अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 78/ मन्त्र 3
ऋषिः - अथर्वा
देवता - त्वष्टा
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - धनप्राप्ति प्रार्थना सूक्त
64
त्वष्टा॑ जा॒याम॑जनय॒त्त्वष्टा॑स्यै॒ त्वां पति॑म्। त्वष्टा॑ स॒हस्र॒मायुं॑षि दी॒र्घमायुः॑ कृणोतु वाम् ॥
स्वर सहित पद पाठत्वष्टा॑ । जा॒याम् । अ॒ज॒न॒य॒त् । त्वष्टा॑ । अ॒स्यै॒ । त्वाम् । पति॑म् । त्वष्टा॑ । स॒हस्र॑म् । आयूं॑षि । दी॒र्घम् । आयु॑: । कृ॒णो॒तु॒ । वा॒म् ॥७८.३॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वष्टा जायामजनयत्त्वष्टास्यै त्वां पतिम्। त्वष्टा सहस्रमायुंषि दीर्घमायुः कृणोतु वाम् ॥
स्वर रहित पद पाठत्वष्टा । जायाम् । अजनयत् । त्वष्टा । अस्यै । त्वाम् । पतिम् । त्वष्टा । सहस्रम् । आयूंषि । दीर्घम् । आयु: । कृणोतु । वाम् ॥७८.३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
गृहस्थ के धर्म का उपदेश।
पदार्थ
(त्वष्टा) विश्वकर्मा परमेश्वर ने [तेरे हित के लिये] (जायाम्) वीरों को उत्पन्न करनेवाली पत्नी को, और (त्वष्टा) विश्वकर्मा ने (अस्यै) इस पत्नी के लिये (त्वाम्) तुझे (पतिम्) पति (अजनयत्) उत्पन्न किया है। (त्वष्टा) वही विश्वकर्मा (सहस्रम्=सहस्राणि) बल देनेवाले (आयूंषि) जीवनसाधन और (दीर्घम्) दीर्घ (आयुः) आयु (वाम्) तुम दोनों के लिये (कृणोतु) करे ॥३॥
भावार्थ
जो स्त्री-पुरुष परमेश्वर की आज्ञा मान कर परस्पर हित करते हैं, वे अनेक प्रकार की वृद्धि करके अति आनन्द और कीर्ति पाते हैं ॥३॥
टिप्पणी
३−(त्वष्टा) अ० २।५।६। विश्वकर्मा परमेश्वरः। तुभ्यमिति शेषः (जायाम्) म० १। वीरजननीं वधूम् (अजनयत्) उदपादयत् (त्वष्टा) (अस्यै) वधूहिताय (त्वाम्) विद्वांसम् (पतिम्) भर्तारम् (त्वष्टा) (सहस्रम्) सहो बलनाम−निघ० २।९। सहः+रा दाने−क, बहुवचनस्यैकवचनम्। सहस्राणि। बलप्रदानि (आयूंषि) प्राप्याणि जीवनसाधनानि (दीर्घम्) चिरम्। कीर्तियुक्तम् (आयुः) जीवनम् (कृणोतु) करोतु (वाम्) युवाभ्यां स्त्रीपुरुषाभ्याम् ॥
विषय
आयुष्य-साधन व दीर्घजीवन
पदार्थ
१. (त्वष्टा) = संसार का निर्माता प्रभु (जायाम्) = पत्नी को-पुत्र को जन्म देनेवाली स्त्री को (अजनयत्) = उत्पन्न करता है। (त्वष्टा) = वह प्रभु ही (अस्यै) = इस जाया के लिए (त्वां पतिम्) = तुझ पति को उत्पन्न करता है। प्रभु ही स्त्री-पुरुष को पति-पत्नीभाव के लिए उत्पन्न करते हैं। २. (त्वष्टा) = वह निर्माता प्रभु (सहस्त्रम् आयूंषि) = शतश: जीवन-साधनों को और उनके द्वारा (दीर्घम् आयुः) = दीर्घजीवन को (वां कृणोतु) = आप दोनों के लिए करे।
भावार्थ
प्रभु ही पुरुष-स्त्री के पति-पत्नीभाव को करते हैं। प्रभु ही दीर्घजीवन के शतश: साधनों को प्राप्त कराके उनके दीर्घ जीवन को सिद्ध करते हैं।
भाषार्थ
(त्वष्टा) शिल्पकारी रचयिता परमेश्वर ने (जायाम्) जाया अर्थात्् पत्नी को (अजनयत) पैदा किया, (त्वष्टा) शिल्पकारी रचयिता परमेश्वर ने (अस्यै) इस जाया के लिये (त्वाम्) तुझ (पतिम्) पति को पैदा किया। (त्वष्टा) शिल्पकारी रचयिता परमेश्वर ने (सहस्रम्) हजारों (आयूंषि) आयुएं तुम्हारी की [भूतकाल में], वह (वाम्) तुम दोनों की (आायुः) [वर्तमान] आयु को (दीर्घम् कृणोतु) दीर्घ करे।
टिप्पणी
[त्वष्टा= त्वक्षते्वा स्यात् करोतिकर्मणः (निरुक्त ८।२।११)। सहस्रम् आयूंषि= जन्म-जन्मान्तरों में हजारों आयुएं त्वष्टा ने तुम्हारी की। अथवा हजार वर्षों की दीर्घ आयु तुम्हारी करे। आयु:= जीवनकाल]।
विषय
स्त्री पुरुष का परस्पर व्यवहार।
भावार्थ
(त्वष्टा) परमात्मा (जायाम्) पुत्र उत्पन्न करने वाली स्त्री को उत्पन्न करता है। और (अस्यै) इस स्त्री के लिये हे पुरुष ! (त्वष्टा) त्वष्टा, परमात्मा ही (त्वां पतिम्) तुझ पति को भी उत्पन्न करता है। (त्वष्टा) परमात्मा ही (वाम्) तुम दोनों का (सहस्त्रम्) हजारों (आयूंषि) वर्षों तक का (दीर्धम्-आयुः) दीर्घ जीवन (कृणोतु) करे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। चन्द्रमास्त्वष्टा देवता। १-३ अनुष्टुभः। तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Wedded Couple
Meaning
O man, Tvashta, lord maker of beautiful humanity and institutions, created this woman for you as wife and for her he made you, the husband. May the same lord Tvashta bless you with long life and provide all means and lustrous energy for happy living.
Subject
Tvastr
Translation
The universal architect has made the wife; the universal architect has created you to be her husband May the universal architect bless you both with a long life, with a thousand lives.
Translation
God who is dispeller of all ignorance made her to be wife and God made you, O man! to be her husband may God give you both long life and givs you thousand lives.
Translation
God hath created the wife. God hath created thee to be her husband. May God grant you a long life lasting for a thousand years.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३−(त्वष्टा) अ० २।५।६। विश्वकर्मा परमेश्वरः। तुभ्यमिति शेषः (जायाम्) म० १। वीरजननीं वधूम् (अजनयत्) उदपादयत् (त्वष्टा) (अस्यै) वधूहिताय (त्वाम्) विद्वांसम् (पतिम्) भर्तारम् (त्वष्टा) (सहस्रम्) सहो बलनाम−निघ० २।९। सहः+रा दाने−क, बहुवचनस्यैकवचनम्। सहस्राणि। बलप्रदानि (आयूंषि) प्राप्याणि जीवनसाधनानि (दीर्घम्) चिरम्। कीर्तियुक्तम् (आयुः) जीवनम् (कृणोतु) करोतु (वाम्) युवाभ्यां स्त्रीपुरुषाभ्याम् ॥
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