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अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 69/ मन्त्र 2
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - आपः
छन्दः - साम्न्येकावसानानुष्टुप्
सूक्तम् - आपः सूक्त
उ॑पजी॒वा स्थोप॑ जीव्यासं॒ सर्व॒मायु॑र्जीव्यासम् ॥
स्वर सहित पद पाठउ॒प॒ऽजी॒वाः। स्थ॒। उप॑। जी॒व्या॒सम्। सर्व॑म्। आयुः॑। जी॒व्या॒स॒म् ॥६९.२॥
स्वर रहित मन्त्र
उपजीवा स्थोप जीव्यासं सर्वमायुर्जीव्यासम् ॥
स्वर रहित पद पाठउपऽजीवाः। स्थ। उप। जीव्यासम्। सर्वम्। आयुः। जीव्यासम् ॥६९.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 69; मन्त्र » 2
भाषार्थ -
आप (उपजीवाः) उपजीव्य अर्थात् जीवनों के आश्रय (स्थ) हैं। (उप जीव्यासम्) मैं भी अन्यों के लिए उपजीव्य अर्थात् जीवन का आश्रय बनकर जीऊँ। (सर्वम् आयुः) सम्पूर्ण आयु (जीव्यासम्) ऐसे जीऊँ। [उपजीवाः=उपजीव्याः (सायणाचार्य)।]