अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 97/ मन्त्र 6
ऋषिः - अथर्वा
देवता - इन्द्राग्नी
छन्दः - त्रिपदा प्राजापत्या बृहती
सूक्तम् - यज्ञ सूक्त
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ए॒ष ते॑ य॒ज्ञो य॑ज्ञपते स॒हसू॑क्तवाकः। सु॒वीर्यः॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठए॒ष: । ते॒ । य॒ज्ञ: । य॒ज्ञ॒ऽप॒ते॒ । स॒हऽसू॑क्तवाक: । सु॒ऽवीर्य॑: । स्वाहा॑ ॥१०२.६॥
स्वर रहित मन्त्र
एष ते यज्ञो यज्ञपते सहसूक्तवाकः। सुवीर्यः स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठएष: । ते । यज्ञ: । यज्ञऽपते । सहऽसूक्तवाक: । सुऽवीर्य: । स्वाहा ॥१०२.६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
मनुष्य धर्म का उपदेश।
पदार्थ
(यज्ञपते) हे पूजनीय व्यवहार के पालनेवाले पुरुष ! (एषः) यह (ते) तेरा (यज्ञः) पूजनीय व्यवहार (स्वाहा) सुन्दर वाणी [वेदवाणी] द्वारा (सहसूक्तवाकः) सुन्दर वचनों के उपदेशों के सहित (सुवीर्यः) बड़े वीरत्ववाला [होवे] ॥६॥
भावार्थ
मनुष्य वेदमन्त्रों के मनन और उपदेश से अपना पराक्रम बढ़ावें ॥६॥ यह मन्त्र कुछ भेद से यजुर्वेद में है−८।२२ ॥
टिप्पणी
६−(एषः) (ते) तव (यज्ञः) पूजनीयो व्यवहारः (यज्ञपते) पूजनीयो व्यवहारस्य पालक (सहसूक्तवाकः) सह+सु+उक्त+वच परिभाषणे-घञ्। शोभनानां मुक्तानां वचनानां वाकैर्भाषणैः सहितः (सुवीर्यः) उत्तमपराक्रमयुक्तः (स्वाहा) सुवाण्या ॥
विषय
यज्ञ
पदार्थ
१.हे (यज्ञ) = श्रेष्ठतम कर्म! [यज्ञो वै श्रेष्ठतम कर्म] तू (यज्ञं गच्छ) = उपास्य परमात्मा को प्रास हो। हम यज्ञ करें और इन यज्ञों को प्रभु के प्रति अर्पित करनेवाले हों। हे यज्ञ! (यज्ञपतिं गच्छ) = तू यज्ञपति को प्राप्त हो, अर्थात् फल-प्रदान के द्वारा यजमान को प्राप्त होनेवाला हो। (स्वां योनि गच्छ) = अपनी कारणभत पारमेश्वरी शक्ति को प्रास हो, अर्थात् तुझे ये यजमान प्रभुशक्ति से होता हुआ जानें। (स्वाहा) = [सुआह] यह वाणी कितनी सुन्दर है, वेद का यह कथन वस्तुत: श्रेयस्कर है। २. हे (यज्ञपते) = यजमान! (एषः) = यह (ते यज्ञ:) = तुझसे किया जा रहा यज्ञ (सहसूक्तवाक:) = सूक्तवचनों के साथ हुआ है, विविध स्तोत्रों का इसमें उच्चारण हुआ है। (सुवीर्य:) = यह यज्ञ तुझे उत्तम वीर्यवाला बनाता है। (स्वाहा) = यह कथन कितना ही सुन्दर है। इसके सौन्दर्य को समझता हुआ तू यज्ञ करनेवाला बन।
भावार्थ
यज्ञ द्वारा प्रभुपूजन होता है। यह यज्ञ यजमान को उत्तम फल प्राप्त कराता है। यजमान इसे प्रभुशक्ति से होता हुआ समझे। इन यज्ञों को सूक्तवचनों के साथ करता हुआ वह उत्तम वीर्यवाला हो। यज्ञों के इन लाभों को समझता हुआ यजमान यज्ञशील बनें।
भाषार्थ
(यज्ञपते) हे ब्रह्मचर्ययज्ञ के पति ! अर्थात् रक्षक ! (एषः यज्ञः) यह यज्ञ (सहसूक्तवाकः) सूक्तों के कथन के समेत, (ते) तेरे लिये समर्पित है। (सुवीर्यः) जिस में कि वीर्य का उत्तम पालन किया जाता है, (स्वाहा) यह तेरे प्रति अर्पित हो।
टिप्पणी
[सहसूक्तवाकः= ब्रह्मचर्य यज्ञ में वीर्य का पालन होता है, और ब्रह्मचारी वैदिक सूक्तों का उच्चारण करते हुए वेदों का अध्ययन करते हैं]।
विषय
ऋत्विजों का वरण।
भावार्थ
हे (यज्ञ-पते) समस्त यज्ञों के स्वामिन् ! (एषः) यह भी महान् (यज्ञः) ब्रह्माण्ड, यह देह और यह आत्मा जिसमें इन्द्रिय मन प्राण आदि संगत हैं अथवा यह यज्ञ अर्थात् जो समाधि काल में तेरा संग लाभ हुआ है (ते) तेरा ही है। यही स्वतः (सहसूक्त-वाकः) सुन्दर सुन्दर स्तुति वचनों, मन्त्रों द्वारा वर्णन किया जाता है। और (सु-वीर्यः) उत्तम बलका देने वाला है। (स्वाहा) बस, यह आत्मा, हे परमात्मन् ! तेरे भीतर अपने को लीन कर देता है।
टिप्पणी
ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्। ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना॥ गीता॥ दोनों मन्त्रों का याज्ञिक अर्थ स्पष्ट है। ‘सर्ववीरस्तं जुषस्व स्वाहा’ इति यजु०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
यज्ञासम्पूणकामोऽथर्वा ऋषिः। इन्द्राग्नी देवते। १-४ त्रिष्टुभः। ५ त्रिपदार्षी भुरिग् गायत्री। त्रिपात् प्राजापत्या बृहती, ७ त्रिपदा साम्नी भुरिक् जगती। ८ उपरिष्टाद् बृहती। अष्टर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Yajna
Meaning
O yajnapati, host, organiser and president of the holy, creative, yajnic programme for the community, this yajna of yours which is performed with divine words and songs of adoration, is surely full of manly vigour and an act of adorable creativity. This is the voice of truth in thought, word and deed.
Translation
O Lord of sacrifice, this is your sacrifice accompanied with a chorus of praises, and bestower of excellent vigour. Svaha. (Also Yv, VIII.22)
Comments / Notes
MANTRA NO 7.102.6AS PER THE BOOK
Translation
O performer of the yajna! this your yajna is accomplished with hymn and the verses and it is strengthened by the Vedic words.
Translation
O God the Lord of all sacrifices, this soul, the master of organs, mind and breaths, and Thy visualiser in Samadhi, is Thine. It is spoken of in beautiful words and verses and is the bestower of nice strength. It merges itself in Thee. O God!
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
६−(एषः) (ते) तव (यज्ञः) पूजनीयो व्यवहारः (यज्ञपते) पूजनीयो व्यवहारस्य पालक (सहसूक्तवाकः) सह+सु+उक्त+वच परिभाषणे-घञ्। शोभनानां मुक्तानां वचनानां वाकैर्भाषणैः सहितः (सुवीर्यः) उत्तमपराक्रमयुक्तः (स्वाहा) सुवाण्या ॥
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