अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 48/ मन्त्र 2
यास्ते॑ राके सुम॒तयः॑ सु॒पेश॑सो॒ याभि॒र्ददा॑सि दा॒शुषे॒ वसू॑नि। ताभि॑र्नो अ॒द्य सु॒मना॑ उ॒पाग॑हि सहस्रापो॒षं सु॑भगे॒ ररा॑णा ॥
स्वर सहित पद पाठया: । ते॒ । रा॒के॒ । सु॒ऽम॒तय॑: । सु॒ऽपेश॑स: । याभि॑: । ददा॑सि । दा॒शुषे॑ । वसू॑नि । ताभि॑: । न॒: । अ॒द्य । सु॒ऽमना॑: । उ॒प॒ऽआग॑हि । स॒ह॒स्र॒ऽपो॒षम् । सु॒ऽभ॒गे॒ । ररा॑णा॥५०.२॥
स्वर रहित मन्त्र
यास्ते राके सुमतयः सुपेशसो याभिर्ददासि दाशुषे वसूनि। ताभिर्नो अद्य सुमना उपागहि सहस्रापोषं सुभगे रराणा ॥
स्वर रहित पद पाठया: । ते । राके । सुऽमतय: । सुऽपेशस: । याभि: । ददासि । दाशुषे । वसूनि । ताभि: । न: । अद्य । सुऽमना: । उपऽआगहि । सहस्रऽपोषम् । सुऽभगे । रराणा॥५०.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
स्त्रियों के कर्तव्यों का उपदेश।
पदार्थ
(राके) हे सुखदायिनी ! वा पूर्णमासी समान शोभायमान पत्नी ! (याः) जो (ते) तेरी (सुमतयः) सुमतियें (सुपेशसः) बहुत सुवर्णवाली हैं, (याभिः) जिनसे तू (दाशुषे) धन देनेवाले [मुझ पति] को (वसूनि) अनेक धन (ददासि) देती है। (सुभगे) हे सौभाग्यवती ! (ताभिः) उन [सुमतियों] से (नः) हमें (सहस्रपोषम्) सहस्र प्रकार से पुष्टि को (रराणा) देती हुई, (सुमनाः) प्रसन्नमन होकर (अद्य) आज (उपागहि) समीप आ ॥२॥
भावार्थ
विदुषी, सुलक्षणा, विचारशील, प्रसन्नचित्त पत्नी धन और सम्पत्ति की रक्षा और बढ़ती करती हुई पतिप्रिया होकर घर में सुख बढ़ाती रहे ॥२॥
टिप्पणी
२−(याः) (ते) तव (राके) म० १। सुखप्रदे। पूर्णमासीसमशोभायमाने (सुमतयः) कल्याणबुद्ध्यः (सुपेशसः) पिश अवयवे, दीप्तौ च-असुन्। पेशः=हिरण्यम्-निघ० १।२, रूपम्-निघ० ३।७। बहुहिरण्ययुक्ताः (याभिः) (ददासि) (दाशुषे) धनस्य दात्रे पत्ये (वसूनि) धनानि (ताभिः) सुमतिभिः (अद्य) (सुमनाः) प्रसन्नचित्ता (उपागहि) समीपमागच्छ (सहस्रपोषम्) असंख्यपुष्टिम् (सुभगे) हे सौभाग्ययुक्ते (रराणा) अ० ५।२७।११। प्रयच्छन्ती ॥
विषय
सुपेशसः 'सुमतयः'
पदार्थ
१. हे (राके) = पूर्णचन्द्रवत् शुभानने ! अथवा सब-कुछ प्राप्त करानेवाली [रा दाने] गृहपत्नि! (याः) = जो (ते) = तेरी (समतयः) = उत्तम मतियाँ हैं, वे (सुपेशस:) = उत्तम सौन्दर्य का निर्माण करनेवाली हैं, (याभि:) = जिन सुमतियों से दाशुषे तेरे लिये आवश्यक धनों को प्राप्त करानेवाले इस पति के लिए तू (वसूनि) = निवास के लिए आवश्यक सब पदार्थों को (ददासि) = देती है। पति धन प्राप्त कराता है, पत्नी उस धन का सदुपयोग करती हुई वसुओं को उपस्थित करती है। २. (ताभिः) = उन समतियों के साथ (अद्य) = आज (समना:) = प्रशस्त मनवाली होती हुई तू (नः उपागहि) = हमें समीपता से प्राप्त हो। हे (सुभगे) = उत्तम सौभाग्यसम्पन्न पनि! तू (सहस्त्रापोर्ष राणा) = हज़ारों प्रकार से पोषणों को प्राप्त करानेवाली हो और सुभगा होती हुई इस घर को सौभाग्यसम्पन्न बना।
