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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 99 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 99/ मन्त्र 2
    ऋषिः - अथर्वा देवता - सोमः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - कल्याण के लिए यत्न
    30

    यो अ॒द्य सेन्यो॑ व॒धो जिघां॑सन्न उ॒दीर॑ते। इन्द्र॑स्य॒ तत्र॑ बा॒हू स॑म॒न्तं परि॑ दद्मः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । अ॒द्य । सेन्य॑: । व॒ध: । जिघां॑सन् । न॒: । उ॒त्ऽईर॑ते । इन्द्र॑स्य । तत्र॑ । बा॒हू इति॑ । स॒म॒न्तम् । परि॑ । द॒द्म॒: ॥९९.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यो अद्य सेन्यो वधो जिघांसन्न उदीरते। इन्द्रस्य तत्र बाहू समन्तं परि दद्मः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । अद्य । सेन्य: । वध: । जिघांसन् । न: । उत्ऽईरते । इन्द्रस्य । तत्र । बाहू इति । समन्तम् । परि । दद्म: ॥९९.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 99; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    संग्राम में जय का उपदेश।

    पदार्थ

    (अद्य) आज (यः) (सेन्यः) शत्रु सेना सम्बन्धी (वधः) शस्त्रसमूह (जिघांसन्) मारने की इच्छा करता हुआ (नः) हम पर (उदीरते) चढ़ा आता है। (तत्र) उसमें (इन्द्रस्य) महाप्रतापी इन्द्र परमात्मा के (बाहू) भुजाओं के तुल्य बल पराक्रम को (समन्तः) सब प्रकार (परिदद्मः) हम ग्रहण करते हैं ॥२॥

    भावार्थ

    मनुष्य कठिन समय में परमात्मा का आश्रय लेकर शत्रुओं का सामना करके दुःख से निवृत्त होवें ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(यः) (अद्य) वर्तमाने दिने (सेन्यः) सेना यत्। शत्रुसेनासंबन्धी (वधः) हननसाधकः शस्त्रसमूहः (जिघांसन्) हन्तुमिच्छन् (नः) अस्मान् (उदीरते) उद्गच्छति (इन्द्रस्य) परमैश्वर्यवतः परमात्मनः (तत्र) तस्मिन् कर्मणि (बाहू) भुजवद्बलपराक्रमौ (समन्तम्) सर्वतः (परिदद्मः) अङ्गीकुर्मः। आश्रयामः ॥

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    विषय

    प्राकारतुल्य राजा की भुजाएँ

    पदार्थ

    १. (यः) = जो (अद्य) = आज (सेन्य:) = शत्रु-सेना का (वधः) = बध-साधन शस्त्र (नः) = हमें (जिघांसन्) = मारना चाहता हुआ (उदीरते) = उद्गत होता है तो (तत्र) = वहाँ-वध होने के समय (इन्द्रस्य) = शत्र विद्रावक राजा की (बाहू) = भुजाओं को अपनी रक्षा के लिए (समन्तम्) = सब ओर से (परिदमः) = प्राकार की भाँति धारण करते हैं।

    भावार्थ

    शत्रु के आक्रमण की आशंका होते ही राजा की सैन्यरूप भुजाएँ हमारे रक्षण के लिए चारों ओर उपस्थित हों।

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    भाषार्थ

    (अद्य) आज (यः) जो (सेन्यः वधः) आसुरी सेना१ का वधकारी आयुध, (नः जिघांसन्) हमारी हत्या चाहता हुआ (उदीरते) उठा है, (तत्र) उस अवस्था में (इन्द्रस्य) परमेश्वर की (वाहू) दो बाहुओं को (समन्तम्) अपने सब ओर (परिदद्म:) हम घेरे के रूप में धारित करते हैं।

    टिप्पणी

    [अद्य = उपासक जिस दिन आसुरी सेना से पूर्णतया व्यथित हो गया, वह दिन। मन्त्र में समूहोपासना का वर्णन है। बाहू = बल और वीरता; यश और बल]। [१. काम क्रोध लोभ आदि सब द्वारा आक्रमण[।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prayer for Protection

    Meaning

    Now then, whenever and whatever weapon of violence is raised and cast upon us with the intent to destroy us, instantly we take on the cover all round of Indra’s arms of defence.

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    Translation

    If murderous weapon of the army is raised up desirous of killing us today, then we encompass ourselves with the two arms of the resplendent Lord.

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    Translation

    Whatever deadly missiles launched today by enemies flies forth slaughtering us, we take both arms of the King as shelter to encompass us on every side.

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    Translation

    Whatever deadly missile of the enemy launched today flieth forth to slaughter us, we accept both arms of God to encompass us on every side for protection.

    Footnote

    Both arms: The might, strength.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(यः) (अद्य) वर्तमाने दिने (सेन्यः) सेना यत्। शत्रुसेनासंबन्धी (वधः) हननसाधकः शस्त्रसमूहः (जिघांसन्) हन्तुमिच्छन् (नः) अस्मान् (उदीरते) उद्गच्छति (इन्द्रस्य) परमैश्वर्यवतः परमात्मनः (तत्र) तस्मिन् कर्मणि (बाहू) भुजवद्बलपराक्रमौ (समन्तम्) सर्वतः (परिदद्मः) अङ्गीकुर्मः। आश्रयामः ॥

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