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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 15

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 15/ मन्त्र 3
    सूक्त - अथर्वा देवता - इन्द्रः छन्दः - विराट्पथ्यापङ्क्तिः सूक्तम् - अभय सूक्त

    इन्द्र॑स्त्रा॒तोत वृ॑त्र॒हा प॑र॒स्फानो॒ वरे॑ण्यः। स र॑क्षि॒ता च॑रम॒तः स म॑ध्य॒तः स प॒श्चात्स पु॒रस्ता॑न्नो अस्तु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्रः॑। त्रा॒ता। उ॒त। वृ॒त्र॒ऽहा। प॒र॒स्फानः॑। वरे॑ण्यः। सः। र॒क्षि॒ता। च॒र॒म॒तः। सः। म॒ध्य॒तः। सः। प॒श्चात्। सः। पु॒रस्ता॑त्। नः॒। अ॒स्तु॒ ॥१५.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रस्त्रातोत वृत्रहा परस्फानो वरेण्यः। स रक्षिता चरमतः स मध्यतः स पश्चात्स पुरस्तान्नो अस्तु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रः। त्राता। उत। वृत्रऽहा। परस्फानः। वरेण्यः। सः। रक्षिता। चरमतः। सः। मध्यतः। सः। पश्चात्। सः। पुरस्तात्। नः। अस्तु ॥१५.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 15; मन्त्र » 3

    Translation -
    May Indra, the Almighty God, who is the destroyer of all calamities; the protector of all from troubles and is the preserver and supreme one, be our protector from the end, from the center, from behind and from the front.

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