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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 30 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 30/ मन्त्र 3
    ऋषिः - उपरिबभ्रव देवता - शमी छन्दः - चतुष्पदा शङ्कुमत्यनुष्टुप् सूक्तम् - पापशमन सूक्त
    60

    बृह॑त्पलाशे॒ सुभ॑गे॒ वर्ष॑वृद्ध॒ ऋता॑वरि। मा॒तेव॑ पु॒त्रेभ्यो॑ मृड॒ केशे॑भ्यः शमि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    बृह॑त्ऽपलाशे । सुऽभ॑गे । वर्ष॑ऽवृध्दे । ऋत॑ऽवरि । मा॒ताऽइ॑व । पु॒त्रेभ्य॑: । मृ॒ड॒ । केशे॑भ्य: । श॒मि॒ ॥३०.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    बृहत्पलाशे सुभगे वर्षवृद्ध ऋतावरि। मातेव पुत्रेभ्यो मृड केशेभ्यः शमि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    बृहत्ऽपलाशे । सुऽभगे । वर्षऽवृध्दे । ऋतऽवरि । माताऽइव । पुत्रेभ्य: । मृड । केशेभ्य: । शमि ॥३०.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 30; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (5)

    विषय

    विद्या के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (बृहत्पलाशे) हे बहुत पालन शक्ति से व्याप्त ! (सुभगे) हे बड़े ऐश्वर्यवाली ! (वर्षबुद्धे) हे वरणीय गुणों से बढ़ी हुई ! (ऋतावरि) हे सत्यशीला ! (शमि) हे शान्तिकारिणी सरस्वती ! (केशेभ्यः) प्रकाशों के लिये (मृड) सुखी हो, (माता इव) जैसे माता (पुत्रेभ्यः) पुत्रों के लिये ॥३॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य सत्कारपूर्वक विद्या को प्राप्त करते हैं, उन्हें वह ऐसे सुख देती है जैसे माता पुत्रों को ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(बृहत्पलाशे) पल रक्षणे−अप्+अशूङ् व्याप्तौ संघाते च−अण्। बहूनि पलानि पालनानि अश्नुते व्याप्नोति सा। तत्सम्बुद्धौ, (सुभगे) हे बह्वैश्वर्यवति (वर्षवृद्धे) वृतॄवदि०। उ० ३।६२। इति वृञ् वरणे−स प्रत्ययः। वर्षैर्वरणीयगुणैः प्रवृद्धे (ऋतावरि) अ० ५।१५।१। हे सत्यशीले (माता इव) जननी यथा (पुत्रेभ्यः) सन्तानेभ्यः (मृड) सुखयुक्ता भव (केशेभ्यः) म० २ प्रकाशेभ्यः (शमि) हे शान्तिकारिणि सरस्वति ॥

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    विषय

    'केशवर्धनकारी' शमीरस

    पदार्थ

    १. हे शमि-शमीवृक्ष! तू (केशेभ्यः) = बालों के लिए उसी प्रकार मृड-सुख करनेवाली हो, इव-जैसे माता पुत्रेभ्यः-माता पुत्रों को सुखी करती है। माता पुत्रों की वृद्धि का कारण बनती है, तू बालों को बढ़ानेवाली हो। २. तू (बृहत् पलाशे) = बढ़े हुए पत्तोंवाली है, (सुभगे) = उत्तम ऐश्वर्यशाली-शरीर को सुन्दर बनानेवाली (वर्षवृद्धे) = वृष्टिजल से वृद्धि को प्राप्त हुई-हुई व (ऋतावरि)= -जलवाली है-रसवाली है।

    भावार्थ

    शमीवृक्ष का रस बालों का इसप्रकार वर्धन करता है, जैसे माता पुत्रों का वर्धन करती है।

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    भाषार्थ

    (बृहत्पलाशे ) वड़े या बहुत पत्तों वाली, (सुभगे) सौभाग्यकारिणी, (वर्षवद्धे) वर्षा द्वारा बढ़ने वाली, (ऋतावरि) यज्ञकर्म वाली (शमि) हे शमी ! (केशेभ्यः ) हमारे केशों के लिये (मृड) सुखकारी हो, (इव ) जैसे (माता पुत्रेभ्यः) पुत्रों के लिये सुखकारी होती है।

