अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 10/ मन्त्र 4
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - शान्ति सूक्त
51
शं नो॑ अ॒ग्निर्ज्योति॑रनीको अस्तु॒ शं नो॑ मि॒त्रावरु॑णाव॒श्विना॒ शम्। शं नः॑ सु॒कृतां॑ सुकृ॒तानि॑ सन्तु॒ शं न॑ इषि॒रो अ॒भि वा॑तु॒ वातः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठशम्। नः॒। अ॒ग्निः। ज्योतिः॑ऽअनीकः। अ॒स्तु॒। शम्। नः॒। मि॒त्रावरु॑णौ। अ॒श्विना॑। शम्। शम्। नः॒। सु॒ऽकृता॑म्। सु॒ऽकृ॒तानि॑। स॒न्तु॒ । शम्। नः॒। इ॒षि॒रः। अ॒भि। वा॒तु॒। वातः॑ ॥१०.४॥
स्वर रहित मन्त्र
शं नो अग्निर्ज्योतिरनीको अस्तु शं नो मित्रावरुणावश्विना शम्। शं नः सुकृतां सुकृतानि सन्तु शं न इषिरो अभि वातु वातः ॥
स्वर रहित पद पाठशम्। नः। अग्निः। ज्योतिःऽअनीकः। अस्तु। शम्। नः। मित्रावरुणौ। अश्विना। शम्। शम्। नः। सुऽकृताम्। सुऽकृतानि। सन्तु । शम्। नः। इषिरः। अभि। वातु। वातः ॥१०.४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
सृष्टि के पदार्थों से उपकार लेने का उपदेश।
पदार्थ
(ज्योतिरनीकः) ज्योति को सेना समान रखनेवाला (अग्निः) अग्नि (नः) हमें (शम्) शान्तिकारक (अस्तु) हो, (मित्रावरुणौ) दोनों दिन और राति (नः) हमें (शम्) शान्तिकारक हों (अश्विना) दोनों सूर्य और चन्द्रमा (शम्) शान्तिकारक हों। (सुकृताम्) सुकर्मियों के (सुकृतानि) पुण्य कर्म (नः) हमें (शम्) शान्तिकारक (सन्तु) हों, (इषिरः) शीघ्रगामी (वातः) पवन (नः) हमारे लिये (शम्) शान्तिकारक (अभि) सब ओर से (वातु) चले ॥४॥
भावार्थ
जो मनुष्य अग्नि, दिन, राति, सूर्य, चन्द्रमा और वायु आदि की गति से विद्वानों के समान उपकार लेते हैं, वे सुखी रहते हैं ॥४॥
टिप्पणी
४−(शम्) शान्तिप्रदः (नः) (अग्निः) पावकः (ज्योतिरनीकः) ज्योतिरेवानीकं सैन्यमिव यस्य सः (अस्तु) (शम्) (नः) (मित्रावरुणौ) अहोरात्रे (अश्विना) सूर्याचन्द्रमसौ (शम्) (शम्) (नः) (सुकृताम्) पुण्यकर्मणाम् (सुकृतानि) पुण्यकर्माणि (सन्तु) (शम्) (नः) अस्मभ्यम् (इषिरः) वेगवान् (अभि) सर्वतः (वातु) गच्छतु (वातः) वायुः ॥
विषय
'ज्योतिरनीक' अग्नि
पदार्थ
१. (ज्योतिरनीक:) = [अनीकम् face] ज्योतिर्मय मुखबाला-जिसके मुख से ज्ञान की ही वाणियों का उच्चारण होता है-यह ब्राह्मण (नः शं अस्तु) = हमारे लिए शान्ति करनेवाला हो। (मित्रावरुणौ) = स्नेह व द्वेष-निवारण [निषता] की भावनाएँ (नः शम्) = हमारे लिए शान्तिकर हों। (अश्विना) = प्राणापान शक्ति (शम्) = हमें शान्ति दे। २. (सुकृताम्) = पुण्यशालियों के (सुकृतानि) = पुण्यकर्म (न:) = हमारे लिए (शम्) = शान्तिकर (सन्तु) = हों और यह (इषिरः) = गतिशील (वातः) = वायु (न:) = हमारे लिए भी गति की प्रेरणा देता हुआ (शम् अभिवातु) = शान्तिकर होकर चारों ओर बहे।
भावार्थ
ज्ञानी ब्राह्मण ज्ञान देते हुए हमें शान्ति प्रास कराएँ। स्नेह व निद्रेषता का भाव तथा प्राणापानशक्ति हमें शान्ति दे। पुण्यकर्मा लोगों के पुण्यकर्म हमें शान्ति प्रास कराएँ और यह निरन्तर गतिशील वायु गति की प्रेरणा देता हुआ हमें शान्ति प्राप्त कराए।
भाषार्थ
(ज्योतिः अनीकः) ज्योतिःस्वरूप और प्राणदाता (अग्निः) अग्नि (नः) हमें (शम्) शान्ति और सुख देनेवाला (अस्तु) हो। (मित्रावरुणौ) दिन-रात (नः) हमें (शम्) शान्ति और सुख देनेवाले हों। (अश्विना) सूर्य और चन्द्रमा (शम्) शान्ति और सुख देनेवाले हों। (सुकृताम्) सुकर्मियों के (सुकृतानि) सुकर्म (नः) हमें (शम्) शान्ति और सुख देनेवाले (सन्तु) हों। (इषिरः) सदा गतिशील (वातः) वायु (नः) हमारे लिए (शम्) शान्ति और सुख देती हुई (अभि वातु) हमारी ओर बहे।
टिप्पणी
[अनीकः= “अनिति जीवयतीति अनीकम्” (उणा० ४.१८) महर्षि दयानन्द। अनीक शब्द उभयलिङ्गी है—पुम् और नपुंसक। मित्रावरुणौ=“अहोरात्रौ मित्रावरुणौ” (तां० २५.१०.१०)। अश्विना= सूर्याचन्द्रमसौ (निरु० १२.१.१)। इषिरः=इष् गतौ। ज्योतिरनीकः=अथवा जिसके आगे-आगे ज्योति होती है ऐसी अग्नि। जब अग्नि जलती है तो उसकी अग्निशिखा से बहुत दूर तक उसकी ज्योति फैली हुई होती है। अनीक=सामने; Front (आप्टे)।]
