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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 70 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 70/ मन्त्र 2
    ऋषिः - काङ्कायन देवता - अघ्न्या छन्दः - जगती सूक्तम् - अघ्न्या सूक्त
    53

    यथा॑ ह॒स्ती ह॑स्ति॒न्याः प॒देन॑ प॒दमु॑द्यु॒जे। यथा॑ पुं॒सो वृ॑षण्य॒त स्त्रि॒यां नि॑ह॒न्यते॒ मनः॑। ए॒वा ते॑ अघ्न्ये॒ मनोऽधि॑ व॒त्से नि ह॑न्यताम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यथा॑ । ह॒स्ती । ह॒स्ति॒न्या: । प॒देन॑ । प॒दम् । उ॒त्ऽयु॒जे । यथा॑ । पुं॒स: । वृ॒ष॒ण्य॒त: । स्त्रि॒याम् । नि॒ऽह॒न्यते॑ । मन॑: । ए॒व । ते॒ । अ॒घ्न्ये॒ । मन॑: । अधि॑ । व॒त्से । नि । ह॒न्य॒ता॒म् ॥७०.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यथा हस्ती हस्तिन्याः पदेन पदमुद्युजे। यथा पुंसो वृषण्यत स्त्रियां निहन्यते मनः। एवा ते अघ्न्ये मनोऽधि वत्से नि हन्यताम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यथा । हस्ती । हस्तिन्या: । पदेन । पदम् । उत्ऽयुजे । यथा । पुंस: । वृषण्यत: । स्त्रियाम् । निऽहन्यते । मन: । एव । ते । अघ्न्ये । मन: । अधि । वत्से । नि । हन्यताम् ॥७०.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 70; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    परमेश्वर की भक्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    (यथा) जैसे (हस्ती) हाथी (हस्तिन्याः) हथिनी के (पदेन) पदचिह्न से (पदम्) अपना पद (उद्युजे) बढ़ाये जाता है। (यथा) जैसे... म० १ ॥२॥

    भावार्थ

    मन्त्र एक के समान है ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(यथा) (हस्ती) हस्ताज्जातौ। पा० ५।२।१३३। इति−णिनि। गजः (हस्तिन्याः) करेण्वाः (पदम्) पादम् (उद्युजे) युजिर् योगे, छान्दसो विकरणस्य लुक्। उद्युङ्क्ते। उन्नमयति। अन्यत्पूर्ववत् ॥

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    विषय

    अध्या और वत्स

    पदार्थ

    १. (यथा) = जैसे (मांसम्) = फल का गूदा (यथा) = जैसे (सुरा) = मेघजल और (यथा) = जैसे (अधिदेवने) = [अधि परि दीव्यन्ति कितव:] द्यूत-स्थान में (अक्षा:) = पासे प्रियतम होते हैं और (यथा) = जैसे (वृषण्यतः पुंसः) = सुरतार्थी पुरुष का (मन:) = मन स्(त्रियां निहन्यते) = स्त्री के प्रति झुकाववाला होता है (एव) = उसी प्रकार हे अध्ये कभी भी नष्ट न करने योग्य वेदवाणि! (ते) = तेरा (मन:) = मन (अधिवत्से) = [वदति] इस स्वाध्यायशील व्यक्ति पर (निहन्यताम्) = प्रह्रीभूत हो। जिस प्रकार मांस आदि प्रेमास्पद होते है, इसीप्रकार मैं वत्स तेरा प्रेमास्पद बन पाऊँ, अर्थात् मैं कभी तुझसे पृथक् न होऊँ। २. (यथा) = जैसे (हस्ती) = हाथी (हस्तिन्या: पदम्) = हथिनी के पैर को (पदेन) = अपने पैर से प्रेमपूर्वक (उद्युजे) = ऊपर उठाता है, जैसे सुरतार्थी पुरुष का मन स्त्री के प्रति प्रेमवाला होता है, उसी प्रकार इस वेदवाणी का मन मेरे प्रति प्रेमवाला हो। ३. (यथा) = जैसे (प्रधि:) = लोहे का हल लकड़ी के बने भीतरी चक्र पर रहता है, (यथा) = जैसे (उपधिः) = लकड़ी का चक्र अरों के द्वारा भीतरी धुरे पर रहता है, (यथा नाभ्यम्) = जैसे बीच का धुरा (अधिप्रधौ) = क्रम से अरों और लकड़ी के चक्रसहित अरों पर आ जाता है। जैसे सुरतार्थी पुरुष का मन स्त्री पर गड़ा होता है, उसी प्रकार वेदवाणी का मन मुझ [वत्स] पर गड़ा हो।

