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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 10 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 10/ मन्त्र 2
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - शान्ति सूक्त
    52

    शं नो॒ भगः॒ शमु॑ नः॒ शंसो॑ अस्तु॒ शं नः॒ पुर॑न्धिः॒ शमु॑ सन्तु॒ रायः॑। शं नः॑ स॒त्यस्य॑ सु॒यम॑स्य॒ शंसः॒ शं नो॑ अर्य॒मा पु॑रुजा॒तो अ॑स्तु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शम्। नः॒। भगः॑। शम्। ऊं॒ इति॑। नः॒। शंसः॑। अ॒स्तु॒। शम्। नः॒। पुर॑म्ऽधिः। शम्। ऊं॒ इति॑। स॒न्तु॒। रायः॑। शम्। नः॒। स॒त्यस्य॑। सु॒ऽयम॑स्य॑। शंसः॑। शम्। नः॒। अ॒र्य॒मा। पु॒रु॒ऽजा॒तः। अ॒स्तु॒ ॥१०.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शं नो भगः शमु नः शंसो अस्तु शं नः पुरन्धिः शमु सन्तु रायः। शं नः सत्यस्य सुयमस्य शंसः शं नो अर्यमा पुरुजातो अस्तु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शम्। नः। भगः। शम्। ऊं इति। नः। शंसः। अस्तु। शम्। नः। पुरम्ऽधिः। शम्। ऊं इति। सन्तु। रायः। शम्। नः। सत्यस्य। सुऽयमस्य। शंसः। शम्। नः। अर्यमा। पुरुऽजातः। अस्तु ॥१०.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 10; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    सृष्टि के पदार्थों से उपकार लेने का उपदेश।

    पदार्थ

    (नः) हमारा (भगः) ऐश्वर्य (शम्) शान्तिदायक, (उ) और (नः) हमारी (शंसः) स्तुति (शम्) शान्तिदायक (अस्तु) हो (नः) हमारी [पुरन्धिः] नगरों की धारण करनेहारी बुद्धि (शम्) शान्तिदायक हो, (उ) और (रायः) सब प्रकार के धन (शम्) शान्तिदायक (सन्तु) हों। (नः) हमारा (सत्यस्य) सच्चे (सुयमस्य) सुन्दर नियम का (शंसः) कथन (शम्) शान्तिदायक हो, (पुरुजातः) बहुत प्रसिद्ध (अर्यमा) श्रेष्ठों का मान करनेहारा [न्यायकारी परमेश्वर] (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक (अस्तु) हो ॥२॥

    भावार्थ

    मनुष्य प्रयत्न करें कि उनका ऐश्वर्य, उनका कथन, उनका शासन आदि सब कार्य न्याययुक्त हो, जिससे वह जगदीश्वर सदा आनन्द देवे ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(शम्) शान्तिप्रदः (नः) अस्माकम् (भगः) ऐश्वर्यम् (शम्) (उ) चार्थे (नः) (शंसः) शंसु हिंसास्तुतिकथनेषु-घञ्। स्तुतिः, कथनम् (अस्तु) (शम्) (नः) (पुरन्धिः) कर्मण्यधिकरणे च। पा० ३।३।९३। पुर्+डुधाञ् धारणपोषणयोः−कि प्रत्ययः, अलुक् समासः। पुरन्धिर्बहुधीः-निरु० ६।१३। पुरं गृहं नगरं शरीरं वा दधातीति। नगरस्य धारिका बुद्धिः (शम्) (उ) (सन्तु) (रायः) धनानि (शम्) (नः) (सत्यस्य) यथार्थस्य (सुयमस्य) शोभननियमस्य (शंसः) कथनम् (शम्) (नः) अस्मभ्यम् (अर्यमा) श्रेष्ठानां मानकर्ता न्यायकारी परमेश्वरः (पुरुजातः) बहुप्रसिद्धः (अस्तु) ॥

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    विषय

    भगः-अर्यमा

    पदार्थ

    १. (न:) = हमारे लिए (भग:) = ऐश्वर्य (शम्) = शान्ति देनेवाला हो। (उ) = और (न:) = हमारे लिए (शंस:) = विज्ञान [Science] (शम् अस्तु) = शान्तिकर हो। (न:) = हमारे लिए (पुरन्धिः) = पालक व पूरक बुद्धि (शम्) = शान्ति प्राप्त कराए (उ) = और (राय:) = सब धन (शं सन्तु) = शान्ति करनेवाले हों। २. (न:) = हमारे लिए (सत्यस्य) = सत्य का तथा (सुयमस्य) = उत्तम नियम का (शंस:) = उपदेश (शम्) = शान्ति देनेवाला हो। (न:) = हमारे लिए (पुरुजात:) = महान् विकासवाला (अर्यमा) = सब-कुछ देनेवाला [अर्यमति तमाहुर्यों ददाति] अथवा न्यायकारी प्रभु ((शं अस्तु)) = शान्ति प्राप्त करानेवाला हो।

    भावार्थ

    भौतिक ऐश्वर्य, ज्ञान, बुद्धि व धन हमारे लिए शान्ति देनेवाले हों। सत्य व संयम का उपदेश हमें शान्ति दे। सब-कुछ देनेवाले वे प्रभु आवश्यक वस्तुओं को प्राप्त कराके हमें शान्ति दें।

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    भाषार्थ

    (भगः) ६ प्रकार का भग (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक हो, (शंसः) महाजनों के सुवचन (नः) हमें (उ) निश्चय से (शम् अस्तु) शान्तिदायक हों। (पुरंधिः) बहुप्रज्ञ व्यक्ति (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक हो, (रायः) विविध प्रकार की आधिदैविक आधिभौतिक और आध्यात्मिक सम्पत्तियां (उ) निश्चय से (शम् सन्तु) शान्तिदायक हों। (सत्यस्य) सत्य का, तथा (सुयमस्य) उत्तम यम-नियमों का (शंसः) उपदेश (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक हो, (पुरुजातः) न्याय करने में बहुत प्रसिद्ध (अर्यमा) न्यायाधीश (नः) हमें (शम् अस्तु) शान्तिदायक हों।

    टिप्पणी

    [भगः=ऐश्वर्यस्य समग्रस्य धर्मस्य यशसः श्रियः। ज्ञानवैराग्ययोश्चैव षण्णां भग इतीरणा॥ पुरंधि= बहुधीः (निरु० ६.३.१३)। अर्यमा=अरीन् नियच्छति (निरु० ११.३.२३)।]

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    विषय

    सुख शान्ति का वर्णन।

    भावार्थ

    (भगः) भजन करने योग्य, ऐश्वर्यवान्, देव, परमेश्वर अथवा ऐश्वर्यवान् धनाढ्य लोग (नः शम्) हमें शान्ति सुख दें। (शंसः नः शम्) उत्तम उपदेश करनेहारा शास्त्रवक्ता पुरुष अथवा समस्त पुरुषों द्वारा प्रशंसनीय पुरुष या परमेश्वर (नः शम् उ) हमें शान्ति सुख दें। (पुरन्धिः) पुर=राष्ट्र नगर का धारण करने वाला पुरुष (पुरन्धिः) पुर देह को धारण करने वाली बुद्धि अथवा पूर्ण ब्रह्माण्ड को धारण करने वाला पुरुष परमेश्वर, पुर=गृह को धारण करने वाला स्त्रीजन (नः शम्) हमें शान्ति सुख दें। (रायः) समस्त ऐश्वर्य (शम् उ सन्तु) हमें शान्तिदायक हों। (सुयमस्य) उत्तम नियमन, उत्तम रूप से संयमन करने वाले (सत्यस्य) सत्यस्वरूप परमेश्वर का या उत्तम संयम, ब्रह्मचर्य से युक्त सत्य ज्ञान का (शंसः) भजनकीर्त्तन, अथवा उपदेशक पुरुष (नः शम्) हमें शान्ति दें। (पुरुजातः अर्यमा) बहुत से प्रजाजनों में सब की सहमति से बनाया गया (अर्यमा) न्यायकारी पुरुष अथवा समस्त पदार्थों में व्यापक परमेश्वर अथवा पुरु-इन्द्रियों में सामर्थ्यवान् आत्मा (नः शम् अस्तु) हमें शान्तिदायक हो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शान्तिकामो ब्रह्मा ऋषिः। सोमो देवता। निष्टुमः। दशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Shanti

    Meaning

    May Bhaga, power and prosperity, bring us peace. May our praises and appreciations prevailing around be for peace. May our organisational wisdom and performance bring us peace. May our wealth and honour and excellence be for our peace. Let our praises and appreciations of truth and noble conduct be for our peace. And may Aryama, law, justice and the rule of law, ever alert and awake, bring us peace and well-being.

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    Translation

    May the prosperity be for our happiness; may the discipline be for happiness; may the intellectual pursuits be for our happiness; may the riches be for happiness: may the variously-manifested law and order be for our happiness. (Rg.VII.35.2)

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    Translation

    May our fortune be auspicious to us, may our extensive wisdom and all our riches be the source of happiness to us, may our will regulated and truthful life be blessing to us and may administrator of justice chosen by many be just to us.

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    Translation

    May fortune be auspicious to us. May our prayers be blessed for us. May our wisdom be agreeable to us. May our wealth of all kinds be peaceshowering to us. May our exposition true rules of life be peaceful. May the Well-known, Just God shower bliss on us.

    Footnote

    cf. Rig, 7.35.2.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(शम्) शान्तिप्रदः (नः) अस्माकम् (भगः) ऐश्वर्यम् (शम्) (उ) चार्थे (नः) (शंसः) शंसु हिंसास्तुतिकथनेषु-घञ्। स्तुतिः, कथनम् (अस्तु) (शम्) (नः) (पुरन्धिः) कर्मण्यधिकरणे च। पा० ३।३।९३। पुर्+डुधाञ् धारणपोषणयोः−कि प्रत्ययः, अलुक् समासः। पुरन्धिर्बहुधीः-निरु० ६।१३। पुरं गृहं नगरं शरीरं वा दधातीति। नगरस्य धारिका बुद्धिः (शम्) (उ) (सन्तु) (रायः) धनानि (शम्) (नः) (सत्यस्य) यथार्थस्य (सुयमस्य) शोभननियमस्य (शंसः) कथनम् (शम्) (नः) अस्मभ्यम् (अर्यमा) श्रेष्ठानां मानकर्ता न्यायकारी परमेश्वरः (पुरुजातः) बहुप्रसिद्धः (अस्तु) ॥

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