अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 24/ मन्त्र 4
इन्द्रं॒ सोम॑स्य पी॒तये॒ स्तोमै॑रि॒ह ह॑वामहे। उ॒क्थेभिः॑ कु॒विदा॒गम॑त् ॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्र॑म् । सोम॑स्य । पी॒तये॑ । स्तोमै॑: । इ॒ह॒ । ह॒वा॒म॒है॒ ॥ उ॒क्थेभि॑: । कु॒वित् । आ॒ऽगम॑त् ॥२४.४॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्रं सोमस्य पीतये स्तोमैरिह हवामहे। उक्थेभिः कुविदागमत् ॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्रम् । सोमस्य । पीतये । स्तोमै: । इह । हवामहै ॥ उक्थेभि: । कुवित् । आऽगमत् ॥२४.४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 24; मन्त्र » 4
भाषार्थ -
(सोमस्य) भक्तिरस के (पीतये) स्वीकार करने के लिए (स्तोमैः) सामगानों द्वारा, तथा (उक्थेभिः) वैदिक सूक्तों की स्तुतियों द्वारा (इह) इस हृदय में (इन्द्रं हवामहे) हम परमेश्वर का आह्वान करते हैं। इस विधि से परमेश्वर (कुविद्) बार-बार (आगमत्) हमें दर्शन देता है।