विषय
सुख शान्ति का वर्णन।
भावार्थ
(ज्योतिः अनीकः) ज्योति, ज्वाला, दीप्ति के बने मुख वाला अर्थात् अपनी ज्वाला से सब पदार्थों को खाजाने या भस्म कर देने वाला (अग्निः) अग्नि और उसके समान ज्ञान ज्योति को अपने मुख में धारण करने वाला, अग्नि के समान ज्ञानप्रकाशक ब्राह्मण, ज्योति को अपने मुख में या अग्रभाग में रखने वाला मार्गदर्शक, ज्योतिर्मय दीपक को अपने मुख भाग या अग्रभाग में रखने वाला सूर्य या अग्नि के बलपर चलने वाला महायन्त्र या, ज्योतिर्मय तेज स्त्री पुरुषों के अनीक सेना बल से युक्त अग्नि—अग्रणी, सेनापति (नः) हमारे लिये (शम् अस्तु) कल्याण कारक हो। (मित्रावरुणा) मित्र और वरुण, परस्पर स्नेह करने वाली धन और ऋण विद्युतें और वरुण अर्थात् समान जाति को परे वारण कर देने वाली धन और ऋण दोनों (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक हों। (अश्विनौ) दो अश्वि, सूर्य रूप अश्वपर सदा आरूढ़ दिन और रात, एवं देह रूप रथ और एवं इन्द्रियरूप अश्वोंपर आरूढ़ प्राण और अपान, देह में व्यापक, अथवा स्त्री पुरुष (शम्) शान्तिदायक हों। (सुकृताम्) उत्तम सुन्दर कार्य करने वाले उत्तम शिल्पियों के (सुकृतानि) बनाये उत्तम प्रशंसनीय शिल्प के कार्य और पुण्यात्माओं के किये हुए उत्तम प्रशंसनीय परोपकार के कार्य (नः) हमें (शम्) शान्तिदायक (सन्तु) हों। (इषिरः) निरन्तर गतिशील, सब पदार्थों का प्रेरक, (वातः) महान् वायु और देहों का प्रेरक प्राण वायु (नः) हमारे लिये (शम्) कल्याणकारी, सुखकारी होकर (चातु) प्रवाहित हो।
टिप्पणी
(द्वि०) ‘णा अश्विना’ इति पैप्प० सं०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शान्तिकामो ब्रह्मा ऋषिः। सोमो देवता। निष्टुमः। दशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Shanti
Meaning
May Agni with noble fires and flames be harbinger of peace and well-being for us. May Mitra, Varuna, and the Ashvins, day and night, and the sun and moon, bring us peace. May the noble actions of the noble doers bring us peace and well being. And may the blowing winds bring us peace and well being.
Translation
May the fire, with the splendour of countenance, be for our happiness, may the cosmic light and plasma, and the pair of twins-divine be for our happiness. May the noble actions of the pious be for our happiness: may the impetuous wind blow for our happiness. (Rg. VII.35.4)
Translation
May the fire which is effulgent and powerful consuming agent be auspicious for us, may the hydrogen and oxygen gases be benevolent us, may night and day be for our happiness, may the good acts performed by righteous and conscientious persons be to serve our benefit and may the bowing wind be auspicious for us.
Translation
May the flame faced fire, the learned person who is torch-bearer of knowledge the king or chief of the fiery army, the Sun, with the shining beams as its army, and the Effulgent God, with the huge shining spheres to show His might, be all peaceful to us. May the positive and negative electricities be comfortable to us. May good deeds of the righteous or fine works of art of the good artists be pleasant to us. May the perpetually moving wind be propitious to us.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४−(शम्) शान्तिप्रदः (नः) (अग्निः) पावकः (ज्योतिरनीकः) ज्योतिरेवानीकं सैन्यमिव यस्य सः (अस्तु) (शम्) (नः) (मित्रावरुणौ) अहोरात्रे (अश्विना) सूर्याचन्द्रमसौ (शम्) (शम्) (नः) (सुकृताम्) पुण्यकर्मणाम् (सुकृतानि) पुण्यकर्माणि (सन्तु) (शम्) (नः) अस्मभ्यम् (इषिरः) वेगवान् (अभि) सर्वतः (वातु) गच्छतु (वातः) वायुः ॥
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