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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 40

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 40/ मन्त्र 3
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - बृहस्पतिः, विश्वे देवाः छन्दः - बृहत्यनुष्टुप् सूक्तम् - मेधा सूक्त

    मा नो॑ मे॒धां मा नो॑ दी॒क्षां मा नो॑ हिंसिष्टं॒ यत्तपः॑। शि॒वा नः॒ शं स॒न्त्वायु॑षे शि॒वा भ॑वन्तु मा॒तरः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मा। नः॒। मे॒धाम्। मा। नः॒। दी॒क्षाम्। मा। नः॒। हिं॒सि॒ष्ट॒म्। यत्। तपः॑। शि॒वाः। नः॒। शम्। स॒न्तु॒। आयु॑षे। शि॒वाः। भ॒व॒न्तु॒। मा॒तरः॑ ॥४०.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मा नो मेधां मा नो दीक्षां मा नो हिंसिष्टं यत्तपः। शिवा नः शं सन्त्वायुषे शिवा भवन्तु मातरः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मा। नः। मेधाम्। मा। नः। दीक्षाम्। मा। नः। हिंसिष्टम्। यत्। तपः। शिवाः। नः। शम्। सन्तु। आयुषे। शिवाः। भवन्तु। मातरः ॥४०.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 40; मन्त्र » 3

    भाषार्थ -
    हे माता-पिता! आप दोनों (मा)(नः) हमारी (मेधाम्) बुद्धि को, (मा)(नः) हमारे (दीक्षाम्) व्रत-नियमों को, (यत्) जो (नः) हमारा (तपः) तप है (मा) न उसको (हिंसिष्टम्) हिंसित होने दीजिये। पितृवर्गः (नः) हमारे लिये (शिवाः) कल्याणकारी और (शम्) सुखशान्तिकर (सन्तु) हों, और (मातरः) माताएँ (शिवाः) कल्याणकारिणी (भवन्तु) हों, (आयुषे) ताकि हमारा जीवन कल्याणमय और सुख-शान्ति-सम्पन्न हो सके।

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