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अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 1/ मन्त्र 3
उ॒क्षान्ना॑य व॒शान्ना॑य॒ सोम॑पृष्ठाय वे॒धसे॑। स्तोमै॑र्विधेमा॒ग्नये॑ ॥
स्वर सहित पद पाठउ॒क्षऽअ॑न्नाय । व॒शाऽअ॑न्नाय । सोम॑ऽपृष्ठाय । वे॒धसे॑ । स्तोमै॑: । वि॒धे॒म॒ । अ॒ग्नये॑ ॥१.३॥
स्वर रहित मन्त्र
उक्षान्नाय वशान्नाय सोमपृष्ठाय वेधसे। स्तोमैर्विधेमाग्नये ॥
स्वर रहित पद पाठउक्षऽअन्नाय । वशाऽअन्नाय । सोमऽपृष्ठाय । वेधसे । स्तोमै: । विधेम । अग्नये ॥१.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
भाषार्थ -
(उक्षान्नाय) बैलों द्वारा उत्पन्न कृष्यन्न आहुतिरूप में जिसके प्रति दिया जाता है, (वशान्नाय) गौओं से उत्पन्न दुग्धान्न जिसके प्रति आहुति रूप में दिया जाता है, (सोमपृष्ठाय) तथा जो उत्पन्न जगत् की पृष्ठभूमि है, उसी (वेधसे) जगद्-विधाता (अग्नये) जगदग्रणी के लिए, (स्तोमैः) सामगानों की स्तुतियों द्वारा, (विधेम) हम अपनी परिचर्याएँ भेंट करते हैं।
टिप्पणी -
[प्राकृतिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार की आहुतियाँ परमेश्वराग्नि के प्रति ही भेंट की जाती हैं। विधेम=परिचरणकर्मा (निघं० ३.५)]