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  • यजुर्वेद - अध्याय 35/ मन्त्र 17
    ऋषिः - भरद्वाजः शिरम्बिठ ऋषिः देवता - इन्द्रो देवता छन्दः - स्वराट् त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    आयु॑ष्मानग्ने ह॒विषा॑ वृधा॒नो घृ॒तप्र॑तीको घृ॒तयो॑निरेधि।घृ॒तं पी॒त्वा मधु॒ चारु॒ गव्यं॑ पि॒तेव॑ पु॒त्रम॒भि र॑क्षतादि॒मान्त्स्वाहा॑॥१७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आयु॑ष्मान्। अ॒ग्ने॒। ह॒विषा॑। वृ॒धा॒नः। घृ॒तप्र॑तीक॒ इति॑ घृ॒तऽप्र॑तीकः। घृ॒तयो॑नि॒रिति॑ घृ॒तऽयो॑निः। ए॒धि॒ ॥ घृ॒तम्। पी॒त्वा। मधु॑। चारु॑। गव्य॑म्। पि॒तेवेति॑ पि॒ताऽइ॑व। पु॒त्रम्। अ॒भि। र॒क्ष॒ता॒त्। इ॒मान्। स्वाहा॑ ॥१७ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आयुष्मानग्ने हविषा वृधानो घृतप्रतीको घृतयोनिरेधि । घृतम्पीत्वा मधु चारु गव्यम्पितेव पुत्रमभिरक्षतादिमान्त्स्वाहा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    आयुष्मान्। अग्ने। हविषा। वृधानः। घृतप्रतीक इति घृतऽप्रतीकः। घृतयोनिरिति घृतऽयोनिः। एधि॥ घृतम्। पीत्वा। मधु। चारु। गव्यम्। पितेवेति पिताऽइव। पुत्रम्। अभि। रक्षतात्। इमान्। स्वाहा॥१७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 35; मन्त्र » 17
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    Translation -
    O fire, bestower of longevity, flourishing with offerings, born out of purified butter, may your mouth remain always full of purified butter. Having consumed sweet and delicious cow-butter, may you protect these people, just as a father protects his son. Svaha. (1)

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