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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 52

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 52/ मन्त्र 4
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - कामः छन्दः - उपरिष्टाद्बृहती सूक्तम् - काम सूक्त

    कामे॑न मा॒ काम॒ आग॒न्हृद॑या॒द्धृद॑यं॒ परि॑। यद॒मीषा॑म॒दो मन॒स्तदैतूप॑ मामि॒ह ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कामे॑न। मा॒। कामः॑। आ। अ॒ग॒न्। हृद॑यात्। हृद॑यम्। परि॑। यत्। अ॒मीषा॑म्। अ॒दः। मनः॑। तत्। आ। ए॒तु॒। उप॑। माम्। इ॒ह ॥५२.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कामेन मा काम आगन्हृदयाद्धृदयं परि। यदमीषामदो मनस्तदैतूप मामिह ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कामेन। मा। कामः। आ। अगन्। हृदयात्। हृदयम्। परि। यत्। अमीषाम्। अदः। मनः। तत्। आ। एतु। उप। माम्। इह ॥५२.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 52; मन्त्र » 4

    भाषार्थ -
    (कामेन) मेरी सात्विक कामना द्वारा (मा) मुझे (कामः) काम्य अमृतत्व (आ अगन्) प्राप्त हो गया है। अर्थात् (हृदयात् परि) मेरी हार्दिक अभिलाषा से (हृदयम्) अभिलषित हार्दिक फल प्राप्त हो गया है। (अमीषाम्) अमृतत्व को प्राप्त इन योगिजनों का (यद्) जो (अदः) वह (मनः) सात्त्विक मन है, (तत्) वैसा मन (इह) इस जीवन में (माम्) मुझे (उप ऐतु) प्राप्त रहे।

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