भावार्थ
पत्नी को पूर्ण चन्द्रमा के समान शोभावाला होना चाहिए। वह अपनी उत्तम मतियों से सब वसुओं को जुटानेवाली हो। उसके कारण घर सब प्रकार से पोषण को प्राप्त हो।
भाषार्थ
(राके) हे दानशीले देवपत्नी ! (याः ते) जो तेरी (सुमतयः) उत्तम मतियां हैं, जोकि (सुपेशसः) घर को सुन्दर रूप में रखतीं, और (याभिः) जिन सुमतियों द्वारा प्रेरित हुई तू (दाशुषे) दानी मनुष्यों को (वसूनि) नानाविध धन (ददासि) देती है, (ताभिः) उन सुमतियों के संग, (सुमनाः) प्रसन्नचित्त वाली तू, (अद्य) आज (नः उपागहि) हमारे समीप आ, (सुभगे) हे उत्तमेश्वर्यों से सम्पन्ने ! (सहस्रापोषम्) हजारों को पोषकधन (रराणा) देती हुई।
टिप्पणी
[राका सम्पत्तिशालिनी है, और दानशीला है। सुमति द्वारा प्रेरित हुई यह दान और महादान भी करती है। सदा प्रसन्न रहती। इसे सामाजिक हित के लिये निमन्त्रित किया है। इन मन्त्रों में "अनुमति" का वर्णन नहीं हुआ यह भी देवपत्नी है, और याज्ञिकों के अनुसार इस का सम्बन्ध चन्द्रमा के साथ है।]
विषय
राका नाम राजसभा और स्त्री के कर्त्तव्यों का वर्णन।
भावार्थ
हे (राके) सुखप्रदे ! पूर्णप्रकाशयुक्त स्त्रि ! (याः) जो (ते) तेरी (सु-पेशसः) सुन्दर कान्तिवाली (सु-मतयः) उत्तम बुद्धियां, उत्तम विचार हैं (याभिः) जिन्हों से (दाशुषे) अपने सर्वस्व अर्पण करने वाले प्रियतम पति को (वसूनि) नाना प्रकार के जीवन के सुख और नाना धन (ददासि) प्रदान करती है (ताभिः) उन उत्तम विचारों से (सु-मनाः) सदा प्रसन्नचित्त होकर (नः) हम, प्रजावासियों को हे (सु-भगे) सौभाग्यवति ! (रराणा) नाना प्रकार के आनन्द प्रदान करती हुई या नाना प्रकार से आनन्द प्रसन्न होकर (सहस्र-पोषम्) सब प्रकार के पुष्टि, धन धान्य सम्पत्ति को (उप-आ-गहि) प्राप्त करा। उत्तम महिलाएं जिन उत्तम विचारों से अपने पतियों को सुखकारी होती हैं उन विचारों और सत्-कर्मों से अपने सम्बन्धी और पड़ोसियों को भी सुखकारी हों। विश्पत्नी पक्ष में—राका भी उस राजसभा का नाम है जिसमें राजा स्वयं १६ या २० अमात्यों सहित राष्ट्र के कार्यों का विचार करता है। कार्यों की प्रारम्भिक अनुमति प्राप्त करने के लिये ‘अनुमति’ नामक सभा का वर्णन पूर्व आ चुका है। यह ‘उत्तरा’ उससे भी उत्कृष्ट राजसभा है जिससे अंतिम निर्णय प्राप्त करके राजा अपने राष्ट्र में कार्य करे। इस पक्ष में मन्त्रों की योजना निम्नलिखित रूप में जाननी चाहिए। (१) (राकाम् अहं सुहबा सुष्टुती हुवे) राज सभा को मैं स्वयं सुलाता हूं (शृणोतु नः सुभगा) वह श्रीमती राजसभा मेरे निर्णय को सुने। (बोधतु त्मना) स्वयं विचारे। (अच्छिद्यमानया सूच्या सीव्यतु) टूटी सूई से जैसे फटे वस्त्रों को सिया