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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 60 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 60/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अथर्वा देवता - अर्यमा छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - पतिलाभ सूक्त
    66

    धा॒ता दा॑धार पृथि॒वीं धा॒ता द्यामु॒त सूर्य॑म्। धा॒तास्या अ॒ग्रुवै॒ पतिं॒ दधा॑तु प्रतिका॒म्यम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    धा॒ता । दा॒धा॒र॒ । पृ॒थि॒वीम् । धा॒ता । द्याम् । उ॒त । सूर्य॑म् । धा॒ता । अ॒स्यै । अ॒ग्रुवै॑ । पति॑म् । पति॑म् । दधा॑तु । प्र॒ति॒ऽका॒म्य᳡म् ॥६०.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    धाता दाधार पृथिवीं धाता द्यामुत सूर्यम्। धातास्या अग्रुवै पतिं दधातु प्रतिकाम्यम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    धाता । दाधार । पृथिवीम् । धाता । द्याम् । उत । सूर्यम् । धाता । अस्यै । अग्रुवै । पतिम् । पतिम् । दधातु । प्रतिऽकाम्यम् ॥६०.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 60; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    गृहस्थ आश्रम में प्रवेश का उपदेश।

    पदार्थ

    (धाता) विधाता ने (पृथिवीम्) पृथिवी को, (उत) और (धाता) विधाता ने (द्याम्) आकाश और (सूर्यम्) सूर्य को (दाधार) धारण किया। (धाता) वही विधाता (अस्यै) इस (अग्रुवै) उद्योगशील कन्या को (प्रतिकाम्यम्) प्रतिज्ञा करके चाहने योग्य (पतिम्) पति (दधातु) देवे ॥३॥

    भावार्थ

    जैसे परमात्मा सब संसार के धारण-पोषण में समर्थ है, वैसे ही कन्या और कुमार [उपलक्षण से] विद्या और धन आदि से समर्थ होकर गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करें ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(धाता) विधाता सर्वकर्त्ता (दाधार) तुजादीनां दीर्घोऽभ्यासस्य। पा० ६।१।७। इत्यभ्यासस्य दीर्घः। दाधार। धृतवान् (पृथिवीम्) विस्तृतां भूमिम् (धाता) (द्याम्) आकाशम् (उत) अपि च (सूर्यम्) लोकानां प्रेरकमादित्यम् (धाता) (अस्यै) प्रसिद्धायै (अग्रुवै) म० ३। उद्योगवत्यै कन्यायै (पतिम्) भर्तारम् (दधातु) ददातु (प्रतिकाम्यम्) अ० २।३६।५। प्रति प्रतिज्ञया कमनीयम् ॥

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    विषय

    प्रतिकाम्य पति

    पदार्थ

    १. कन्या-पिता प्रभु से प्रार्थना करता है कि (धाता) = सर्वाधार प्रभो! आप (पृथिवीं दाधार) = पृथिवी का धारण करते हैं, (धाता) = सर्वाधार आप ही (द्याम्) = घुलोक का (उत) = और (सूर्यम्) = सूर्य का धारण करते हैं। (धाता) = धाता आप ही (अस्यै अमुवै) = इस पतिकामा कन्या के लिए (प्रतिकाम्यम्) = आभिमुख्येन कामयितव्य (पतिं दधातु) = पति प्रास कराएँ।

    भावार्थ

    कन्या का पिता प्रभु से प्रार्थना करता है कि हे प्रभो! आप ही सबके आधार हो। इस कन्या को भी आपने ही आधार देना है। इसके लिए आप ही योग्य वर प्राप्त कराएँगे।

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    भाषार्थ

    (धाता) विधाता ने (पृथिवीम्) पृथिवी को (दाधार) धारित किया है (धाता) विधाता ने (द्याम्) द्युलोक को (उत) तथा (सूर्यम्) सूर्य को धारित किया है। (धाता) विधाता (अस्यै) इस (अग्रुवै) अग्रगण्या कन्या के लिये (प्रसिकाम्यम्) यथेष्ट (पतिम्) पति (दधातु) प्रदान करे, अथवा उसे परिपोषित करे।

    टिप्पणी

    [सूक्त के मन्त्र १, २ में अर्यमा से प्रार्थना की गई है। मन्त्र ३ में अर्यमा को धाता कहा है। उस धाता ने सूर्य का भी धारण किया हुआ है। अतः मन्त्र १ में भी अर्यमा द्वारा परमेश्वरार्थ ही अभीष्ट है न कि सूर्य अर्थात् आदित्य। अतः तीनों मन्त्रों में एकार्थता सम्पन्न हो जाती है।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Marriage

    Meaning

    The creator holds and sustains the earth mother, the creator holds and sustains the heavens and the father sun. So, may the lord creator and sustainer bless this virgin with a husband in response to her cherished desire.

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    Translation

    The sustainer Lord (dhsti) upholds the earth, the sustainer ` Lord upholds ‘the sky and also the sun. May the sustainer Lord grant to this maid, a husband such as she desires. (according to her wish).

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    Translation

    The upholder or ordainer of the universe upholds the earth, He upholds the heavenly region and He upholds the sun, May the Upholder of the world give to this girl a husband Suited to her wish and choice.

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    Translation

    God upholds the spacious earth, upholds the sky, upholds the sun. O God, bestow upon this maid, a husband suited to her wish.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(धाता) विधाता सर्वकर्त्ता (दाधार) तुजादीनां दीर्घोऽभ्यासस्य। पा० ६।१।७। इत्यभ्यासस्य दीर्घः। दाधार। धृतवान् (पृथिवीम्) विस्तृतां भूमिम् (धाता) (द्याम्) आकाशम् (उत) अपि च (सूर्यम्) लोकानां प्रेरकमादित्यम् (धाता) (अस्यै) प्रसिद्धायै (अग्रुवै) म० ३। उद्योगवत्यै कन्यायै (पतिम्) भर्तारम् (दधातु) ददातु (प्रतिकाम्यम्) अ० २।३६।५। प्रति प्रतिज्ञया कमनीयम् ॥

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