अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 10/ मन्त्र 3
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - शान्ति सूक्त
47
शं नो॑ धा॒ता शमु॑ ध॒र्ता नो॑ अस्तु॒ शं न॑ उरू॒ची भ॑वतु स्व॒धाभिः॑। शं रोद॑सी बृह॒ती शं नो॒ अद्रिः॒ शं नो॑ दे॒वानां॑ सु॒हवा॑नि सन्तु ॥
स्वर सहित पद पाठशम्। नः॒। धा॒ता। शम्। ऊं॒ इति॑। ध॒र्ता। नः॒। अ॒स्तु॒। शम्। नः॒। उ॒रू॒ची। भ॒व॒तु॒। स्व॒धाभिः॑। शम्। रोद॑सी॒ इति॑। बृ॒ह॒ती॒ इति॑। शम्। नः॒। अद्रिः॑। शम्। नः॒। दे॒वाना॑म्। सु॒ऽहवा॑नि। स॒न्तु॒ ॥१०.३॥
स्वर रहित मन्त्र
शं नो धाता शमु धर्ता नो अस्तु शं न उरूची भवतु स्वधाभिः। शं रोदसी बृहती शं नो अद्रिः शं नो देवानां सुहवानि सन्तु ॥
स्वर रहित पद पाठशम्। नः। धाता। शम्। ऊं इति। धर्ता। नः। अस्तु। शम्। नः। उरूची। भवतु। स्वधाभिः। शम्। रोदसी इति। बृहती इति। शम्। नः। अद्रिः। शम्। नः। देवानाम्। सुऽहवानि। सन्तु ॥१०.३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
सृष्टि के पदार्थों से उपकार लेने का उपदेश।
पदार्थ
(धाता) पोषण करनेवाला [पदार्थ] (नः) हमें (शम्) शान्तिकारक हो, (उ) और (धर्ता) धारण करनेवाला [पदार्थ] (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक (अस्तु) हो, (उरूची) बहुत फैली हुई प्रकृति [जगत् सामग्री] (नः) हमें (स्वधाभिः) अपनी धारण शक्तियों से (शम्) शान्तिकारक (भवतु) हो। (बृहती) दोनों बड़े (रोदसी) सूर्य और भूमि, (शम्) शान्तिकारक हों (अद्रिः) मेघ (नः) हमें (शम्) शान्तिकारक हो, (देवानाम्) विद्वानों के (सुहवानि) सुन्दर बुलावे (नः) हमें (शम्) शान्तिकारक (सन्तु) होवें ॥३॥
भावार्थ
मनुष्यों को चाहिये कि वे धारण-पोषण करनेवाले पदार्थों के तत्त्व, प्रकृति के स्वभाव, सूर्य, पृथिवी, मेघ आदि के प्रभावों के ज्ञान से उपकारी होकर विद्वानों में प्रतिष्ठा पाकर सुखी होवें ॥३॥
टिप्पणी
३−(शम्) शान्तिकारकः (नः) अस्मभ्यम् (धाता) पोषकः पदार्थः (शम्) (उ) चार्थे (धर्ता) धारकः पदार्थः (नः) (अस्तु) (शम्) (नः) (उरूची) बह्वञ्चना। विस्तीर्णव्यापिका प्रकृतिः (भवतु) (स्वधाभिः) आत्मधारणशक्तिभिः (शम्) (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (बृहती) बृहत्यौ। विशाले (शम्) (नः) (अद्रिः) मेघः (शम्) (नः) (देवानाम्) विदुषाम् (सुहवानि) सत्कारेणाह्वानानि (सन्तु) ॥
विषय
धाता-धर्ता
पदार्थ
१. (न:) = हमारे लिए (धाता) = सब लोक-लोकान्तरों का धारण करनेवाला प्रभु (शम्) = शान्ति दे (उ) = और (धर्ता) = सब प्राणियों का धारण करनेवाला [आश्रयदाता] प्रभु (शं अस्तु) = शान्ति देनेवाला हो।(न:) = हमारे लिए यह (उरूची) = [उरु अब्बति] सुदुर प्रदेश तक फैली हुई पृथिवी (स्वधाभिः) = अन्नों के द्वारा (शम्) = शान्ति करनेवाली (भवतु) = हो। २. (बृहती) = विशाल (रोदसी) = द्यावापृथिवी (शम्) = शान्तिकर हों। (न:) = हमारे लिए (अद्रिः) = पर्वत व मेघ (शम्) = शान्ति दें। (न:) = हमारे लिए (देवानाम्) = दिव्यवृत्तिवाले ज्ञानी पुरुषों के (सुहवानि) = उत्तम आह्वान (शं सन्तु) = शान्तिकर हों। हम घरों में समय-समय पर ज्ञानी विद्वानों को आमन्त्रित करें और उनसे ज्ञानोपदेश सुनकर उत्तम मार्ग पर चलनेवाले बनें।
भावार्थ
ब्रह्माण्ड व सब प्राणियों का धारण करनेवाले प्रभु हमें शान्ति प्राप्त कराएँ। यह पृथिवी उत्तम अन्नों को देकर हमें सुखी व शान्त करे। द्युलोक व पृथिवीलोक हमें शान्ति देनेवाले हों, पर्वत व मेघ हमारे लिए सुखकर हों। हम सदा ज्ञानियों के सम्पर्क में ज्ञानोपदेश प्राप्त करके जीवन में उत्तम मार्ग पर चलते हुए शान्त जीवनवाले हों।
भाषार्थ
