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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 10 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 10/ मन्त्र 7
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - शान्ति सूक्त
    60

    शं नः॒ सोमो॑ भवतु॒ ब्रह्म॒ शं नः॒ शं नो॒ ग्रावा॑णः॒ शमु॑ सन्तु य॒ज्ञाः। शं नः॒ स्वरू॑णां मि॒तयो॑ भवन्तु॒ शं नः॑ प्र॒स्वः शम्व॑स्तु॒ वेदिः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शम्। नः॒। सोमः॑। भ॒व॒तु॒। ब्रह्म॑। शम्। नः॒। शम्। नः॒। ग्रावा॑णः। शम्। ऊं॒ इति॑। स॒न्तु॒। य॒ज्ञाः। शम्। नः॒। स्वरू॑णाम्। मि॒तयः॑। भ॒व॒न्तु॒। शम्। नः॒। प्र॒ऽस्वः᳡। शम्। ऊं॒ इति॑। अ॒स्तु॒। वेदिः॑ ॥१०.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शं नः सोमो भवतु ब्रह्म शं नः शं नो ग्रावाणः शमु सन्तु यज्ञाः। शं नः स्वरूणां मितयो भवन्तु शं नः प्रस्वः शम्वस्तु वेदिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शम्। नः। सोमः। भवतु। ब्रह्म। शम्। नः। शम्। नः। ग्रावाणः। शम्। ऊं इति। सन्तु। यज्ञाः। शम्। नः। स्वरूणाम्। मितयः। भवन्तु। शम्। नः। प्रऽस्वः। शम्। ऊं इति। अस्तु। वेदिः ॥१०.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 10; मन्त्र » 7
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    सृष्टि के पदार्थों से उपकार लेने का उपदेश।

    पदार्थ

    (सोमः) परम ऐश्वर्यवाला परमात्मा (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक (भवतु) हो, (ब्रह्म) वेद (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक हो, (ग्रावाणः) विज्ञानी लोग (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक हों, (उ) और (यज्ञाः) यज्ञ [अग्निहोत्र से शिल्प क्रिया तक] (शम्) शान्तिदायक (सन्तु) हों। (स्वरूणाम्) यूपों [जयस्तम्भों] के (मितयः) फैलाव (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक (भवन्तु) हों, (प्रस्वः) ओषधें [अन्न सोमलता आदि] (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक हों, (उ) और (वेदिः) वेदी [यज्ञकुण्ड, चौतरा आदि] (शम्) सुखदायक (अस्तु) हो ॥७॥

    भावार्थ

    मनुष्य परम पिता परमात्मा और परम पवित्र वेदों की शरण लेकर विद्वानों के मेल से यज्ञ और शिल्पविद्या का प्रचार करके संसार को सुख पहुँचावें ॥७॥

    टिप्पणी

    ७−(शम्) शान्तिप्रदः (सोमः) परमैश्वर्यवान् जगदीश्वरः (भवतु) (ब्रह्म) वेदः (शम्) (नः) (शम्) (नः) (ग्रावाणः) अन्येभ्योऽपि दृश्यन्ते। पा० ३।२।७५। गॄ निगरणे, वा गॄ शब्दे विज्ञापने च-क्वनिप्। विज्ञानिनः (शम्) (उ) चार्थे (सन्तु) (यज्ञाः) अग्निहोत्रादयः शिल्पान्ताः (शम्) (नः) (स्वरूणाम्) शॄस्वृस्निहि०। उ० १।१०। स्वृ शब्दोपतापयोः−उ प्रत्ययः। यूपानाम्। विजयस्तम्भानाम् (मितयः) परिमाणानि। विस्ताराः (भवन्तु) (शम्) (नः) (प्रस्वः) प्र+सूयतेः-क्विप्। प्रकर्षेण सूयमाना जायमाना ओषधयः। अन्नसोमलतादयः (शम्) (उ) (अस्तु) (वेदिः) यज्ञकुण्डः। परिष्कृता चतुरस्रादिरूपा भूमिः ॥

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    विषय

    सोम-रक्षण+ज्ञान+यज्ञ

    पदार्थ

    १. (सोमः) = शरीर में सुरक्षित सोम [वीर्य] (नः शम्) = हमारे लिए शान्तिकर हो। (ब्रह्म) = ज्ञान (नः) = हमारे लिए शम् भवतु-शान्तिकर हो। सोम-रक्षण से ही तो ज्ञानाग्नि दीस होगी। (नः) = हमारे लिए (ग्रावाण:) = [विद्वांसो हि ग्रावाण: श० ३.४.३,९] विद्वान् लोग ज्ञानोपदेश के द्वारा (नः शम्) = हमें शान्ति दें। (उ) = और ज्ञान प्राप्त करके (यज्ञा:) = मसे किये जाते हुए यज्ञ (शं सन्तु) = शान्तिकर हों। २. (नः) = हमारे लिए (स्वरूणां मितयः) = यज्ञ-स्तम्भों के निर्माण (शम्) = कल्याणकर हों। (प्रस्वः नः शम्) = यज्ञभूमि में होनेवाली घास हमारे लिए शान्तिकर हो (उ) = और (वेदिः) = यज्ञवेदि (शम् अस्तु) = शान्तिकर हो।

