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  • यजुर्वेद - अध्याय 7/ मन्त्र 46
    ऋषिः - आङ्गिरस ऋषिः देवता - विद्वांसो देवता छन्दः - भूरिक् आर्षी त्रिष्टुप्, स्वरः - धैवतः
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    ब्रा॒ह्म॒णमद्य॒ वि॑देयं पितृ॒मन्तं॑ पैतृम॒त्यमृषि॑मार्षे॒यꣳ सु॒धातु॑दक्षिणम्। अ॒स्मद्रा॑ता देव॒त्रा ग॑च्छत प्रदा॒तार॒मावि॑शत॥४६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ब्रा॒ह्म॒णम्। अ॒द्य। वि॒दे॒य॒म्। पि॒तृ॒मन्त॒मिति॑ पितृ॒ऽमन्त॑म्। पै॒तृ॒म॒त्यमिति॑ पैतृऽम॒त्यम्। ऋषि॑म्। आ॒र्षे॒यम्। सु॒धातु॑दक्षिण॒मिति॑ सु॒धातु॑ऽदक्षिणम्। अ॒स्मद्रा॑ता॒ इत्य॒स्मत्ऽरा॑ताः। दे॒व॒त्रेति॑ देव॒ऽत्रा। ग॒च्छ॒त॒। प्र॒दा॒तार॒मिति॑ प्रऽदा॒तार॑म्। आ। वि॒श॒त॒ ॥४६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ब्राह्मणमद्य विदेयम्पितृमन्तम्पैतृमत्यमृषिमार्षेयँ सुधातुदक्षिणम् । अस्मद्राता देवत्रा गच्छत प्रदातारमा विशत ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    ब्राह्मणम्। अद्य। विदेयम्। पितृमन्तमिति पितृऽमन्तम्। पैतृमत्यमिति पैतृऽमत्यम्। ऋषिम्। आर्षेयम्। सुधातुदक्षिणमिति सुधातुऽदक्षिणम्। अस्मद्राता इत्यस्मत्ऽराताः। देवत्रेति देवऽत्रा। गच्छत। प्रदातारमिति प्रऽदातारम्। आ। विशत॥४६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 7; मन्त्र » 46
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    Translation -
    May I find today a learned and realized person born of a reputed father and respectable forefathers; himself a seer and born in а family of seers and a man of mettle and dexterity. (1) O charities given by me, go to the enlightened ones and thereafter return to the donor. (2)

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