(धाता) सबका धारण-पोषण करनेवाला परमेश्वर (नः) हमें (शम्) शान्ति और सुख प्रदान करें, (धर्ता) सब लोकलोकान्तरों को अपने-अपने स्थानों में स्थापित करनेवाला परमेश्वर (उ) निश्चय से (नः) हमें (शम् अस्तु) शान्ति और सुख प्रदान करनेवाला हो। (उरूची) सबको आच्छादन करनेवाली सर्वपूज्या परमेश्वरीय जगन्माता (स्वधाभिः) अन्नों द्वारा (नः) हमें (शम्) शान्ति और सुख प्रदान करनेवाली (भवतु) हो। (बृहती) महती (रोदसी) परमेश्वरीय रुद्र-शक्ति (शम्) शान्ति और सुख प्रदान करे, (अद्रिः) आदरणीय महाविद्वान् (नः) हमें (शम्) शान्ति और सुख प्रदान करे, (देवानाम्) दिव्य विद्वानों के (सुहवानि) समादरपूर्वक आह्वान अर्थात् उन्हें दिये गये समादरपूर्वक निमन्त्रण (नः) हमें (शम्) शान्ति और सुख देनेवाले (सन्तु) हों।
टिप्पणी
[धाता=डुधाञ् धारणपोषणयोः। धर्ता=धृङ् अवस्थाने। उरूचीः ऊर्णूञ् आच्छादने+अञ्चु पूजने। स्वधा=अन्न (निघं० २.७) रोदसी=रुद्रस्य पत्नी=शक्तिः (निरु० १२.४.४६)। अद्रिः=आदरणीयः (निघं० ९.१.१)। शम्=सुखनाम (निघं० ३.६)।]
विषय
सुख शान्ति का वर्णन।
भावार्थ
(धाता) पालन पोषण करनेवाला परमेश्वर, या दुग्ध आदि से पुष्ट करने वाला पिता (नः शम्) हमें शान्ति सुखदायक हो। (धर्त्ता नः शम्) आश्रय प्रदाता, परमेश्वर या संरक्षक हमें शान्तिदायक (अस्तु) हो। (ऊरूची) बहुत दूर दूर तक फैली हुई पृथिवी, (स्वधाभिः) अन्नों द्वारा (नः शम् भवतु) हमें सुखप्रद हो। (बृहती) विशाल (रोदसी) द्यौ, पृथिवी और अन्तरिक्ष (शम्) हमें सुख दें। (अद्रिः) पर्वत और मेघ (नः शम्) हमें सुख दे। (देवानाम्) देवों, विद्वानों की (सुहवानि) उत्तम स्तुतियें, उनके उत्तम ज्ञान और उत्तम उपदेश (नः शम् सन्तु) हमें सुखद और कल्याणकारक हों।
टिप्पणी
(द्वि०) ‘उरुची’ ‘ऊरुची’ ‘ऊरुची’ इति पाठाः।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शान्तिकामो ब्रह्मा ऋषिः। सोमो देवता। निष्टुमः। दशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Shanti
Meaning
May Dhata, cosmic sustainer, bring us peace. May Dharta, sustainer of stars and planets, bring us peace. May the vast mother earth and nature with all her powers and forces bring us peace. May the cloud and the mountain bring us peace. And may our invocations, oblations in yajna and the divine responses bring us peace and well-being.
Translation
May the people of creativity be for happiness; may the people in charge of sustenance be for our happiness; may the wide earth, with its provisions be for our happiness; may the vast heaven and earth be for happiness: may the mountains be for happiness; may our pious invocations of Nature’s bounties secure happiness for us. (Rg.VII.35.3)
Translation
May the things sustaining us be auspicious for us, may the thing supporting us be auspicious for us, may the earth be auspicious for us with grains and other products, may the vast earth and heaven be auspicious for us, may the cloud be for our happiness and may the sermons of learned persons, be for our prosperity.
Translation
May the Creator and nourishing father be pleasant to us. May the sustainer and the guardian be peaceful to us. May the vast earth or nature with rich means of subsistence bring happiness to us. May the extensive heavens and. mid-regions shower peace on us. May the mountains and clouds be pleasant to us. May the preachings of the learned be tranquillising to us.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३−(शम्) शान्तिकारकः (नः) अस्मभ्यम् (धाता) पोषकः पदार्थः (शम्) (उ) चार्थे (धर्ता) धारकः पदार्थः (नः) (अस्तु) (शम्) (नः) (उरूची) बह्वञ्चना। विस्तीर्णव्यापिका प्रकृतिः (भवतु) (स्वधाभिः) आत्मधारणशक्तिभिः (शम्) (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (बृहती) बृहत्यौ। विशाले (शम्) (नः) (अद्रिः) मेघः (शम्) (नः) (देवानाम्) विदुषाम् (सुहवानि) सत्कारेणाह्वानानि (सन्तु) ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal