अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 10/ मन्त्र 2
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - शान्ति सूक्त
शं नो॒ भगः॒ शमु॑ नः॒ शंसो॑ अस्तु॒ शं नः॒ पुर॑न्धिः॒ शमु॑ सन्तु॒ रायः॑। शं नः॑ स॒त्यस्य॑ सु॒यम॑स्य॒ शंसः॒ शं नो॑ अर्य॒मा पु॑रुजा॒तो अ॑स्तु ॥
स्वर सहित पद पाठशम्। नः॒। भगः॑। शम्। ऊं॒ इति॑। नः॒। शंसः॑। अ॒स्तु॒। शम्। नः॒। पुर॑म्ऽधिः। शम्। ऊं॒ इति॑। स॒न्तु॒। रायः॑। शम्। नः॒। स॒त्यस्य॑। सु॒ऽयम॑स्य॑। शंसः॑। शम्। नः॒। अ॒र्य॒मा। पु॒रु॒ऽजा॒तः। अ॒स्तु॒ ॥१०.२॥
स्वर रहित मन्त्र
शं नो भगः शमु नः शंसो अस्तु शं नः पुरन्धिः शमु सन्तु रायः। शं नः सत्यस्य सुयमस्य शंसः शं नो अर्यमा पुरुजातो अस्तु ॥
स्वर रहित पद पाठशम्। नः। भगः। शम्। ऊं इति। नः। शंसः। अस्तु। शम्। नः। पुरम्ऽधिः। शम्। ऊं इति। सन्तु। रायः। शम्। नः। सत्यस्य। सुऽयमस्य। शंसः। शम्। नः। अर्यमा। पुरुऽजातः। अस्तु ॥१०.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 10; मन्त्र » 2
Translation -
May our fortune be auspicious to us, may our extensive wisdom and all our riches be the source of happiness to us, may our will regulated and truthful life be blessing to us and may administrator of justice chosen by many be just to us.