    भावार्थ

    वेदवाणी का अध्ययन ही हमारा मांस हो, यही हमारी शराब वा मेघजल हो। यही हमारी द्यूतक्रीड़ा हो, यही हमारा प्रेमालिङ्गन हो। वेदवाणी हथिनी हो तो मैं उसका हाथी बनूँ। प्रधि, उपधि, नभ्य आदि जैसे परस्पर जुड़े होते हैं उसी प्रकार मैं और वेदवाणी जुड़े हुए हों। मैं कभी वेदाध्ययन का परित्याग न काँ। वेदवाणी अन्या गौ हो, मैं उसका वत्स [बछड़ा] बनें।

    विशेष

    यह वेदवाणी का वत्स 'ब्रह्मा' बनता है-ज्ञानी बनता है। यही ज्ञानी अन्नदोष व प्रतिग्रहदोष से बचने के लिए यत्नशील होता है।

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    भाषार्थ

    (यथा) जैसे (हस्ती) हाथी (हस्तिन्याः) हथिनों के (पदेन) पग के अनुकल (पदम्) निज पद को प्रेमवश हुआ (उद्युजे) उद्-युक्त करता है, चलते समय उठाता है, (यथा) जैसे (वृषण्यतः) कामाभिलाषी (पुंसः) पुरुष का (मनः) मन (स्त्रियाम्) स्त्री में (निहन्यते) प्रह्वीभूत हो जाता है, (एवा) इसी प्रकार (अघ्न्ये) हे अहन्तव्ये ! (ते मनः) तेरा मन (वत्से अधि) वत्स में (निहन्यताम्) प्रह्वीभूत हो जाय। भाव पूर्ववत् मन्त्र १)।

    टिप्पणी

    [उद्यूजे=उद्युङ्क्ते। "लोपस्त आत्मनेपदेषु" (अष्टा० ७।१।४१) द्वारा "त" का लोप तथा छान्दस विकरण का लुक् (सायण)]।

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    विषय

    माता के प्रति उपदेश।

    भावार्थ

    उसी विषय को और भी स्पष्ट करते हैं। (यथा) जिस प्रकार (हस्ती) हस्तक्रिया में कुशल, वर (हस्तिन्याः) हस्तक्रिया में कुशल, वधू के (पदेन) पैर के साथ अपना (पदम्) पांव (उद्-युजे) सप्तपदी विधि में उठाता है। (यथा पुंसः वृषण्यतः मनः स्त्रियां निहन्यते) और जिस प्रकार वीर्यवान् ब्रह्मचारी पुरुष का मन स्त्री पर रत होजाता है, (एवा अघ्न्ये ते मनः वत्से अधि निहन्यताम्) उसी प्रकार हे माता ! तेरा मन अपने पुत्र के साथ लगा रहे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कांकायन ऋषिः। अघ्न्या देवता जगती। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    The Cow

    Meaning

    Just as an elephant goes forward by the foot¬ steps of the she-elephant, as the mind of the exuberant lover is centred on his wife, so may your loyalty, O inviolable people, be dedicated to the universal personality of the land and its culture and tradition.

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    Translation

    As a male elephant passes his foot against the foot of a Cow- elephant; as the mind of a passionate man is attached to a woman; so, O inviolable one, let your mind be attached to your calf.

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    Translation

    As the male elephant follows the steps of his female in the same way let the mind of this cow be firmly set upon her calf etc. etc.

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    Translation

    As the male elephant pursues with eager step his female's track, just as a strong man's desire is firmly set upon a dame, so let thy heart and soul, O unassailable subjects be firmly set upon the All-pervading God.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(यथा) (हस्ती) हस्ताज्जातौ। पा० ५।२।१३३। इति−णिनि। गजः (हस्तिन्याः) करेण्वाः (पदम्) पादम् (उद्युजे) युजिर् योगे, छान्दसो विकरणस्य लुक्। उद्युङ्क्ते। उन्नमयति। अन्यत्पूर्ववत् ॥

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