Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 6/ मन्त्र 7
    ऋषिः - मेधातिथिर्ऋषिः देवता - त्वष्टा देवता छन्दः - निचृत् आर्षी बृहती, स्वरः - मध्यमः
    1

    उ॒पा॒वीर॒स्युप॑ दे॒वान् दैवी॒र्विशः॒ प्रागु॑रु॒शिजो॒ वह्नि॑तमान्। देव॑ त्वष्ट॒र्वसु॑ रम ह॒व्या ते॑ स्वदन्ताम्॥७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒पा॒वीरित्यु॑पऽअ॒वीः। अ॒सि॒। उप॑। दे॒वान्। दैवीः॑। विशः॑। प्र। अ॒गुः॒। उ॒शिजः॑। वह्नि॑तमा॒निति॒ वह्नि॑ऽतमान्। देव॑। त्व॒ष्टः॒। वसु॑। र॒म॒। ह॒व्या। ते॒। स्व॒द॒न्ता॒म् ॥७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उपावीरस्युप देवान्दैवीर्विशः प्रागुरुशिजो वह्नितमान् । देव त्वष्टर्वसु रम हव्या ते स्वदन्ताम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    उपावीरित्युपऽअवीः। असि। उप। देवान्। दैवीः। विशः। प्र। अगुः। उशिजः। वह्नितमानिति वह्निऽतमान्। देव। त्वष्टः। वसु। रम। हव्या। ते। स्वदन्ताम॥७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 6; मन्त्र » 7
    Acknowledgment

    Translation -
    You are the protector of approachers. The divine subjects approach the yearning bounties of Nature, which are best conveyers. O universal architect, enjoy the riches. May your oblations be delicious. (1)

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top