अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 129/ मन्त्र 2
येन॑ वृ॒क्षाँ अ॒भ्यभ॑वो॒ भगे॑न॒ वर्च॑सा स॒ह। तेन॑ मा भ॒गिनं॑ कृ॒ण्वप॑ द्रा॒न्त्वरा॑तयः ॥
स्वर सहित पद पाठयेन॑ । वृ॒क्षान् । अ॒भि॒ऽअभ॑व: । भगे॑न । वर्च॑सा । स॒ह । तेन॑ । मा॒ । भ॒गिन॑म् । कृ॒णु॒ । अप॑ । द्रा॒न्तु॒ । अरा॑तय: ॥१२९.२॥
स्वर रहित मन्त्र
येन वृक्षाँ अभ्यभवो भगेन वर्चसा सह। तेन मा भगिनं कृण्वप द्रान्त्वरातयः ॥
स्वर रहित पद पाठयेन । वृक्षान् । अभिऽअभव: । भगेन । वर्चसा । सह । तेन । मा । भगिनम् । कृणु । अप । द्रान्तु । अरातय: ॥१२९.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
ऐश्वर्य पाने का उपदेश।
पदार्थ
[हे परमेश्वर !] (वर्चसा सह) तेज के साथ वर्तमान (येन भगेन) जैसे ऐश्वर्य से तू (वृक्षान्) सब स्वीकार योग्य पदार्थों से (अभ्यभवः) बढ़ गया है। (तेन) वैसे ऐश्वर्य से (मा) मुझको (भगिनम्) बड़े ऐश्वर्यवाला (कृणु) कर, (अरातयः) हमारे सब कंजूस स्वभाव (अप द्रान्तु) दूर भाग जावें ॥२॥
भावार्थ
मनुष्य परमेश्वर को सर्वश्रेष्ठ जान कर संसार में तेजस्वी और धनवान् होवें ॥२॥
टिप्पणी
२−(येन) यादृशेन (वृक्षान्) अ० ३।६।८। सर्वान् स्वीकरणीयान् पदार्थान् (अभ्यभवः) पराजितवानसि (भगेन) ऐश्वर्येण (वर्चसां सह) तेजसा सहितेन (तेन) तादृशेन (मा) माम् (भगिनम्) ऐश्वर्यवन्तम् (कृणु) कुरु। अन्यद्गतम्−म० १ ॥
विषय
वृक्ष का अभिभव
पदार्थ
१. हे प्रभो! (येन भगेन) = जिस ऐश्वर्य से (वर्चसा सह) = वर्चस् के साथ-रोगनिरोधक शक्ति के साथ (वृक्षान् अभि अभव:) = [वृक्षते to cover] बुद्धि को आच्छादित कर लेनेवाली लोभवृत्तियों को आप जीत लेते हो (तेन) = उस ऐश्वर्य से (मा भगिनं कृणु) = मुझे ऐश्वर्यशाली कीजिए। २. प्रभु हमें वह ऐश्वर्य प्राप्त कराएँ, जिसमें कि हम विलास के शिकार न बनकर वर्चस्वी बने रहें तथा जो ऐश्वर्य हमें लोभाभिभूत करके बुद्धिशून्य न कर दे। हे प्रभो! आपके अनुग्रह से (अरातयः अपद्रान्तु:) = अदानवृत्तियाँ हमसे दूर ही रहें। हम धनों का सदा लोकहित-यज्ञों में विनियोग करनेवाले बनें।
भावार्थ
मुझे ऐश्वर्य प्राप्त हो। मैं वर्चस्वी बनूँ और लोभाभिभूत न होकर दानवृत्तिवाला बना रहूँ।
भाषार्थ
हे इन्द्र [विद्युत्] (येन, भगेन, वर्चसा, सह) जिस निज ऐश्वर्य और दीप्ति के साथ तू (वृक्षान्) वृक्षों को (अभ्यभवः) अभिभूत, पराभूत करता है, (तेन) उस द्वारा (मा) मुझे (भगिनम्) ऐश्वर्य वाला (कृणु) कर, (अरातयः अपद्रान्तु) अर्थ पूर्ववत् (मन्त्र १)।
टिप्पणी
[इन्द्र अर्थात् विद्युत् के प्रपात द्वारा जङ्गल जल कर कोइला हो जाते हैं। कोइला ऐश्वर्य रूप है। इस ऐश्वर्य की प्राप्ति से अदान आदि अराति अवगत हो जाते हैं।]
विषय
राजा का ऐश्वर्यमय रूप।
भावार्थ
शंशपा वृक्ष (येन) जिस सामर्थ्य से बढ़कर (वृक्षान् अभि अभवः) और वृक्षों से शक्ति, कठोरता, दृढ़ता, बल और ऊँचाई में बढ़ जाता है और उनको दबा लेता है उसी प्रकार हे राजन् ! जिस ऐश्वर्य और तेज से तू परिपुष्ट होकर सब पुरुषों को अपने अधीन कर लेता है उस (भगेन वर्चसा सह) ऐश्वर्य और तेज से (मा भगिनं कृणु) मुझे भी ऐश्वर्यवान् कर और (अप द्रान्तु अरातयः) मेंरे शत्रु मुझ से दूर हों।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वाङ्गिरा ऋषिः। भगो देवता। अनुष्टुभः। तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Good Fortune
Meaning
O Lord, by the power, prosperity and excellence of light and lustre with which you exceed and transcend all things of beauty and grandeur cherished by all, pray bless me and make me excellent, and then, I pray, let all want, misery, meanness and miserliness flee away from me.
Translation
With what magnificence and splendour you have surpassed the trees, by that may you make me magnificent May the enemies, not paying our dues, run away helter-skelter.
Translation
O Almighty Lord! through Thy that strength power whereby Thou hast excelled the trees make me happy and fortunate and let troubles flee away from me.
Translation
That splendor and felicity, O God, wherewith Thou hast excelled all desirable objects-give me therewith a happy fate. May all our habits of niggardliness fly and begone.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(येन) यादृशेन (वृक्षान्) अ० ३।६।८। सर्वान् स्वीकरणीयान् पदार्थान् (अभ्यभवः) पराजितवानसि (भगेन) ऐश्वर्येण (वर्चसां सह) तेजसा सहितेन (तेन) तादृशेन (मा) माम् (भगिनम्) ऐश्वर्यवन्तम् (कृणु) कुरु। अन्यद्गतम्−म० १ ॥
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