Sidebar
अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 1/ मन्त्र 2
मरु॑तो॒ यस्य॒ हि क्षये॑ पा॒था दि॒वो वि॑महसः। स सु॑गो॒पात॑मो॒ जनः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठमरु॑त: । यस्य॑ । हि । क्षय॑ । पा॒थ । दि॒व: । वि॒ऽम॒ह॒स॒: । स: । सु॒ऽगो॒पात॑म: । जन॑: ॥१.२॥
स्वर रहित मन्त्र
मरुतो यस्य हि क्षये पाथा दिवो विमहसः। स सुगोपातमो जनः ॥
स्वर रहित पद पाठमरुत: । यस्य । हि । क्षय । पाथ । दिव: । विऽमहस: । स: । सुऽगोपातम: । जन: ॥१.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
भाषार्थ -
(मरुतः) हे मरणधर्मा उपासको! (यस्य) जिस (दिवः) द्युतिमान् और (विमहसः) तेजस्वी परमेश्वर के (हि) ही (क्षये) निवासगृह में रहकर तुम (पाथ) अपनी तथा अपने भक्तिरस की रक्षा कर रहे हो, जान कि (सः) वह (जनः) जनक परमेश्वर ही (सुगोपातमः) सर्वोत्तम प्रकार से सबकी रक्षा कर रहा है। [मरुतः=ऋत्विङ् नाम (निघं० ३.१८)।]