    टिप्पणी

    [मन्त्र में शमी के सव विशेषण स्त्रीलिङ्ग में हैं, इन से प्रतीत होता है कि शमी लतारूप है। केशों के लिये शमी का सुखकारी होने का केवल यह अभिप्राय प्रतीत होता है कि हम खल्वाट न हों, गंजे न हों। क्योंकि मन्त्र (२) में अवकेश और विकेश पुरुष को उपहास-योग्य कहा है। ऋत = यज्ञ (सायण) ऋतावरी=ऋत+वनिप्+र+ङीप् ("छन्दसी वनिपौ", अष्टा० ५।२।१०९; तथा "वनो र च", अष्टा० ४।१७)। मन्त्र के ऋषि हैं "उपरिवभ्रवः" ऊपर अर्थात् ऊपर के लोकों में स्थित भरण-पोषण करने वाले, इन्द्र और मरुतः (मन्त्र १)। शमी शब्द द्व्यर्थक है। अतः इन दोनों का वर्णन मन्त्र २, ३ में हुआ है]।

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    भाषार्थ

    (बृहत्पलाशे ) वड़े या बहुत पत्तों वाली, (सुभगे) सौभाग्यकारिणी, (वर्षवद्धे) वर्षा द्वारा बढ़ने वाली, (ऋतावरि) यज्ञकर्म वाली (शमि) हे शमी ! (केशेभ्यः ) हमारे केशों के लिये (मृड) सुखकारी हो, (इव ) जैसे (माता पुत्रेभ्यः) पुत्रों के लिये सुखकारी होती है।

    टिप्पणी

    [मन्त्र में शमी के सव विशेषण स्त्रीलिङ्ग में हैं, इन से प्रतीत होता है कि शमी लतारूप है। केशों के लिये शमी का सुखकारी होने का केवल यह अभिप्राय प्रतीत होता है कि हम खल्वाट न हों, गंजे न हों। क्योंकि मन्त्र (२) में अवकेश और विकेश पुरुष को उपहास-योग्य कहा है। ऋत = यज्ञ (सायण) ऋतावरी=ऋत+वनिप्+र+ङीप् ("छन्दसीवनिपौ", अष्टा० ५।२।१०९; तथा "वनो र च", अष्टा० ४।१।७)। मन्त्र के ऋषि हैं "उपरिवभ्रवः" ऊपर अर्थात् ऊपर के लोकों में स्थित भरण-पोषण करने वाले, इन्द्र और मरुतः (मन्त्र १)। शमी शब्द द्व्यर्थक है। अतः इन दोनों का वर्णन मन्त्र २, ३ में हुआ है]।

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    विषय

    राजा के कर्त्तव्य

    भावार्थ

    (शमि) हे शमि ! हे शान्तिकारिणी राजशक्ते ! राजसभे ! हे (बृहत्पलाशे) बड़े ज्ञान सम्पन्न पुरुषों से सम्पन्न, हे (सुभगे) ऐश्वर्य सम्पन्न ! हे (वर्षवृद्धे) सुखादि वर्षण करने में सबसे अधिक बलशालिनी हे (ऋतावरी) सब सत्य ज्ञान = विज्ञान एवं कानून की रक्षा करने वाली ! तू (केशेभ्यः) देशों को, राष्ट्र के सुन्दर मूर्धन्य पुरुषों को (पुत्रेभ्यः माता इव) पुत्रों को माता के समान (मृड) सुखी कर।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    उपरिबभ्रव ऋषिः। शमी देवता। १ जगती। २ त्रिष्टुप्। ३ चतुष्पदा ककुम्मती अनुष्टुप्। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Shami the Sanative

    Meaning

    O Shatavari Shami with large leaves, holy and generously rich, growing luxuriant by rains, pray be kind and efficacious for the growth of luxurious hair, gracious as a mother to the child.

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    Translation

    O sam, having large leaves, fortunate one, growing in rains, O righteous one, may you be pleasing to hair like a mother to her sons

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    Translation

    This shami tree which is auspicious, which is nurtured by the rain, which has big leaves, which has fiery substances inside, Let it make happy our children like mother and be useful for hair.

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    Translation

    O solace-bestowing Vedic knowledge, thou art equipped with immense power of protection, thou art auspicious, exalted through laudable merits, thou, the embodiment of truth, be gracious to the manifestation of knowledge, like a mother to her sons!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(बृहत्पलाशे) पल रक्षणे−अप्+अशूङ् व्याप्तौ संघाते च−अण्। बहूनि पलानि पालनानि अश्नुते व्याप्नोति सा। तत्सम्बुद्धौ, (सुभगे) हे बह्वैश्वर्यवति (वर्षवृद्धे) वृतॄवदि०। उ० ३।६२। इति वृञ् वरणे−स प्रत्ययः। वर्षैर्वरणीयगुणैः प्रवृद्धे (ऋतावरि) अ० ५।१५।१। हे सत्यशीले (माता इव) जननी यथा (पुत्रेभ्यः) सन्तानेभ्यः (मृड) सुखयुक्ता भव (केशेभ्यः) म० २ प्रकाशेभ्यः (शमि) हे शान्तिकारिणि सरस्वति ॥

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