अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 68/ मन्त्र 3
शि॒वा नः॒ शंत॑मा भव सुमृडी॒का स॑रस्वति। मा ते॑ युयोम सं॒दृशः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठशि॒वा । न॒: । शम्ऽत॑मा । भ॒व॒ । सु॒ऽमृ॒डी॒का । स॒र॒स्व॒ति॒ । मा । ते॒ । यु॒यो॒म॒ । स॒म्ऽदृश॑: ॥७१.१॥
स्वर रहित मन्त्र
शिवा नः शंतमा भव सुमृडीका सरस्वति। मा ते युयोम संदृशः ॥
स्वर रहित पद पाठशिवा । न: । शम्ऽतमा । भव । सुऽमृडीका । सरस्वति । मा । ते । युयोम । सम्ऽदृश: ॥७१.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
सरस्वती की आराधना का उपदेश।
पदार्थ
(सरस्वति) हे सरस्वती ! तू (नः) हमारे लिये (शिवा) कल्याणी, (शंतमा) अत्यन्त शान्ति देनेवाली और (सुमृडीका) अत्यन्त सुख देनेवाली (भव) हो। हम लोग (ते) तेरे (संदृशः) यथावत् दर्शन [यथार्थ स्वरूप के ज्ञान] से (मा युयोम) कभी अलग न होवें ॥३॥
भावार्थ
मनुष्य नित्य अभ्यास से विद्या का ठीक-ठीक स्वरूप जान कर आत्मा को सदा शान्त रक्खें ॥३॥
टिप्पणी
३−(शिवा) कल्याणी (नः) अस्मभ्यम् (शंतमा) अत्यर्थं रोगनिवारिका (भव) (सुमृडीका) अत्यन्तं सुखदा (सरस्वति) (ते) तव (मा युयोम) यौतेर्लोटि शपः श्लुः। पृथग्भूता मा भवेम (संदृशः) दृशिर्-क्विप्। समीचीनाद् दर्शनात्। यथार्थस्वरूपज्ञानात् ॥
विषय
शिव, शान्त व शर्मवाले [सुखी]
पदार्थ
१. हे (सरस्वति) = वर्णपदादिरूपेण प्रसरणवाली वाग्देवते! (शिवा) = कल्याणकारिणी तू (न:) = हमारे लिए (शन्तमा भव) = अतिशयेन रोगों को दूर करनेवाली व शान्ति प्राप्त करानेवाली हो । (सुमृडीका) = अतिशयेन सुख देनेवाली हो। २. हे सरस्वति ! हम (ते संदृश:) = तेरे समीचीन दर्शन से यथार्थ स्वरूप ज्ञान से (मा युयोम) = पृथक् न हों। ज्ञान से पृथक् होना ही अपवित्रता व अशान्ति का कारण बनता है।
भावार्थ
हम सदा सरस्वती का आराधन करते हुए शिव, शान्त व शर्म-[सुख]-वाले हों।
भाषार्थ
(सरस्वति) हे ज्ञान-विज्ञानवाली पारमेश्वरी मातः ! (नः) हमारे लिये (शिवा) तू सुखरूपा, (शंतमा) अत्यन्त सुखरूपा; तथा (सुमृडीका) शोभन सुखप्रदा (भव) हो। हम (ते) तेरी (संदृशः) सम्यक् कृपा दृष्टि से अथवा तेरे सम्यक् दर्शन से (मा) न (युयोम) पृथक् हों, वञ्चित हों। अथवा कविता में वेदवाणी का वर्णन हुआ है।
टिप्पणी
[सायणाचार्य के अनुसार यह मन्त्र पृथक् सूक्तरूप है]।
विषय
स्त्री के कर्त्तव्य।
भावार्थ
हे (सरस्वति) स्त्रि या विद्ये ! तू (नः) हमारे लिए (शिवा) शुभ और (शं-तमा) अति कल्याण और सुखकारिणी (सु-मृडीका) अति आनन्द और हर्षजनक (भव) हो। (ते) तेरी (सं-दृशः) प्रेममय दृष्टि से (मा युपोम) कभी वंचित न हों। अर्थात् तू सदा हम पर अपनी प्रेम-दृष्टि रख, हमसे कभी मुख न फेर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शंतातिर्ऋषिः। सरस्वती देवता। १ अनुष्टुप्। २ त्रिष्टुप्। ३ गायत्री। तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Sarasvati
Meaning
Mother Sarasvati, be kind, most gracious, and ever compassionate. Let us never be deprived of your presence and your grace.
Translation
O speech divine, may you be auspicious bestower of happiness, and gracious to us. May we never be out of your pleasing sight.
Comments / Notes
MANTRA NO 7.71.1AS PER THE BOOK
Translation
Let this Vedic speech be auspicious pleasure-giving and gracious for us, may we be ever in its light and guiding principles.
Translation
O Vedic knowledge, be kind and most auspicious, be gracious to us. May we never lose thy sight.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३−(शिवा) कल्याणी (नः) अस्मभ्यम् (शंतमा) अत्यर्थं रोगनिवारिका (भव) (सुमृडीका) अत्यन्तं सुखदा (सरस्वति) (ते) तव (मा युयोम) यौतेर्लोटि शपः श्लुः। पृथग्भूता मा भवेम (संदृशः) दृशिर्-क्विप्। समीचीनाद् दर्शनात्। यथार्थस्वरूपज्ञानात् ॥
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