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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 28 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 28/ मन्त्र 3
    ऋषिः - मनुर्वैवस्वतः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - विराड्गायत्री स्वरः - षड्जः

    ते नो॑ गो॒पा अ॑पा॒च्यास्त उद॒क्त इ॒त्था न्य॑क् । पु॒रस्ता॒त्सर्व॑या वि॒शा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ते । नः॒ । गो॒पाः । अ॒पा॒च्याः । ते । उद॑क् । ते । इ॒त्था । न्य॑क् । पु॒रस्ता॑त् । सर्व॑या । वि॒शा ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ते नो गोपा अपाच्यास्त उदक्त इत्था न्यक् । पुरस्तात्सर्वया विशा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ते । नः । गोपाः । अपाच्याः । ते । उदक् । ते । इत्था । न्यक् । पुरस्तात् । सर्वया । विशा ॥ ८.२८.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 28; मन्त्र » 3
    अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 35; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    (ते) वे वरुण=क्षत्र, मित्र=ब्रह्म, अर्य्यमा=वैश्य (सर्वया+विशा) सर्व प्रजाओं के साथ (अपाच्याः) पश्चिम दिशा से (नः) हमारे रक्षक होवें (ते) वे ही (उदक्तः) उत्तर दिशा से हमारे रक्षक होवें । (इत्था) इस प्रकार दक्षिण दिशा से ऊर्ध्व दिशा से भी हमें पालें । पुनः । (न्यक्) नीची दिशा से और (पुरस्तात्) पूर्व दिशा से हमारे पालक होवें ॥३ ॥

    भावार्थ - मनुष्यदेव जो ब्राह्मणादिक हैं, वे हमारी सदा सब ओर रक्षा करें, अथवा वे इन्द्रियगण हमारी रक्षा करें, यह भाव ग्रहण करना चाहिये ॥३ ॥

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