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अथर्ववेद के काण्ड - 7 के सूक्त 68 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 68/ मन्त्र 3
    ऋषिः - शन्तातिः देवता - सरस्वती छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सरस्वती सूक्त
    47

    शि॒वा नः॒ शंत॑मा भव सुमृडी॒का स॑रस्वति। मा ते॑ युयोम सं॒दृशः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शि॒वा । न॒: । शम्ऽत॑मा । भ॒व॒ । सु॒ऽमृ॒डी॒का । स॒र॒स्व॒ति॒ । मा । ते॒ । यु॒यो॒म॒ । स॒म्ऽदृश॑: ॥७१.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शिवा नः शंतमा भव सुमृडीका सरस्वति। मा ते युयोम संदृशः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शिवा । न: । शम्ऽतमा । भव । सुऽमृडीका । सरस्वति । मा । ते । युयोम । सम्ऽदृश: ॥७१.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 68; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    सरस्वती की आराधना का उपदेश।

    पदार्थ

    (सरस्वति) हे सरस्वती ! तू (नः) हमारे लिये (शिवा) कल्याणी, (शंतमा) अत्यन्त शान्ति देनेवाली और (सुमृडीका) अत्यन्त सुख देनेवाली (भव) हो। हम लोग (ते) तेरे (संदृशः) यथावत् दर्शन [यथार्थ स्वरूप के ज्ञान] से (मा युयोम) कभी अलग न होवें ॥३॥

    भावार्थ

    मनुष्य नित्य अभ्यास से विद्या का ठीक-ठीक स्वरूप जान कर आत्मा को सदा शान्त रक्खें ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(शिवा) कल्याणी (नः) अस्मभ्यम् (शंतमा) अत्यर्थं रोगनिवारिका (भव) (सुमृडीका) अत्यन्तं सुखदा (सरस्वति) (ते) तव (मा युयोम) यौतेर्लोटि शपः श्लुः। पृथग्भूता मा भवेम (संदृशः) दृशिर्-क्विप्। समीचीनाद् दर्शनात्। यथार्थस्वरूपज्ञानात् ॥

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    विषय

    शिव, शान्त व शर्मवाले [सुखी]

    पदार्थ

    १. हे (सरस्वति) = वर्णपदादिरूपेण प्रसरणवाली वाग्देवते! (शिवा) = कल्याणकारिणी तू (न:) = हमारे लिए (शन्तमा भव) = अतिशयेन रोगों को दूर करनेवाली व शान्ति प्राप्त करानेवाली हो । (सुमृडीका) = अतिशयेन सुख देनेवाली हो। २. हे सरस्वति ! हम (ते संदृश:) = तेरे समीचीन दर्शन से यथार्थ स्वरूप ज्ञान से (मा युयोम) = पृथक् न हों। ज्ञान से पृथक् होना ही अपवित्रता व अशान्ति का कारण बनता है।

    भावार्थ

    हम सदा सरस्वती का आराधन करते हुए शिव, शान्त व शर्म-[सुख]-वाले हों।

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    भाषार्थ

    (सरस्वति) हे ज्ञान-विज्ञानवाली पारमेश्वरी मातः ! (नः) हमारे लिये (शिवा) तू सुखरूपा, (शंतमा) अत्यन्त सुखरूपा; तथा (सुमृडीका) शोभन सुखप्रदा (भव) हो। हम (ते) तेरी (संदृशः) सम्यक् कृपा दृष्टि से अथवा तेरे सम्यक् दर्शन से (मा)(युयोम) पृथक् हों, वञ्चित हों। अथवा कविता में वेदवाणी का वर्णन हुआ है।

    टिप्पणी

    [सायणाचार्य के अनुसार यह मन्त्र पृथक् सूक्तरूप है]।

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    विषय

    स्त्री के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हे (सरस्वति) स्त्रि या विद्ये ! तू (नः) हमारे लिए (शिवा) शुभ और (शं-तमा) अति कल्याण और सुखकारिणी (सु-मृडीका) अति आनन्द और हर्षजनक (भव) हो। (ते) तेरी (सं-दृशः) प्रेममय दृष्टि से (मा युपोम) कभी वंचित न हों। अर्थात् तू सदा हम पर अपनी प्रेम-दृष्टि रख, हमसे कभी मुख न फेर।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शंतातिर्ऋषिः। सरस्वती देवता। १ अनुष्टुप्। २ त्रिष्टुप्। ३ गायत्री। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Sarasvati

    Meaning

    Mother Sarasvati, be kind, most gracious, and ever compassionate. Let us never be deprived of your presence and your grace.

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    Translation

    O speech divine, may you be auspicious bestower of happiness, and gracious to us. May we never be out of your pleasing sight.

    Comments / Notes

    MANTRA NO 7.71.1AS PER THE BOOK

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    Translation

    Let this Vedic speech be auspicious pleasure-giving and gracious for us, may we be ever in its light and guiding principles.

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    Translation

    O Vedic knowledge, be kind and most auspicious, be gracious to us. May we never lose thy sight.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(शिवा) कल्याणी (नः) अस्मभ्यम् (शंतमा) अत्यर्थं रोगनिवारिका (भव) (सुमृडीका) अत्यन्तं सुखदा (सरस्वति) (ते) तव (मा युयोम) यौतेर्लोटि शपः श्लुः। पृथग्भूता मा भवेम (संदृशः) दृशिर्-क्विप्। समीचीनाद् दर्शनात्। यथार्थस्वरूपज्ञानात् ॥

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