अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 34/ मन्त्र 2
यो रक्षां॑सि नि॒जूर्व॑त्य॒ग्निस्ति॒ग्मेन॑ शो॒चिषा॑। स नः॑ पर्ष॒दति॒ द्विषः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठय: । रक्षां॑सि । नि॒ऽजूर्व॑ति । अ॒ग्नि: । ति॒ग्मेन॑ । शो॒चिषा॑ । स:। न॒: । प॒र्ष॒त् । अति॑ । द्विष॑: ॥३४.२॥
स्वर रहित मन्त्र
यो रक्षांसि निजूर्वत्यग्निस्तिग्मेन शोचिषा। स नः पर्षदति द्विषः ॥
स्वर रहित पद पाठय: । रक्षांसि । निऽजूर्वति । अग्नि: । तिग्मेन । शोचिषा । स:। न: । पर्षत् । अति । द्विष: ॥३४.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
शत्रुओं के नाश का उपदेश।
पदार्थ
(यः) जो (अग्निः) ज्ञानस्वरूप परमेश्वर (तिग्मेन) तीव्र (शोचिषा) तेज से (रक्षांसि) राक्षसों को (निजूर्वति) मार गिराता है। (स) वह (द्विषः) वैरियों को (अति) उलाँघ कर (नः) हमें (पर्षत्) भरपूर करे ॥२॥
भावार्थ
जैसे अग्नि के प्रकाश से अन्धकार नष्ट होता है, वैसे ही मनुष्य परमेश्वर के ज्ञान से अज्ञान मिटावें ॥२॥
टिप्पणी
२−(रक्षांसि) राक्षसान्। दारिद्र्यादिदोषान् (निजूर्वति) जुर्व वधे। निहन्ति (तिग्मेन) तीक्ष्णेन (शोचिषा) तेजसा। अन्यद् गतम् ॥
विषय
प्रभु की तीव्र ज्ञान-ज्योति में द्वेषान्धकार का विलय
पदार्थ
१. (य:) = जो (अग्नि:) = अग्रणी प्रभु (तिग्मेन शोचिषा) = बड़ी तीव्र ज्ञानदीसि से रक्षांसि (निजूर्वति) = राक्षसीवृत्तियों को नष्ट करते है, २. (यः) = जो प्रभु (परस्याः परावतः) = अत्यन्त दूर देश से (धन्य तिर:) = [धन्व-अन्तरिक्ष-नि०१.३] अन्तरिक्ष को भी पार करके (अतिरोचते) = अतिशयेन देदीप्यमान है, ३. (य:) = जो प्रभु (विश्वा भुवना) = सब प्राणियों व लोकों को (अभि-विपश्यति) = आभिमुख्येन अलग-अलग देखता है (च) = तथा (संपश्यति) = मिलकर देखता है, अर्थात् वे प्रभु एक-एक प्राणी का अलग-अलग भी रक्षण करते हैं और समूहरूप में भी रक्षण करते हैं। ४, (य:) = जो (अग्नि:) = अग्रणी प्रभु (अस्य रजस: पारे) = इस लोकसमूह से परे (शुक्रः अजायत) = देदीप्यमान शुद्धस्वरूप में प्रादुर्भूत हो रहे हैं ('पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि'), (सः) = वे प्रभु (नः) = हमें (द्विषः अतिपर्षत्) = द्वेष की सब भावनाओं से पार करें।
भावार्थ
हम प्रभु का स्मरण करें, सर्वत्र प्रभु की ज्योति को देखें, उसे ही सबका पालक जानें, उसे ही इस ब्रह्माण्ड से परे शुद्ध ज्योति के रूप में सोचें। यह स्मरण हमें देष की भावनाओं से ऊपर उठाएगा।
विशेष
द्वेष से ऊपर उठकर प्रभु का आलिङ्गन करनेवाला यह कौशिक' बनता है [कुश संश्लेषे]। यही अगले सूक्त का ऋषि है।
भाषार्थ
(यः) जो (अग्नि: ) अर्थात् सर्वाग्रणी परमेश्वर (रक्षांसि) राक्षसी भावों की, (तिग्मेन शोचिषा ) तिग्म प्रकाश द्वारा (निजूर्वति) नितरां हिंसा करता है (सः) वह पूर्ववत् ( मन्त्र १)।
टिप्पणी
[परमेश्वर की स्तुति भक्तिपूर्वक करनी चाहिये। स्तुति द्वारा वह प्रकट होकर हमारे निकृष्ट भावों का विनाश करता है। मन्त्र में तिग्म प्रकाश वाली अग्नि द्वारा रोगजनक कीटाणुओं के विनाश की भी सूचना है । जूर्वति वधकर्मा (निघं० २।१९)]।
विषय
परमेश्वर की स्तुति, प्रार्थना।
भावार्थ
(यः) जो ईश्वर (अग्निः) अग्नि, अग्रणी, नेता होकर अपने (तिग्मेन) तीक्ष्ण (शोचिषा) प्रताप तेज से (रक्षांसि) विघ्नकारियों अर्थात् काम क्रोध आदि को (निजूर्वति) भून डालता और लुंजा कर देता है। (सः न द्विषः अतिपर्षत्) वह हमें हमारे इन शत्रुओं से पार कर दे।
टिप्पणी
(द्वि०) ‘वृषा शुक्रेण’ इति ऋ०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
चातन ऋषिः। अग्निर्देवता। १-५ गायत्र्यः पंचर्चं सूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
Splendour of Divinity
Meaning
May Agni, who with his intense light, fire and splendour destroys evil and evil doers in nature and humanity, bring us showers of wealth, power and excellence beyond the reach of hate, jealousy and enmity.
Translation
The adorable Lord, who destroys the harmful influences (raksas) with His intense blaze, may He get us past our enemies well-protected
Translation
He is the self-effulgent Lord who with His Sharp Knowledge destroys all evils. May remove our internal enemies—greed, aversion etc.
Translation
May that God, Who consumes our devilish sentiments with His sharp Splendor, bear us past our foes.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(रक्षांसि) राक्षसान्। दारिद्र्यादिदोषान् (निजूर्वति) जुर्व वधे। निहन्ति (तिग्मेन) तीक्ष्णेन (शोचिषा) तेजसा। अन्यद् गतम् ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal