अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 10/ मन्त्र 8
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - शान्ति सूक्त
42
शं नः॒ सूर्य॑ उरु॒चक्षा॒ उदे॑तु॒ शं नो॑ भवन्तु प्र॒दिश॒श्चत॑स्रः। शं नः॒ पर्व॑ता ध्रु॒वयो॑ भवन्तु॒ शं नः॒ सिन्ध॑वः॒ शमु॑ स॒न्त्वापः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठशम्। नः॒। सूर्यः॑। उ॒रु॒ऽचक्षाः॑। उत्। ए॒तु॒। शम्। नः॒। भ॒व॒न्तु॒। प्र॒ऽदिशः॑। चत॑स्रः। शम्। नः॒। पर्व॑ताः। ध्रु॒वयः॑। भ॒व॒न्तु॒। शम्। नः॒। सिन्ध॑वः। शम्। ऊं॒ इति॑। स॒न्तु॒। आपः॑ ॥१०.८॥
स्वर रहित मन्त्र
शं नः सूर्य उरुचक्षा उदेतु शं नो भवन्तु प्रदिशश्चतस्रः। शं नः पर्वता ध्रुवयो भवन्तु शं नः सिन्धवः शमु सन्त्वापः ॥
स्वर रहित पद पाठशम्। नः। सूर्यः। उरुऽचक्षाः। उत्। एतु। शम्। नः। भवन्तु। प्रऽदिशः। चतस्रः। शम्। नः। पर्वताः। ध्रुवयः। भवन्तु। शम्। नः। सिन्धवः। शम्। ऊं इति। सन्तु। आपः ॥१०.८॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
सृष्टि के पदार्थों से उपकार लेने का उपदेश।
पदार्थ
(उरुचक्षाः) दूर तक दिखानेवाला (सूर्यः) सूर्य (नः) हमें (शम्) सुखदायक (उत् एतु) उदय हो, (चतस्रः) चारों (प्रदिश) बड़ी दिशाएँ (नः) हमें (शम्) सुखदायक (भवन्तु) होवें। (ध्रुवयः) दृढ़ (पर्वताः) पहाड़ (नः) हमें (शम्) सुखदायक (भवन्तु) हों, (सिन्धवः) समुद्र वा नदियाँ (नः) हमें (शम्) सुखदायक हों, (उ) और (आपः) जल [वा प्राण] (शम्) सुखदायक (सन्तु) हों ॥८॥
भावार्थ
जो मनुष्य विद्याबल से सूर्य के प्रकाश के समान सब दिशाओं को खोजते, पहाड़ों पर जाते, और नदियों को पार करते और कूप, वृष्टि आदि के जलों से खेती शिल्प आदि में काम लेते हैं, वे संसार में कीर्तिमान् होते हैं ॥८॥
टिप्पणी
८−(शम्) सुखप्रदः (नः) अस्मभ्यम् (सूर्यः) रविः (उरुचक्षाः) चक्षेर्बहुलं शिच्च। उ० ४।२३३। उरु+चक्षिङ् दर्शने-असि। विस्तीर्णं चक्षो दर्शनं यस्मात् सः (उदेतु) उदयं गच्छतु (शम्) (नः) (भवन्तु) (प्रदिशः) प्रकृष्टाः पूर्वादयो दिशः (चतस्रः) (शम्) (नः) (पर्वताः) शैलाः (ध्रुवयः) भुजेः किच्च। उ० ४।१४२। ध्रु स्थैर्ये-इ प्रत्ययः कित्। स्थिराः (भवन्तु) (शम्) (नः) (सिन्धवः) समुद्रा नद्यो वा (शम्) (उ) (सन्तु) (आपः) जलानि प्राणा वा ॥
विषय
सूर्य से आपः तक
पदार्थ
१. (उरुचक्षा:) = विशाल दृष्टि-[प्रकाश]-वाला (सूर्य: नः शम् उदेतु) = सूर्य हमारे लिए शान्तिकर होकर उदित हो। (चतस्त्रः प्रदिश) = चारों विशाल दिशाएँ (नः शं भवन्तु) = हमारे लिए शान्तिकर हों। २. ये (ध्रुवयः) = अपने स्थानों से न डिगनेवाले (पर्वताः नः शं भवन्तु) = पर्वत हमारे लिए शान्तिकर हों।(न:) = हमारे लिए इन पर्वतों से बहनेवाली (सिन्धवः) = नदियाँ (शम्) = शान्ति दें, (उ) = और उन नदियों के (आप:) = जल (शं सन्त) = शान्तिकर हों।
भावार्थ
सूर्य से हम विशाल दृष्टि का पाठ पढ़ें, दिशाओं से विशालहृदयता को सीखें। पर्वतों से ध्रुवता का पाठ पढ़ें। नदियों से निरन्तर गति की शिक्षा लें और जलों से शान्ति का पाठ पढ़ें। इसीप्रकार जीवन शान्त बनेगा।
भाषार्थ
(उरुचक्षाः) दूर तक दिखानेवाला (सूर्यः) सूर्य (नः) हमें (शम्) शान्ति तथा सुख देता हुआ (उदेतु) उदय को प्राप्त हो। (चतस्रः) चारों (प्रदिशः) विस्तृत दिशाएँ (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक तथा सुखदायक (भवन्तु) हों। (ध्रुवयः) ध्रुव रहनेवाले, स्थिर रहनेवाले (पर्वताः) पर्वत (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक तथा सुखदायक (भवन्तु) हों, (सिन्धवः) समुद्र तथा नदियाँ (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक तथा सुखदायक हों, (आपः) जल (उ) निश्चय से (शम्) शान्तिदायक तथा सुखदायक (सन्तु) हों।
टिप्पणी
[पर्वताः ध्रुवयः=पर्वत के दो अर्थ हैं—प्रसिद्ध पर्वत तथा मेघ (निघं० १.१०)। मेघ ध्रुव नहीं होते, प्रसिद्ध पर्वत ध्रुव होते हैं। गर्मियों में पर्वत-निवास शान्ति तथा सुख का कारण होता है, तथा स्रोतों और ओषधियों के प्रदान द्वारा भी। ध्रुवयः=ध्रुवि+प्रथमा बहुवचन। औणादिकः “इः” प्रत्यय; बाहुलकात्।]
विषय
सुख शान्ति का वर्णन।
भावार्थ
(उरुचक्षाः) विस्तीर्ण तेज वाला, सर्व प्रत्यक्ष सर्वदर्शी (सूर्यः) सूर्य और उसके समान तेजस्वी आदित्य योगी (नः शम्) हमें शांतिदायक होकर (उत् एतु) उदय को, वृद्धि को प्राप्त हो (चतस्रः) चारों (प्रदिशः) मुख्य दिशाएं (नः शंभवन्तु) हमें शांतिदायक हों। (ध्रुवयः) अचल, स्थिर खड़े (पर्वताः) पर्वत (नः शं भवन्तु) हमें शांति सुख देने हारे हों। (सिन्धवः) वेग से बहने वाले, नद महानद और (आपः) अन्य नाना जल भी (नः शम्) हमें शांतिदायक हों।
टिप्पणी
(द्वि०) ‘शंनश्चतस्रः प्रदिशो भवन्तु’ इति ऋ०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शान्तिकामो ब्रह्मा ऋषिः। सोमो देवता। निष्टुमः। दशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Shanti
Meaning
May the sun of expansive radiance rise for our peace and joy. May all the four quarters of space be full of peace for us. May the firm and fixed mountains be full of peace for us. And may the waters of running streams and rivers and the rolling seas be full of peace.
Translation
May the sun with extensive radiance rise for our happiness: may the four quarters of the horizon be auspicious to us. May the firm-set mountains bless us for our happiness; may the rivers, may the waters be for our happiness. (Rg. V11.35.8)
Translation
May the luminous sun rise up for our weal, may the four directions be auspicious for us, may the firmly held mountains be the source of happiness to us and may the rivers and waters be pleasing to us.
Translation
May the Sun, with its far-flung, innumerable rays be peaceful to us. May all the four main quarters be pleasant for us. May the firm mountains be comfortable to us. May the speedy rivers and streams and other sources of water be agreeable to us.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
८−(शम्) सुखप्रदः (नः) अस्मभ्यम् (सूर्यः) रविः (उरुचक्षाः) चक्षेर्बहुलं शिच्च। उ० ४।२३३। उरु+चक्षिङ् दर्शने-असि। विस्तीर्णं चक्षो दर्शनं यस्मात् सः (उदेतु) उदयं गच्छतु (शम्) (नः) (भवन्तु) (प्रदिशः) प्रकृष्टाः पूर्वादयो दिशः (चतस्रः) (शम्) (नः) (पर्वताः) शैलाः (ध्रुवयः) भुजेः किच्च। उ० ४।१४२। ध्रु स्थैर्ये-इ प्रत्ययः कित्। स्थिराः (भवन्तु) (शम्) (नः) (सिन्धवः) समुद्रा नद्यो वा (शम्) (उ) (सन्तु) (आपः) जलानि प्राणा वा ॥
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