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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 121

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 121/ मन्त्र 1
    सूक्त - देवातिथिः देवता - इन्द्रः छन्दः - प्रगाथः सूक्तम् - सूक्त-१२१

    अ॒भि त्वा॑ शूर नोनु॒मोऽदु॑ग्धा इव धे॒नवः॑। ईशा॑नम॒स्य जग॑तः स्व॒र्दृश॒मीशा॑नमिन्द्र त॒स्थुषः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒भि । त्वा॒ । शू॒र॒ । नो॒नु॒म॒: । अदु॑ग्धा:ऽइव । धे॒नव॑: ॥ ईशा॑नम् । अ॒स्य । जग॑त: । स्व॒:ऽदृश॑म् । ईशा॑नम् । इ॒न्द्र॒ । त॒स्थुष॑: ॥१२१.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अभि त्वा शूर नोनुमोऽदुग्धा इव धेनवः। ईशानमस्य जगतः स्वर्दृशमीशानमिन्द्र तस्थुषः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अभि । त्वा । शूर । नोनुम: । अदुग्धा:ऽइव । धेनव: ॥ ईशानम् । अस्य । जगत: । स्व:ऽदृशम् । ईशानम् । इन्द्र । तस्थुष: ॥१२१.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 121; मन्त्र » 1

    भाषार्थ -
    (शूर) हे पराक्रमशील परमेश्वर! हम (त्वा अभि) आपके प्रति (नोनुमः) वार-वार स्तुतिवचन उच्चारित करते हैं, (इव) जैसे कि (अदुग्धाः) न दुही गई (धेनवः) गौएँ अपने बछड़ों के प्रति हम्भारव करती हैं। हे परमेश्वर! आप (अस्य) इस (जगतः) जङ्गम अर्थात् प्राणी-जगत् के (ईशानम्) अधीश्वर हैं, (स्वर्दृशम्) आप आदित्य-सदृश ज्योतिर्मय है। (इन्द्र) हे परमेश्वर! (तस्थुषः) स्थावर जगत् के भी आप (ईशानम्) अधीश्वर हैं।

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