अथर्ववेद - काण्ड 2/ सूक्त 17/ मन्त्र 6
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - प्राणः, अपानः, आयुः
छन्दः - एदपदासुरीत्रिष्टुप्
सूक्तम् - बल प्राप्ति सूक्त
चक्षु॑रसि॒ चक्षु॑र्मे दाः॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठचक्षु॑: । अ॒सि॒ । चक्षु॑: । मे॒ । दा॒: । स्वाहा॑ ॥१७.६॥
स्वर रहित मन्त्र
चक्षुरसि चक्षुर्मे दाः स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठचक्षु: । असि । चक्षु: । मे । दा: । स्वाहा ॥१७.६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 17; मन्त्र » 6
भाषार्थ -
(चक्षुःअसि) तू चक्षुरूप है, (मे चक्षुः दाः) मुझे दृष्टि शक्ति प्रदान कर, (स्वाहा) सु आह।
टिप्पणी -
[परमेश्वर के लिए कहा है "पश्यत्यचक्षुः'१ स शृणोत्यकर्ण:"।] [१. परमेश्वर बिना चक्षु के देखता है, यत: वह स्वयं चक्षु रूप है।]