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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 40 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 40/ मन्त्र 6
    ऋषिः - अत्रिः देवता - इन्द्र: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    स्व॑र्भानो॒रध॒ यदि॑न्द्र मा॒या अ॒वो दि॒वो वर्त॑माना अ॒वाह॑न्। गू॒ळ्हं सूर्यं॒ तम॒साप॑व्रतेन तु॒रीये॑ण॒ ब्रह्म॑णाविन्द॒दत्रिः॑ ॥६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्वः॑ऽभानोः । अध॑ । यत् । इ॒न्द्र॒ । मा॒या । अ॒वः । दि॒वः । वर्त॑मानाः । अ॒व॒ऽअह॑न् । गू॒ळ्हम् । सूर्य॑म् । तम॑सा । अप॑ऽव्रतेन । तु॒रीये॑ण । ब्रह्म॑णा । अ॒वि॒न्द॒त् । अत्रिः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्वर्भानोरध यदिन्द्र माया अवो दिवो वर्तमाना अवाहन्। गूळ्हं सूर्यं तमसापव्रतेन तुरीयेण ब्रह्मणाविन्ददत्रिः ॥६॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स्वःऽभानोः। अध। यत्। इन्द्र। मायाः। अवः। दिवः। वर्तमानाः। अवऽअहन्। गूळ्हम्। सूर्यम्। तमसा। अपऽव्रतेन। तुरीयेण। ब्रह्मणा। अविन्दत्। अत्रिः ॥६॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 40; मन्त्र » 6
    अष्टक » 4; अध्याय » 2; वर्ग » 12; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः सूर्यविषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे इन्द्र ! यद्या स्वर्भानोर्दिवो वर्त्तमाना माया अपव्रतेन तमसा तुरीयेण ब्रह्मणा गूळ्हं सूर्य्यमवोऽवाहन्नधात्रिरविन्दत् तास्त्वं विजानीहि ॥६॥

    पदार्थः

    (स्वर्भानोः) आदित्यप्रकाशस्य (अध) आनन्तर्य्ये (यत्) याः (इन्द्र) विद्वन् (मायाः) प्रज्ञाः (अवः) अधस्थात् (दिवः) प्रकाशमानाः (वर्त्तमानाः) (अवाहन्) वहन्ति (गूळ्हम्) गुप्तं विद्युदाख्यम् (सूर्य्यम्) सवितुः सवितारम् (तमसा) अन्धकारेण (अपव्रतेन) अन्यथा वर्त्तमानेन (तुरीयेण) चतुर्थेन (ब्रह्मणा) धनेन (अविन्दत्) लभते (अत्रिः) सततं गामी ॥६॥

    भावार्थः

    यथा गुप्ता विद्युदीप्तयो महत्कार्य्यं साध्नुवन्ति तथैव विदुषां प्रज्ञाः सर्वाणि प्रज्ञानकृत्यानि साध्नुवन्ति ॥६॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर सूर्य्यविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (इन्द्र) विद्वन् ! (यत्) जो (स्वर्भानोः) सूर्य्य के प्रकाशक के सम्बन्ध में (दिवः) प्रकाशमान (वर्त्तमानाः) स्थित (मायाः) बुद्धियाँ (अपव्रतेन) अन्यथा वर्त्तमान (तमसा) अन्धकार से और (तुरीयेण) चौथे (ब्रह्मणा) धन से (गूळ्हम्) गुप्त बिजलीनामक (सूर्यम्) सूर्य के उत्पन्न करनेवाले को (अवः) नीचे (अवाहन्) प्राप्त करती हैं (अध) इसके अनन्तर (अत्रिः) निरन्तर चलनेवाला (अविन्दत्) प्राप्त होता है, उनको आप जानिये ॥६॥

    भावार्थ

    जैसे गुप्त बिजुली के प्रकाश बड़े कार्य को सिद्ध करते हैं, वैसे ही विद्वानों की बुद्धियाँ सम्पूर्ण विज्ञान कार्य्यों को सिद्ध करती हैं ॥६॥

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    विषय

    missing

    भावार्थ

    भा०- ( स्वर्भानोः ) सूर्य के प्रकाशित, स्वयम् अप्रकाश चन्द्र आदि पिण्ड की (दिवः ) सूर्य से ( अवः ) उरे या नीचे की ओर ही ( वर्त्तमानाः ) रह जाने वाली ( मायाः ) अन्धकार की रेखाओं को सूर्य ( अब अहन् ) नीचे की ओर ही प्रेरित करता है । ( अप व्रतेन ) स्वतः क्रिया शून्य, ( तमसा ) अन्धकार से ( सूर्यं गूढं ) छुपे हुए सूर्य को (अत्रिः ) इस भूलोक का वासी जन ( तुरीयेण ब्रह्मणा ) तीनों लोकों से परे विद्यमान 'ब्रह्म' अर्थात् विशाल तेज से ही उसको ( अविन्दत् ) देख रहा होता है । ठीक उसी प्रकार हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् ! सूर्यवत् तेजस्विन् ! ( अध यत् ) जब ( दिवः अवः वर्त्तमानाः ) सूर्यवत् तेजस्वी विजिगीषु तेरे से परे दूर २ रहने वाली ( स्वः र्भानोः ) प्रतापी शत्रु की ( मायाः ) अद्भुत मायाओं और चालों को भी तू ( अव अहन् ) मार गिराता है तब ( अपव्रतेन तमसा गूढं सूर्यं ) क्रियाकौशल से रहित खेदादि से आच्छाहित । तुझ सूर्यवत् तेजस्वी पुरुष को भी ( अत्रिः ) इस राष्ट्र का वासी जन ( तुरीयेण ) सर्वातिशायी ( ब्रह्मणा ) बड़े भारी बल और ऐश्वर्य से ही (अविन्दत् ) प्राप्त करता है ।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अत्रिर्ऋषिः ॥ १–४ इन्द्रः । ५ सूर्यः । ६-९ अत्रिर्देवता ॥ छन्दः— १ निचृदुष्णिक् । २, ३ उष्णिक् । ९ स्वराडुष्णिक् । ४ त्रिष्टुप् । ५, ६, ८ निचृत् त्रिष्टुप् । ७ भुरिक् पंक्तिः ॥

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    विषय

    स्वर्भानु की माया का विनाश

    पदार्थ

    [१] हे (इन्द्र) = जितेन्द्रिय पुरुष ! (अध) = अब (यद्) = जिस समय तू (स्वर्भानो:) = इस दीप्ति को नष्ट करनेवाले वैषयिक राग अज्ञान की (दिव:) = ज्ञान के (अव:) = नीचे (वर्तमानाः) = होती हुई, अर्थात् ज्ञान पर (परदे) = के रूप आ जाती हुई (मायाः) = मायाओं को (अवाहन्) = नष्ट कर डालता है तभी यह (अत्रिः) = काम-क्रोध-लोभ से ऊपर उठनेवाला व्यक्ति (सूर्यम्) = ज्ञानसूर्य को (अविन्दत्) = प्राप्त करता है। [२] उस सूर्य को प्राप्त करता है जो कि (अपव्रतेन तमसा) = जिसमें सब उत्तम कर्म नष्ट हो गये हैं ऐसे अज्ञानान्धकार से (गूढम्) = छिप गया था। विषय-राग के प्रबल होने पर सब धर्म-कर्म लुप्त हो जाते हैं। यह विषय-रागान्धकार अपव्रत तो है ही। इस सूर्य को अत्रि-काम-क्रोध-लोभ से ऊपर उठनेवाला, व्यक्ति (तुरीयेण ब्रह्मणा) = पृथिवी- अन्तरिक्ष द्युलोक के परे चतुर्थ लोक में स्थित ब्रह्म से (अविन्दत्) = प्राप्त करता है। प्रभु कृपा से ही माया का परदा हटता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु कृपा से जब हम माया के परदे को दूर कर पाते हैं, तभी हमारा ज्ञानसूर्य चमकने लगता है। इसकी दीप्ति में ही सब उत्तम यज्ञादि कर्मों का सम्भव होता है ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जसा गुप्त विद्युत प्रकाश मोठमोठे कार्य सिद्ध करतो. तशीच विद्वानांची बुद्धी संपूर्ण विज्ञान कार्य सिद्ध करते. ॥ ६ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    And then Indra, when the cosmic energy which moves the stars and planets removes the shadow of the moon from the sun, then Atri, man of knowledge, with his fourth state of the soul, that is, turiya, direct vision of Reality, regains the sight of the sun earlier covered by the shadow of the moon.$Similarly, when Indra, lord of light, removes the illusion of darkness which intercepts the light of the spirit below it, then Atri, the sage of knowledge and discrimination, with this fourth stage of spiritual development, regains the light earlier covered by the darkness of ignorance.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The same subject is continued.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O learned person ! the enlightened intellects of the man whose knowledge is like the light of the sun, fire at the sun covered by the darkness in the form of electricity, because it prevents the performance of the work-then with the sublime knowledge an industrious person going everywhere finds out or locates it. You should know all those good intellects.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    As the hidden electrical sparks (or of power) accomplish great works, in the same way, the intellects of the enlightened persons, accomplish all works of knowledge.

    Foot Notes

    (स्वर्भानोः ) आदित्यप्रकाशस्य । = Of the light of the sun. (गूढम् ) गुप्तं विद्युदास्यम् = Electricity. (अत्रिः ) सततं गामी । अत सातत्यगमने (भ्वा० ) । = Industrious person who goes everywhere.

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