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अथर्ववेद के काण्ड - 7 के सूक्त 75 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 75/ मन्त्र 1
    ऋषिः - उपरिबभ्रवः देवता - अघ्न्या छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - अघ्न्या सूक्त
    83

    प्र॒जाव॑तीः सू॒यव॑से रु॒शन्तीः॑ शु॒द्धा अ॒पः सु॑प्रपा॒णे पिब॑न्तीः। मा व॑ स्ते॒न ई॑शत॒ माघशं॑सः॒ परि॑ वो रु॒द्रस्य॑ हे॒तिर्वृ॑णक्तु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र॒जाऽव॑ती: । सु॒ऽयव॑से । रु॒शन्ती॑: । शु॒ध्दा: । अ॒प: । सु॒ऽप्र॒पा॒ने । पिब॑न्ती: । मा । व॒: । स्ते॒न: । ई॒श॒त॒ । मा । अ॒घऽशं॑स: । परि॑ । व॒: । रु॒द्रस्य॑ । हे॒ति: । वृ॒ण॒क्तु॒ ॥७९.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रजावतीः सूयवसे रुशन्तीः शुद्धा अपः सुप्रपाणे पिबन्तीः। मा व स्तेन ईशत माघशंसः परि वो रुद्रस्य हेतिर्वृणक्तु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्रजाऽवती: । सुऽयवसे । रुशन्ती: । शुध्दा: । अप: । सुऽप्रपाने । पिबन्ती: । मा । व: । स्तेन: । ईशत । मा । अघऽशंस: । परि । व: । रुद्रस्य । हेति: । वृणक्तु ॥७९.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 75; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    सामाजिक उन्नति का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे मनुष्य प्रजाओ !] (प्रजावतीः) उत्तम सन्तानवाली, (सूयवसे) सुन्दर यव आदि अन्नवाले [घर] में [अन्न] (रुशन्तीः) खाती हुई, और (सुप्रपाणे) सुन्दर जलस्थान में (शुद्धाः) शुद्ध (अपः) जलों को (पिबन्तीः) पीती हुई (वः) तुमको (स्तेनः) चोर (मा ईशत) वश में न करे, और (मा)(अघशंसः) बुरा चीतनेवाला, डाकू उचक्का आदि [वश में करे], (रुद्रस्य) पीड़ानाशक परमेश्वर की (हेतिः) हनन शक्ति (वः) तुमको (परि) सब ओर से (वृणक्तु) त्यागे रहे ॥१॥

    भावार्थ

    मनुष्य विद्यायें उपार्जन करके अपनी सन्तानों को उत्तम शिक्षा देते हुए और अन्न जल आदि का सुप्रबन्ध करते हुए सदा हृष्ट पुष्ट बुद्धिमान् और धर्मिष्ठ रहें, जिससे उन्हें न चोर आदि सता सके और न परमेश्वर दण्ड देवे ॥१॥ यह मन्त्र आ चुका है-अ० ४।२१।७ ॥

    टिप्पणी

    १-शब्दार्थो यथा, अ० ४।२१।७ ॥

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    विषय

    सूयवस+शुद्ध जल

    पदार्थ

    इस मन्त्र की व्याख्या अथर्व० ४।२१।७ पर द्रष्टव्य है।

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    भाषार्थ

    (प्रजावतीः) बछड़े-बछड़ियों वाली (सूयवसे) उत्तम घास वाले स्थान में (रुशन्तीः) चमकती हुई (सुप्रपाणे) उत्तम जलाशय में (शुद्धाः, अपः पिबन्तीः) शुद्ध जल पीती हुई (वः) तुम पर [हे गौओ] (स्तेनः) चोर (मा ईशत) अधीश्वर न हो, (मा अघशंस) न वधकारी अधीश्वर हो, (वः) तुम्हें (रुद्रस्य) रुद्र का (हेतिः) वज्र (परिवृणक्तु) सर्वथा त्याग दे, अर्थात् रुद्रकर्मा पुरुष तुम पर प्रहार न करे।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Inviolate Inviolable

    Meaning

    (Inviolate, inviolable cows, children of the earth) blest with noble progeny, roaming around and browsing on lush green fields and pastures, drinking pure water in clear pools and lakes, let no thief rule over you, no sinner, no contemner, and no strike of the violent to fall on you.

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    Subject

    Aghnyah (Cows)

    Translation

    Rich in progeny, shining in good pasture, drinking pure and healthy water at a good water-furnishing place, let no thief steal you away, nor the evil plotter take the possession of you. Let Rudra’s weapon (missile,hetih) avoid you (Also Av. IV.21.7)

    Comments / Notes

    MANTRA NO 7.79.1AS PER THE BOOK

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    Translation

    Let these cows with their progeny grazing in the nice pasture and drinking clean water in the pleasant pools remain in happiness. Let not thief and wicked man possess them and let not the dart of ruling king come near them.

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    Translation

    O cows, prolific, grazing in the goodly pasture, drinking at pleasant pools the pure water, let not a thief or wicked man possess ye: let not the dart of a ferocious king come near ye!

    Footnote

    See Atharva, 4-21-7.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १-शब्दार्थो यथा, अ० ४।२१।७ ॥

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