ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 40/ मन्त्र 6
स्व॑र्भानो॒रध॒ यदि॑न्द्र मा॒या अ॒वो दि॒वो वर्त॑माना अ॒वाह॑न्। गू॒ळ्हं सूर्यं॒ तम॒साप॑व्रतेन तु॒रीये॑ण॒ ब्रह्म॑णाविन्द॒दत्रिः॑ ॥६॥
स्वर सहित पद पाठस्वः॑ऽभानोः । अध॑ । यत् । इ॒न्द्र॒ । मा॒या । अ॒वः । दि॒वः । वर्त॑मानाः । अ॒व॒ऽअह॑न् । गू॒ळ्हम् । सूर्य॑म् । तम॑सा । अप॑ऽव्रतेन । तु॒रीये॑ण । ब्रह्म॑णा । अ॒वि॒न्द॒त् । अत्रिः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
स्वर्भानोरध यदिन्द्र माया अवो दिवो वर्तमाना अवाहन्। गूळ्हं सूर्यं तमसापव्रतेन तुरीयेण ब्रह्मणाविन्ददत्रिः ॥६॥
स्वर रहित पद पाठस्वःऽभानोः। अध। यत्। इन्द्र। मायाः। अवः। दिवः। वर्तमानाः। अवऽअहन्। गूळ्हम्। सूर्यम्। तमसा। अपऽव्रतेन। तुरीयेण। ब्रह्मणा। अविन्दत्। अत्रिः ॥६॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 40; मन्त्र » 6
अष्टक » 4; अध्याय » 2; वर्ग » 12; मन्त्र » 1
अष्टक » 4; अध्याय » 2; वर्ग » 12; मन्त्र » 1
विषय - फिर सूर्य्यविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ -
हे (इन्द्र) विद्वन् ! (यत्) जो (स्वर्भानोः) सूर्य्य के प्रकाशक के सम्बन्ध में (दिवः) प्रकाशमान (वर्त्तमानाः) स्थित (मायाः) बुद्धियाँ (अपव्रतेन) अन्यथा वर्त्तमान (तमसा) अन्धकार से और (तुरीयेण) चौथे (ब्रह्मणा) धन से (गूळ्हम्) गुप्त बिजलीनामक (सूर्यम्) सूर्य के उत्पन्न करनेवाले को (अवः) नीचे (अवाहन्) प्राप्त करती हैं (अध) इसके अनन्तर (अत्रिः) निरन्तर चलनेवाला (अविन्दत्) प्राप्त होता है, उनको आप जानिये ॥६॥
भावार्थ - जैसे गुप्त बिजुली के प्रकाश बड़े कार्य को सिद्ध करते हैं, वैसे ही विद्वानों की बुद्धियाँ सम्पूर्ण विज्ञान कार्य्यों को सिद्ध करती हैं ॥६॥
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