    भावार्थ

    सोम का रक्षण करके हम ज्ञानाग्नि को दीस करें। ज्ञानियों से ज्ञान प्राप्त करके यज्ञशील हों। हम यज्ञों के लिए यज्ञवेदि को तैयार करें। इसप्रकार हमारे जीवन शान्तिमय हों।

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    भाषार्थ

    (सोमः १) जल (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक तथा सुखदायक (भवतु) हो। (ब्रह्म) ब्रह्मप्रतिपादक वेदमन्त्र (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक तथा सुखदायक हों, (ग्रावाणः) वेदविद्या के विद्वान् (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक तथा सुखदायक (भवन्तु) हों। (प्रस्वः) यज्ञिक प्रेरणाएँ (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक तथा सुखदायक हों। (स्वरूणाम्) यज्ञों के (मितयः) यथार्थज्ञान (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक तथा सुखदायक हों, (वेदिः) यज्ञभूमि, यज्ञशाला तथा यज्ञकुण्ड (उ) निश्चय से (शम्) हमें शान्तिदायक तथा सुखदायक (अस्तु) हो।

    टिप्पणी

    [स्वरूणाम्=स्वरुः=यज्ञ (a sacrifice, आप्टे)। मितयः=प्रमितयः=यथार्थ ज्ञान। ग्रावाणः=गॄ शब्दे, “गृणातेर्वा” (निरु० ९.१.६); “विद्वांसो हि ग्रावाणः” (शत० ३.९.३.४)। प्रस्वः=प्र+षू प्ररेणे।] [१. तथा "सोम ओषधीनामधिपतिः" (पारस्कर गृह्यसूत्र १.५.१०)। तथा "सोम ओषधीभिरुदक्रमात्" (अथर्व० १९.१९.५)। सोम=water(आप्टे)।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Shanti

    Meaning

    May Soma, cosmic spirit of peace and joy be for our peace and well being. May Brahma, lord supreme and the Vedic lore be for our peace and spiritual sustenance. May the yajnic scholar scientist be for our peace and well being. May our yajnas, developmental programmes, be for our peace and well-being. May the heights and expansions of our yajnic columns and flag posts be for our peaceful progress. And may our organic and organismic productive programmes and our yajna vedi be for our peace and prosperity.

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    Translation

    May be the source of our happiness: may the prayers promots our happiness: may the clouds be source of our happiness. May the sacred work and worship be source of our happiness; may the measured lengths of the pillars of ceremonial hall be conducive to our felicity; may the wellgrown herbs be for our happiness: may the altar be raised for our happiness. (Rg. VII.35.7)

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    Translation

    May the moon be auspicious for us, may the grain and other eatable things be for our happiness, may the clouds be auspicious for us, may the Yajnas and other acts including scintilla achievements be for our favorable end, may the measurement of rhe pillared of our Yajnashala be useful for us in attaining mathematical knowledge, may the herbs used in Yajnas be useful for us in removing diseases and may the altar (Vedi) of Yajna be for our intellectual and physical benefit.

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    Translation

    May the medicinal extracts be peaceful to us. May Vedic lore, food and riches be all comfortable to us. May the preachers, the high-sounding mills-and soldiers with loud war cries, all bring happiness to us. May sacrifices or industrial concerns be comfortable to us. May the various kinds of knowledge, explained by the learned preachers, be peaceful to us. May all sorts of production, from the herbs, cows, soil or females be source of happiness to us. May the sacrificial place and the earth be pleasant to us.

    Footnote

    स्वरुणां मितयो does not mean the measuring of the typing posts, as interpreted by Sayana or Griffith, but the preachings of knowledge of various kinds by the learned people.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ७−(शम्) शान्तिप्रदः (सोमः) परमैश्वर्यवान् जगदीश्वरः (भवतु) (ब्रह्म) वेदः (शम्) (नः) (शम्) (नः) (ग्रावाणः) अन्येभ्योऽपि दृश्यन्ते। पा० ३।२।७५। गॄ निगरणे, वा गॄ शब्दे विज्ञापने च-क्वनिप्। विज्ञानिनः (शम्) (उ) चार्थे (सन्तु) (यज्ञाः) अग्निहोत्रादयः शिल्पान्ताः (शम्) (नः) (स्वरूणाम्) शॄस्वृस्निहि०। उ० १।१०। स्वृ शब्दोपतापयोः−उ प्रत्ययः। यूपानाम्। विजयस्तम्भानाम् (मितयः) परिमाणानि। विस्ताराः (भवन्तु) (शम्) (नः) (प्रस्वः) प्र+सूयतेः-क्विप्। प्रकर्षेण सूयमाना जायमाना ओषधयः। अन्नसोमलतादयः (शम्) (उ) (अस्तु) (वेदिः) यज्ञकुण्डः। परिष्कृता चतुरस्रादिरूपा भूमिः ॥

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