुना= दु: + शुनम् सुखनाम (निघं० ३।६)। वीडयस्व= वीडु बलनाम (निघं० २।९)। अथवा वीरयस्व, रलयोरभेदः, डलयोरभेदः।] [१. बल होता है हाथी में, और ओजस् होता है सिंह में।]
विषय
युद्धोपकरण दुन्दुभि, राजा और परमात्मा।
भावार्थ
हे दुन्दुभे ! नक्कारे ! (बलम् आक्रन्दय) शत्रु की सेना को रुला। (नः) हमारे से (ओजः) बल को (आ धाः) आधान कर और (दुरितानि) दुष्ट चरित्रों को, पापों को (बाधमानः) बाधित करता हुआ (अभि स्तन) सर्वत्र अपना नाद कर, और (दुच्छुनाम) दुःख देने वाली शत्रु-सेना को (इतः) यहां से (अप सेध) दूर भगा दे तू (इन्द्रस्य) इन्द्र, राजा की (मुष्टिः असि) आगे बढ़ कर हृदय दहला देने वाली मुष्टि मुक्के या वज्र के समान है। (वीडयस्व) तू दृढ़ रह। अध्यात्मा में—दुच्छुना = दुष्प्रवृत्ति, इन्द्रस्य = आत्मा की, मुष्टिः = सर्व दुःख और अज्ञान को हरने वाली शक्ति है, तू आत्मा को वीर बना।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। वानस्पत्यो दुन्दुभिर्देवता। १, २ भुरिक् त्रिष्टुभौ, ३ पुरोबृहती विराड् गर्भा त्रिष्टुप्। तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Clarion Call of the Brave
Meaning
Brave hero, roar like winds and clouds, make the enemy cry in fear. Inspire us with spirit and lustre. Keep off the evils and calamities. Thunder as lightning, hold off the enemies at bay. O hero, overwhelm the demonic enemies with your battle cry and throw them out. You are the iron fist of Indra, be bold and make every one strong and firm.
Translation
May (O drum) you sound loud and animate our vigour and enthusiam. May you thunder aloud and scare away malignant powers. Please repel, O drum, those who take delight in harming us. You, being the first of the divines, show your firmness. (Also Rg. VI.47.30)
Translation
Let this drum thunder out strength and fill us with vigor and let it thunder aloud and drive away all the misfortunes. Let this thunder again and again, let it throw away the troubles and calamities, it is the first of the king and let it create firmness, in all ranks.
Translation
O Commander, whose army thunders like the war drum, drive away all dangers, fill us full of vigor, gain supremacy, expand the army, drive away those who behave like depraved dogs, let thy administration be well knit like the fist, make efficient arrangements for electricity in the army, and enjoy all comforts!
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(आ) समन्तात् (क्रन्दय) रोदय शत्रून् (बलम्) (ओजः) पराक्रमम् (नः) अस्मभ्यम् (आ) (धा) धेहि (अभि) सर्वतः (स्तन) स्तन मेघशब्दे। मेघध्वनिं कुरु (दुरिता) कष्टानि (बाधमानः) निवारयन् (अप सेध) अपगमय (दुन्दुभे) दुन्दुभिरिव शब्दायमान (दुच्छुनाम्) अ० ५।१७।४। दुर्गतिम् (इतः) अस्माद् देशात् (इन्द्रस्य) विद्युतः (मुष्टिः) मुष्टिरिव दुष्टानां हन्ता (असि) (वीडयस्व) बलयस्व राज्यम् ॥
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