अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 2/ मन्त्र 41
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - रोहितः, आदित्यः, अध्यात्मम्
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
सर्वा॒ दिशः॒ सम॑चर॒द्रोहि॒तोऽधि॑पतिर्दि॒वः। दिवं॑ समु॒द्रमाद्भूमिं॒ सर्वं॑ भू॒तं वि र॑क्षति ॥
स्वर सहित पद पाठसर्वा॑:। दिश॑: । सम् । अ॒च॒र॒त् । रोहि॑त: । अधि॑ऽपति: । दि॒व: । दिव॑म् । स॒मु॒द्रम् । आत् । भूमि॑म् । सर्व॑म् । भू॒तम् । वि । र॒क्ष॒ति॒ ॥२.४१॥
स्वर रहित मन्त्र
सर्वा दिशः समचरद्रोहितोऽधिपतिर्दिवः। दिवं समुद्रमाद्भूमिं सर्वं भूतं वि रक्षति ॥
स्वर रहित पद पाठसर्वा:। दिश: । सम् । अचरत् । रोहित: । अधिऽपति: । दिव: । दिवम् । समुद्रम् । आत् । भूमिम् । सर्वम् । भूतम् । वि । रक्षति ॥२.४१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 2; मन्त्र » 41
भाषार्थ -
(दिवः अधिपतिः रोहितः) द्युलोक का अधिपति अर्थात् स्वामी रोहित (सर्वाः दिशः) सब दिशाओं में (समचरत्) संचार करता है [रश्मियों द्वारा मन्त्र ४०]। (दिवम्) द्युलोक, (समुद्रम्) समुद्र, (आत्) और (भूमिम्) भूमि (सर्वम् भूतम्) तथा सब प्राणियों की (वि रक्षति) रक्षा करता है।
टिप्पणी -
[सूर्य तो निज रश्मियों द्वारा दिशाओं में विचरता है, वह भी सीमितरूप में; परन्तु परमेश्वर सब दिशाओं में असीमितरूप में, और दिशाओं को अतिक्रान्त कर के भी विचरता है। दिवः, दिवम् = सूर्य द्युलोक का एक नक्षत्र मात्र है। द्युलोक का वास्तविक अधिपति तथा रक्षक परमेश्वर है]।