अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 21/ मन्त्र 2
ऋषिः - शन्ताति
देवता - चन्द्रमाः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - केशवर्धनी ओषधि सूक्त
69
श्रेष्ठ॑मसि भेष॒जानां॒ वसि॑ष्ठं॒ वीरु॑धानाम्। सोमो॒ भग॑ इव॒ यामे॑षु दे॒वेषु॒ वरु॑णो॒ यथा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठश्रेष्ठ॑म् । अ॒सि॒ । भे॒ष॒जाना॑म् । वसि॑ष्ठम् । वीरु॑धानाम् । सोम॑: । भग॑:ऽइव । यामे॑षु । दे॒वेषु॑ । वरु॑ण: । यथा॑ ॥२१.२॥
स्वर रहित मन्त्र
श्रेष्ठमसि भेषजानां वसिष्ठं वीरुधानाम्। सोमो भग इव यामेषु देवेषु वरुणो यथा ॥
स्वर रहित पद पाठश्रेष्ठम् । असि । भेषजानाम् । वसिष्ठम् । वीरुधानाम् । सोम: । भग:ऽइव । यामेषु । देवेषु । वरुण: । यथा ॥२१.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
ब्रह्म के गुणों का उपदेश।
पदार्थ
(हे ब्रह्म !) तू (भेषजानाम्) भयनाशक पदार्थों में (श्रेष्ठम्) श्रेष्ठ और (वीरुधानाम्) विविध प्रकार से उगती हुई प्रजाओं के बीच (वसिष्ठम्) अत्यन्त धनवाला वा वसनेवाला (असि) है, (इव) जैसे (भगः) ऐश्वर्यवान् (सोमः) चन्द्रमा (यामेषु) चलनेवाले ताराओं के बीच, और (यथा) जैसे (वरुणः) सूर्य (देवेषु) प्रकाशमान पदार्थों में है ॥२॥
भावार्थ
मनुष्य सर्वश्रेष्ठ परमात्मा का आश्रय लेकर सदा पुरुषार्थ करें ॥२॥
टिप्पणी
२−(श्रेष्ठम्) प्रशस्यतमम् (असि) (भेषजानाम्) भयनाशकानां पदार्थानां मध्ये (वसिष्ठम्) अ० ४।२९।३। वसुमत्तमम्। अतिशयेन धनयुक्तम्। वस्तृतमम् (वीरुधानाम्) अ० १।३२।१। वि+रुह प्रादुर्भावे−क्विप्, टाप्। विरोहणशीलानां प्रजानां मध्ये (सोमः) चन्द्रमाः (भगः) भगवान्। ऐश्वर्यवान् (इव) यथा (यामेषु) या गतौ−मन्। गन्तृषु नक्षत्रेषु (देवेषु) प्रकाशमानेषु पदार्थेषु (वरुणः) अन्धकारनिवारकः सूर्यः ॥
विषय
भेषजानां श्रेष्ठम्, वीरुधानां वसिष्ठम्
पदार्थ
१. हे ओषधे! तू (भेषजानां श्रेष्ठम् असि) = औषधों में श्रेष्ठ है, (वीरुधानाम्) = बेलों व लताओं में (वसिष्ठम्) = सर्वोत्तम निवास का साधन है। २. (इव) = जैसे (यामेषु) = जीवन के सब कालों में (सोमः) = सोम [वीर्य] (भग:) = सर्वोत्तम ऐश्वर्य है और (यथा) = जैसे (देवेषु) = सब देवों में (वरुणः) = कष्टों का निवारक प्रभु श्रेष्ठ है, वैसे ही यह औषध भी श्रेष्ठ है।
भावार्थ
औषध की क्षमता में विश्वास रखते हुए हम औषध-प्रयोग करेंगे तो वह अवश्य रोग को दूर करेगी।
भाषार्थ
हे भेषज ! तू (भेषजानाम् ) भेषजों में (श्रेष्ठम्, असि) श्रेष्ठ है, (वीरुधानाम् ) विरोहण करने वाली लता-वनस्पतियों में तू (वसिष्ठम्) वसुवत्तम अर्थात् श्रेष्ठ सम्पत् रूप है। (यामेषु) रात और दिन के कालों में तू (सोमः) चन्द्रमा और (भगः इव ) सूर्य के सदृश है, (देवेषु) देवों में (यथा) जैसे (वरुणः) वरणीय परमेश्वर सर्वोत्तम है, [वैसे भेषजों में तू सर्वोत्तम भेषज है]।
विषय
वीर्यवती ओषधियों के संग्रह करने का उपदेश।
भावार्थ
हे ओषधे ! तू ही (भेषजानाम् श्रेष्ठम् असि) सब रोगहारी औषधों में श्रेष्ठ है ओर (वीरुधानाम्) नाना प्रकार की उगनेहारी बेल बूटियों में सब से अधिक (वसिष्ठम् असि) उत्तम रस और गुणों और वीर्यों से युक्त है। जिस प्रकार (ग्रामेषु सोमः भग इव) दिन और रात के में चन्द्र शान्तिदायक और सूर्य तेजस्वी है उसी प्रकार तू भी सब भेषजों में उत्तम शान्तिदायक और वीर्यवान् है। और (देवेषु) सब प्रकाशमान पदार्थों में या राजाओं में सब का प्रकाशक (यथा वरुणः) जैसे सर्वश्रेष्ठ वरुण = चुना हुआ राजा या परमात्मा हैं उसी प्रकार तू भी सर्वश्रेष्ठ है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शंतातिर्ऋषिः। चन्द्रमा देवता। १-३ अनुष्टुभः। तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Kesha Vardhani Oshadhi
Meaning
Of these herbs and essences, 0 Brahma, you are the best and highest, most brilliant for rehabilitation of patients. Just as the moon is most glorious among stars and the sun is among the refulgents, so are you among herbs and trees for rehabilitation.
Translation
You are the best among medicines, most desirable among plants; asthe moon is Lord among the stars (Yama) and the ocean among. the bounties of nature.
Translation
This medicine is best of all medicines, it is most excellent in prophylactic properties among all the plants, it is like the shinning moon amid stars and the sun amid brilliant planets.
Translation
O God, Thou art the Best of all fear-banishing objects, Most Excellent of progressing subjects art Thou, just as Moon is best "mid the wandering stars, and the sun is most excellent amongst the lustrous objects!
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(श्रेष्ठम्) प्रशस्यतमम् (असि) (भेषजानाम्) भयनाशकानां पदार्थानां मध्ये (वसिष्ठम्) अ० ४।२९।३। वसुमत्तमम्। अतिशयेन धनयुक्तम्। वस्तृतमम् (वीरुधानाम्) अ० १।३२।१। वि+रुह प्रादुर्भावे−क्विप्, टाप्। विरोहणशीलानां प्रजानां मध्ये (सोमः) चन्द्रमाः (भगः) भगवान्। ऐश्वर्यवान् (इव) यथा (यामेषु) या गतौ−मन्। गन्तृषु नक्षत्रेषु (देवेषु) प्रकाशमानेषु पदार्थेषु (वरुणः) अन्धकारनिवारकः सूर्यः ॥
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