अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 49/ मन्त्र 9
सूक्त - गोपथः, भरद्वाजः
देवता - रात्रिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - रात्रि सूक्त
यो अ॒द्य स्ते॒न आय॑त्यघा॒युर्मर्त्यो॑ रि॒पुः। रात्री॒ तस्य॑ प्र॒तीत्य॒ प्र ग्री॒वाः प्र शिरो॑ हनत् ॥
स्वर सहित पद पाठयः। अ॒द्य। स्ते॒नः। आ॒ऽअय॑ति। अ॒घ॒ऽयुः। मर्त्यः॑। रि॒पुः। रात्री॑। तस्य॑। प्र॒ति॒ऽइत्य॑। प्र। ग्री॒वाः। प्र। शिरः॑। ह॒न॒त् ॥४९.९॥
स्वर रहित मन्त्र
यो अद्य स्तेन आयत्यघायुर्मर्त्यो रिपुः। रात्री तस्य प्रतीत्य प्र ग्रीवाः प्र शिरो हनत् ॥
स्वर रहित पद पाठयः। अद्य। स्तेनः। आऽअयति। अघऽयुः। मर्त्यः। रिपुः। रात्री। तस्य। प्रतिऽइत्य। प्र। ग्रीवाः। प्र। शिरः। हनत् ॥४९.९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 49; मन्त्र » 9
भाषार्थ -
(अघायुः) हत्या चाहने वाला, (यः) जो (रिपुः मर्त्यः) शत्रु मनुष्य, (स्तेनः) चोर बन कर, (अद्य) आज (आयति) आता है, (रात्री) रात्री (प्रतीत्य) उसे पूरी तरह से जान-पहिचान कर (तस्य) उसकी (ग्रीवाः) गर्दन-नाड़ियों को (प्र हनत्) तोड़ दे, (शिरः) और सिर को (प्रहनत्) तोड़ दे।
टिप्पणी -
[पहिले ठीक प्रकार से जांच कर लेनी चाहिए कि अमुक आगत व्यक्ति वस्तुतः हमारी हत्या की इच्छा से चोर बन कर आया है। तदनन्तर उसके सिर तक को उतार देना भी वेदानुमोदित है। वेद कठोर दण्ड की आज्ञा देता है, ताकि पापकर्मों की पुनरावृत्ति न होती रहे।]