जाता है उसी प्रकार वह विचार के योग्य सब अंगों को क्रम से सूक्ष्म बुद्धि से विचारे, उनको सम्बन्धित करे और (शतदायम्) सैंकड़ों लाभप्रद (उक्थ्यं वीरं ददातु) प्रशंसनीय वीर, कार्यकर्त्ता को नियुक्त करे। (२) हे (राके याः ते सुपेशसः सुमतयः) राजसभे ! जो तेरी उत्तम सम्मतियें हैं (याभिः दाशुषे वसूनि ददासि) जिसके द्वारा राजा को नाना धन प्रदान करती है (ताभिः नः सुमनाः सहस्रपोषं रराणासुभगे उपा गहि) हे श्रीमति ! उनसे ही सुचित्त होकर सहस्रगुणा द्रव्य देती हुई प्राप्त हो।
टिप्पणी
(च०) 'सहस्रपोषम्' इति ऋ०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। राका देवता। जगती छन्दः। द्वयृचं सुक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Enlightened Love
Meaning
O Raka, lovely lady of light and generosity, noble are your thoughts and plans, and beautiful your acts of homely management by which you bring in the wealth and pleasures of a happy home to the generous man. With all these, O blessed harbinger of good fortune, happy at heart, come now and bless us, giving a thousand gifts of growth and prosperity.
Translation
O full moon’s night (raka), whatever are your much-praised good graces, with which you bestow treasures on the sacrificer, with those may you come to us with a friendly - mind today, granting us, O propitious one, thousands of -nourishments.
Comments / Notes
MANTRA NO 7.50.2AS PER THE BOOK
Translation
Like final phase of full-moonded night, O house-hold lady! giving us the wealth of thousand sorts come to us now with delightful mind accompanied by your those favors which are lovely in their forms and wherewith you give wealth to benevolent man.
Translation
O pleasure-giving wife, brilliant like the full moon all thy precious counsels, wherewith thou grantest treasures to thy charitable husband, with these come thou to us this day, benevolent, O blessed one, bestowing wealth of thousand sorts!
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(याः) (ते) तव (राके) म० १। सुखप्रदे। पूर्णमासीसमशोभायमाने (सुमतयः) कल्याणबुद्ध्यः (सुपेशसः) पिश अवयवे, दीप्तौ च-असुन्। पेशः=हिरण्यम्-निघ० १।२, रूपम्-निघ० ३।७। बहुहिरण्ययुक्ताः (याभिः) (ददासि) (दाशुषे) धनस्य दात्रे पत्ये (वसूनि) धनानि (ताभिः) सुमतिभिः (अद्य) (सुमनाः) प्रसन्नचित्ता (उपागहि) समीपमागच्छ (सहस्रपोषम्) असंख्यपुष्टिम् (सुभगे) हे सौभाग्ययुक्ते (रराणा) अ० ५।२७।११। प्रयच्छन्ती ॥
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