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अथर्ववेद के काण्ड - 7 के सूक्त 89 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 89/ मन्त्र 2
    ऋषिः - सिन्धुद्वीपः देवता - अग्निः छन्दः - त्रिपदा निचृत्परोष्णिक् सूक्तम् - दिव्यआपः सूक्त
    65

    सं मा॑ग्ने॒ वर्च॑सा सृज॒ सं प्र॒जया॒ समायु॑षा। वि॒द्युर्मे॑ अ॒स्य दे॒वा इन्द्रो॑ विद्यात्स॒ह ऋषि॑भिः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सम् । मा॒ । अ॒ग्ने॒ । वर्च॑सा । सृ॒ज॒ । सम् । प्र॒ऽजया॑ । सम् । आयु॑षा । वि॒द्यु: । मे॒ । अ॒स्य । दे॒वा: । इन्द्र॑: । वि॒द्या॒त् । स॒ह । ऋषि॑ऽभि: ॥९४.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सं माग्ने वर्चसा सृज सं प्रजया समायुषा। विद्युर्मे अस्य देवा इन्द्रो विद्यात्सह ऋषिभिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सम् । मा । अग्ने । वर्चसा । सृज । सम् । प्रऽजया । सम् । आयुषा । विद्यु: । मे । अस्य । देवा: । इन्द्र: । विद्यात् । सह । ऋषिऽभि: ॥९४.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 89; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    विद्वानों की संगति का उपदेश।

    पदार्थ

    (अग्ने) हे विद्वान् ! (मा) मुझको (वर्चसा) [ब्रह्म विद्या के] तेज से (सम्) अच्छे प्रकार (प्रजया) प्रजा से (सम्) अच्छे प्रकार और (आयुषा) जीवन से (सम् सृज) अच्छी प्रकार संयुक्त कर। (देवाः) विद्वान् लोग (अस्य) इस (मे) मुझको (विद्युः) जानें, (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् आचार्य (ऋषिभिः सह) ऋषियों के साथ [मुझे] (विद्यात्) जानें ॥२॥

    भावार्थ

    मनुष्य उत्तम विद्या पाकर संसार के सुधार से अपना जीवन सफल करके विद्वानों और गुरु जनों में प्रतिष्ठा पावें ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(सम्) सम्यक् (मा) माम् (अग्ने) विद्वन् (वर्चसा) वेदाध्ययनादितेजसा (सृज) संयोजय (सम्) (प्रजया) (सम्) (आयुषा) जीवनेन (विद्युः) जानीयुः (मे) द्वितीयार्थे षष्ठी। माम् (अस्य) एनम् (देवाः) विद्वांसः (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान्। आचार्यः (विद्यात्) जानीयात् (ऋषिभिः) अ० २।६।१। आप्तैः। मुनिभिः ॥

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    विषय

    वर्चस, प्रजा, आयु

    पदार्थ

    १. हे (अने)-अग्रणी प्रभो! (मा) = मुझे वर्चसा (संसृज)-वर्चस् से युक्त कीजिए। प्रजया सम्-उत्तम सन्तान से युक्त कीजिए, आयुषा सम्-आयुष्य से संगत कीजिए। २. अस्य मे-मेरे अभिमत को देवा: विद्युः-देव जानें, इसका ध्यान करें, इसे पूर्ण करने का ध्यान रखें। माता, पिता, आचार्य आदि देव मेरी इष्ट-प्राप्ति में सहायक हों। इन्द्रः-वह परमैश्वर्यशाली प्रभु ऋषिभिः तत्वद्रष्टा मुनियों के साथ विद्यात्-मेरा ध्यान रक्खें, मेरे अभिमत को प्राप्त कराने का अनुग्रह करें।

    भावार्थ

    प्रभुकृपा से हमें 'वर्चस्, उत्तम प्रजा व दीर्घजीवन' प्राप्त हो। देवरूप माता, पिता, आचार्य हमें इसप्रकार बनाएँ कि हम अपने अभिमत को सिद्ध कर सकें। प्रभुकृपा से तत्त्वद्रष्टा अतिथि भी हमें इसी मार्ग पर ले-चलें।

