अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 127/ मन्त्र 2
ऋषिः - भृग्वङ्गिरा
देवता - वनस्पतिः, यक्ष्मनाशनम्
छन्दः - त्र्यसाना षट्पदा जगती
सूक्तम् - यक्ष्मनाशन सूक्त
52
यौ ते॑ बलास॒ तिष्ठ॑तः॒ कक्षे॑ मु॒ष्कावप॑श्रितौ। वेदा॒हं तस्य॑ भेष॒जं ची॒पुद्रु॑रभि॒चक्ष॑णम् ॥
स्वर सहित पद पाठयौ । ते॒ । ब॒ला॒स॒ । तिष्ठ॑त: । कक्षे॑ । मु॒ष्कौ । अप॑ऽश्रितौ । वेद॑ । अ॒हम् । तस्य॑ । भे॒ष॒जम् । ची॒पुद्रु॑: । अ॒भि॒ऽचक्ष॑णम् ॥१२७.२॥
स्वर रहित मन्त्र
यौ ते बलास तिष्ठतः कक्षे मुष्कावपश्रितौ। वेदाहं तस्य भेषजं चीपुद्रुरभिचक्षणम् ॥
स्वर रहित पद पाठयौ । ते । बलास । तिष्ठत: । कक्षे । मुष्कौ । अपऽश्रितौ । वेद । अहम् । तस्य । भेषजम् । चीपुद्रु: । अभिऽचक्षणम् ॥१२७.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
रोग के नाश का उपदेश।
पदार्थ
(बलास) हे सन्निपात कफ आदि रोग ! (यौ) जो (ते) तेरी (मुष्कौ) दो गिलटिया (कक्षे) [रोगी की] काँख में (अपश्रितौ) आश्रय लिये हुए (तिष्ठतः) स्थित हैं। (अहम्) मैं (तस्य भेषजम्) उसकी ओषधि (वेद) जानता हूँ, (चीपुद्रुः) ग्रहण करने योग्य चीपुद्रु [ओषधि विशेष] (अभिचक्षणम्) औषध है ॥२॥
भावार्थ
वैद्य ज्वर, गिलटी आदि रोगों की यथावत् चिकित्सा करे ॥२॥
टिप्पणी
२−(यौ) (ते) तव (बलास) म० १। (तिष्ठतः) वर्तेते (कक्षे) रोगिणो बाहुमूले (मुष्कौ) अण्डरूपौ रोगग्रन्थी (अपश्रितौ) आश्रितौ (वेद) जानामि (अहम्) वैद्यः (तस्य) रोगस्य (भेषजम्) (चीपुद्रुः) चीवृ आदानसंवरणयोः−उ, पृषोदरादि। द्रुमविशेषः (अभिचक्षणम्) व्याधिनिवर्तकम् ॥
विषय
चीपुद्रु
पदार्थ
१. हे (बलास) = कास-श्वासादि रोग! (ते) = तेरे (यौ) = जो विसपर्क आदि विकार (कक्षे तिष्ठत:) = बाहमुल में स्थिर होते हैं और (मुष्कौ अपश्रितौ) = जो अण्डाकृति गिल्टियों बुरी तरह से उत्पन्न हो गई हैं, मैं (तस्य) = उसके (भेषजं वेद) = औषध को जानता हूँ। (चीपुद्रु:) = 'चीपुटु' नामवाला द्रुमविशेष (अभिचक्षणम्) = [अभिचक्ष्य निवर्तकम्] व्याधिमूल का सम्यक निवर्तक औषध है।
भावार्थ
बलास नामक रोग में विसपर्क आदि विकार बाहुमूल में उत्पन्न हो जाते हैं, गिल्टियाँ भी बुरी भाँति पीड़ित करने लगती हैं। 'चिपु?' उस रोग का औषध है। वह चीपुद्ध 'चीव आदानसंवरणयोः' रोग के मूलभूत दोष का आदान करके रोग के लिए द्वार बन्द कर देता है|
भाषार्थ
(बलास) हे बलक्षयकारी रोग [खांसी तथा श्वास रोग] (ते) तेरे (यौ) जो दो विकार (कक्षे) कोख अर्थात् बाहुमूल (तिष्ठत:) स्थित रहते हैं, और (मुष्कौ) दो अण्डों में (अपश्रितौ) आश्रित रहते हैं, (तस्य) उस विकार को (भेषजम्) औषध को (अहम्, वेद) मैं जानता हूं, [वह है] (चोपुद्रुः) चोपुद्रु (अभिचक्षणम्) जो कि रोग का साक्षात् दर्शन कर [उसका निवारण कर देती है], चक्षिङ् अयं दर्शनेऽपि (अदादिः)। मुष्कौ= मुष स्तेये (क्र्यादिः), ये हैं दो अण्ड, जो कि अण्डकोष में छिपे रहते हैं।
विषय
कफ आदि रोगों की चिकित्सा।
भावार्थ
हे (बलास) कफ से उत्पन्न गिल्टी के रोग ! (ते) तेरे से उत्पन्न (यो मुष्कौ) जो दो गिल्टियां (कक्षे) कांछ या बगल में (अप-श्रितौ) बुरी तरह से उठ आती हैं (तस्य भेषजम्) उसके ठीक करने की ओषधि को (अहम्) मैं (वेद) जानता हूँ। उसका (अभिचक्षणम्) नाम (चीपुद्र) चीपुद्र या ‘चीपु’ वृक्ष है। ‘चीपुद्रु’ या चीपु वृक्ष अज्ञात है। कदाचित् शिफा या जटामांसी यह पदार्थ है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भृग्वङ्गिरा ऋषिः। वनस्पतिरुत यक्ष्मनाशनं देवता। १-२ अनुष्टुभौ त्रिपदा जगती॥
इंग्लिश (4)
Subject
Yakshma-Nashanam
Meaning
O Balasa, consumptive disease, I know the cure of the two eruptions or nodules which form in the armpits or in the groin. The cure tried for sure is chipudru.
Translation
O wasting disease, the two swelling: of glands, which have sprung in your armpits - of those I know the remedy. Cipudru is a sure cure for that.
Translation
I, the physician know the medicine of this Balasa, the decline the nerves of which stand closely hidden in its groin and this medicine is the plant known as Chipadru.
Translation
Those two eruptions, Consumption! which stand closely hidden in thy groin-I know the medicine for them, Chipudru is their magic cure.
Footnote
Thy: A patient. I: A physician. Chipudru is an unknown plant or tree. The word does not occur elsewhere. Physicians should make a search after the nature and efficacy of this medicine No mention of this medicine is found in books on medicine.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(यौ) (ते) तव (बलास) म० १। (तिष्ठतः) वर्तेते (कक्षे) रोगिणो बाहुमूले (मुष्कौ) अण्डरूपौ रोगग्रन्थी (अपश्रितौ) आश्रितौ (वेद) जानामि (अहम्) वैद्यः (तस्य) रोगस्य (भेषजम्) (चीपुद्रुः) चीवृ आदानसंवरणयोः−उ, पृषोदरादि। द्रुमविशेषः (अभिचक्षणम्) व्याधिनिवर्तकम् ॥
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