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अथर्ववेद के काण्ड - 7 के सूक्त 56 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 56/ मन्त्र 6
    ऋषिः - अथर्वा देवता - वृश्चिकादयः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - विषभेषज्य सूक्त
    49

    न ते॑ बा॒ह्वोर्बल॑मस्ति॒ न शी॒र्षे नोत म॑ध्य॒तः। अथ॒ किं पा॒पया॑ऽमु॒या पुच्छे॑ बिभर्ष्यर्भ॒कम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    न । ते॒ । बा॒ह्वो: । बल॑म् । अ॒स्ति॒ । न । शी॒र्षे । न । उ॒त । म॒ध्य॒त: । अथ॑ । किम् । पा॒पया॑ । अ॒मु॒या । पुच्छे॑ । बि॒भ॒र्षि॒ । अ॒र्भ॒कम् ॥५८.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    न ते बाह्वोर्बलमस्ति न शीर्षे नोत मध्यतः। अथ किं पापयाऽमुया पुच्छे बिभर्ष्यर्भकम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    न । ते । बाह्वो: । बलम् । अस्ति । न । शीर्षे । न । उत । मध्यत: । अथ । किम् । पापया । अमुया । पुच्छे । बिभर्षि । अर्भकम् ॥५८.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 56; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    विष नाश का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे बिच्छू !] (न) न तो (ते) तेरे (बाह्वोः) दोनों भुजाओं में (बलम्) बल (अस्ति) है, (न)(शीर्षे) शिर में (उत) और (न)(मध्यतः) बीच में है। (अथ) फिर (किम्) क्यों (अमुया पापया) उस पाप बुद्धि से (पुच्छे) पूँछ में (अर्भकम्) थोड़ा सा [विष] (बिभर्षि) तू रखता है ॥६॥

    भावार्थ

    जैसे बिच्छू सामने से निर्विष होता है और पीछे से चट्ट डंक मारता है, मनुष्यों को ऐसी कुटिलता छोड़ कर सर्वथा सरलस्वभाव होना चाहिये ॥६॥

    टिप्पणी

    ६−(न) निषेधे (ते) तव (बाह्वोः) हस्तयोः (बलम्) सामर्थ्यम् (अस्ति) (न) (शीर्षे) शिरसि (न) (उत) अपि (मध्यतः) सप्तम्यर्थे तसिः। मध्ये। कटिभागे (अथ) पुनः (किम्) किमर्थम् (पापया) पापिष्ठया बुद्ध्या (अमुया) अनया (पुच्छे) पुछ प्रमादे-अच्। लाङ्गले (बिभर्षि) धरसि (अर्भकम्) अल्पे। पा० ५।३।८५। अल्पार्थे कन्। अत्यल्पं विषम् ॥

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    विषय

    पुच्छदंशी वृश्चिक

    पदार्थ

    १. हे पुच्छ से डसनेवाले वृश्चिक! (ते बह्वो: बलं न अस्ति) = तेरी भुजाओं में बल नहीं है। (न शीर्षे) = न सिर में बल है, (उत) = और (न मध्यत:) = तेरे मध्यभाग [उदर] में भी बल नहीं है। (अथ) = अब (किम्) = क्यों (अमुय पापया) = इस पापिष्ठ, पर-पीड़ाकारिणी बुद्धि से (अर्भकम्) = इस अत्यल्प विष को (पुच्छे बिभर्षि) = पूँछ में धारण किये हुए है। तू तो व्यर्थ में ही पर-पीड़ा करने का यत्न करता है।

    भावार्थ

    बिच्छू व्यर्थ में पर-पीड़ाकारी विष को पूछ में धारण करता है। इसी प्रकार कई मनुष्य भी सामने नहीं अपितु पीठ पीछे कुछ निन्दा करते रहते हैं, वे वृश्चिक के समान ही है।

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    भाषार्थ

    (न ते बाह्वोः बलम्) न तेरी बाहुओं में बल (अस्ति) है, (न शीर्षे) न सिर में, (उत न) और न (मध्यतः) मध्यावयव में है। (अय किम्) तो क्यों (अमुया पापया) उस पापमयी भावना या चाल द्वारा (पुच्छे) पूंछ में (अर्भकम्) अत्यल्प विष को (बिभर्षि) तू धारण करता है ?

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    विषय

    विषचिकित्सा।

    भावार्थ

    हे वृश्चिक आदि कीट ! (ते) तेरी (बाह्वोः) बाहुओं में (बलं न अस्ति) बल नहीं है, (न शीर्षे) न सिर में बल है (उत) और (मध्यतः न) बीच भाग में भी बल नहीं है। (अथ) तो फिर (अमुया) इस (पापया) पापमय, दूसरे को कष्ट पहुंचाने वाली वृत्ति से (किं) क्या (पुच्छे) पूंछ में (अर्भकम्) छोटासा विषैला कांटा या थोड़ा सा विष (बिभर्षि) रक्खे हुए है। जिनकी पूंछ में विष है वे कीट सब उसी जाति के हैं जिनके बाहु, सिर और बीच के भाग में बल नहीं होता, प्रत्युत पापबुद्धि से प्रेरित होकर वे अपने पूंछ के थोड़े से विष से भी बहुतसा विनाश किया करते हैं। कदाचित् विष-पुच्छ सर्प भी होते हों जिनका कि यह वर्णन हो। अगले मन्त्र में ‘शकोट’ का पुनः वर्णन है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। मन्त्रोक्ताः वृश्चिकादयो देवताः। २ वनस्पतिर्देवता। ४ ब्रह्मणस्पतिर्देवता। १-३, ५-८, अनुष्टुप्। ४ विराट् प्रस्तार पंक्तिः। अष्टर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Poison Cure

    Meaning

    O Scorpion, there is no strength in your arms, nor in the head, nor in the middle of the body. Then by what mischievous evil do you hold the little but smarting poison in your tail-sting?

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    Translation

    There is no strength in your two arms, nor in your head, nor in your middle. Why, then, do you carry this small thing in your tail with this evil (intention) ?

    Comments / Notes

    MANTRA NO 7.58.6AS PER THE BOOK

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    Translation

    This scorpion does not have any strength in its arms, does not have strength in its head and does not even in its waist, then, in vain, it bears injuriously the small thing in its tail.

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    Translation

    O scorpion, no strength in thy two arms hast thou, nor in thy head, nor in thy waist. Then what is the good of that poison thou so viciously bearest in thy tail!

    Footnote

    Men should be straightforward in their behavior, and give up the crooked nature of a scorpion, that is outwardly gentle, but carries poison in his tail.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−(न) निषेधे (ते) तव (बाह्वोः) हस्तयोः (बलम्) सामर्थ्यम् (अस्ति) (न) (शीर्षे) शिरसि (न) (उत) अपि (मध्यतः) सप्तम्यर्थे तसिः। मध्ये। कटिभागे (अथ) पुनः (किम्) किमर्थम् (पापया) पापिष्ठया बुद्ध्या (अमुया) अनया (पुच्छे) पुछ प्रमादे-अच्। लाङ्गले (बिभर्षि) धरसि (अर्भकम्) अल्पे। पा० ५।३।८५। अल्पार्थे कन्। अत्यल्पं विषम् ॥

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