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    भाषार्थ

    (अग्ने) हे "अग्नि" नामक परमेश्वर ! (मा) मुझे (वर्चसा) तेज के साथ (संसृज) संयुक्त कर (प्रजया) प्रकृष्ट-सन्तान के साथ (सम्) संयुक्त कर (आयुषा) स्वस्थ और दीर्घ आयु के साथ (सम्) संयुक्त कर। (अस्य मे) इस मुझ की स्थिति को (देवाः) राष्ट्र के विद्वान् (विद्युः) जानें, तथा (इन्द्रः) सम्राट् (ऋषिभिः सह) ऋषिकोटि के मन्त्रियों समेत (विद्यात्) जाने।

    टिप्पणी

    [मैं परमेश्वर की पूजा और उसके आनन्दरस को प्राप्त करने के परिणामरूप में वर्चस्, प्रकृष्ट सन्तान तथा स्वस्थ और दीर्घ आयु से सम्पन्न हुआ हूं, इस रहस्य को राष्ट्र के देव आदि जानें। ताकि वे इस तथ्य का प्रसार राष्ट्र में तथा साम्राज्य में कर सकें। यह दर्शाया है कि मन्त्री ऋषिकोटि के होने चाहियें, धन लोलुप तथा पद लोलुप नहीं]।

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    भावार्थ

    हे (अग्ने) ज्ञानवान् गुरो ! (मा) मुझे (वर्चसा) तेज से (सं सृज) युक्त कर, (प्रजया सं) प्रजा से युक्त कर, (आयुषा सं) दीर्घ आयु से युक्त कर। (अस्य) इस प्रकार के तेज और आयु से सम्पन्न इस (मे) मुझ को (देवाः) ज्ञानवान् विद्वान् पुरुष (विद्युः) जानें, और (ऋषिभिः) मन्त्रद्रष्टाओं, वेद के विद्वान् योगियों सहित (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् प्रभु भी (विद्यात्) मुझे वैसा जाने। अर्थात् विद्वानों, अधिकारियों, ऋषियों और ईश्वर की साक्षिता में गुरु के अधीन ब्रह्मचारी ब्रह्मचर्य का पालन करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सिन्धुद्वीप ऋषिः। अग्निर्देवता। अनुष्टुप् छन्दः। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    The Divine Flow of Life

    Meaning

    O leading light of life, Agni, sagely scholar, release me from limitations, re-create and refine me and join me with lustre and splendour of life, progeny, good health and full age. Let the devas, nobilities, know the recreated and refined me, let Indra, the mighty and brilliant, know me, along with the seers and visionaries.

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    Translation

    O adorable Lord, may you endow me with lustre; endow me with progeny and with long life. May the enlightened ones know me as such; may the resplendent one along with the seers know me (as such).

    Comments / Notes

    MANTRA NO 7.94.2AS PER THE BOOK

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    Translation

    O learned man; endow me with vigor, with progeny and with long life. May the learned men know me and may my preceptor know me endowed with the Vedas and sciences contained in them.

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    Translation

    O preceptor, endow me with glory, with children and a lengthened life. May the learned persons understand me, may God with Vedic scholars know me as such.

    Footnote

    Such: A pupil, an aspirer after knowledge, a Brahmchari.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(सम्) सम्यक् (मा) माम् (अग्ने) विद्वन् (वर्चसा) वेदाध्ययनादितेजसा (सृज) संयोजय (सम्) (प्रजया) (सम्) (आयुषा) जीवनेन (विद्युः) जानीयुः (मे) द्वितीयार्थे षष्ठी। माम् (अस्य) एनम् (देवाः) विद्वांसः (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान्। आचार्यः (विद्यात्) जानीयात् (ऋषिभिः) अ० २।६।१। आप्तैः। मुनिभिः ॥

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