Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 5/ मन्त्र 19
    ऋषिः - औतथ्यो दीर्घतमा ऋषिः देवता - विष्णुर्देवता छन्दः - निचृत् आर्षी जगती, स्वरः - निषादः
    3

    दि॒वो वा॑ विष्णऽउ॒त वा॑ पृथि॒व्या म॒हो वा॑ विष्णऽउ॒रोर॒न्तरि॑क्षात्। उ॒भा हि हस्ता॒ वसु॑ना पृ॒णस्वा प्रय॑च्छ॒ दक्षि॑णा॒दोत स॒व्याद्विष्ण॑वे त्वा॥१९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दि॒वः। वा॒। वि॒ष्णो॒ऽइति॑ विष्णो। उ॒त। वा॒। पृ॒थि॒व्याः। म॒हः। वा॒। वि॒ष्णो॒ऽइति॑ विष्णो। उ॒रोः। अ॒न्तरि॑क्षात्। उ॒भा। हि। हस्ता॑। वसु॑ना। पृ॒णस्व॑। आ। प्र। य॒च्छ॒। दक्षि॑णात्। आ। उ॒त। स॒व्यात्। विष्ण॑वे। त्वा॒ ॥१९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    दिवो वा विष्णऽउत वा पृथिव्या महो वा विष्णऽउरोरन्तरिक्षात् । उभा हि हस्ता वसुना पृणस्वा प्रयच्छ दक्षिणादोत सव्यात् विष्णवे त्वा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    दिवः। वा। विष्णोऽइति विष्णो। उत। वा। पृथिव्याः। महः। वा। विष्णोऽइति विष्णो। उरोः। अन्तरिक्षात्। उभा। हि। हस्ता। वसुना। पृणस्व। आ। प्र। यच्छ। दक्षिणात्। आ। उत। सव्यात्। विष्णवे। त्वा॥१९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 5; मन्त्र » 19
    Acknowledgment

    Translation -
    O sun-divine, whether from heaven, or from the earth, or from the vast and widespread interspace, fill both of your hands, O sun-divine, with riches and grant to us with your right hand and with the left as well. (1) You to the sun-divine. (2)

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top