अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 39/ मन्त्र 3
सूक्त - गोषूक्तिः, अश्वसूक्तिः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
सूक्तम् - सूक्त-३९
उद्गा आ॑ज॒दङ्गि॑रोभ्य आ॒विष्कृ॒ण्वन्गुहा॑ स॒तीः। अ॒र्वाञ्चं॑ नुनुदे व॒लम् ॥
स्वर सहित पद पाठस्वर रहित मन्त्र
उद्गा आजदङ्गिरोभ्य आविष्कृण्वन्गुहा सतीः। अर्वाञ्चं नुनुदे वलम् ॥
स्वर रहित पद पाठ अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 39; मन्त्र » 3
भाषार्थ -
(अङ्गिरोभ्यः) प्राणायामाभ्यासियों के लिए परमेश्वर ने (गाः) ज्ञान की किरणों को (उद् आजत्) उद्बुद्ध किया है, अर्थात् (गुहा सतीः) हृदय की गुफा में छिपी ज्ञान की किरणों को (आविष्कृण्वन्) परमेश्वर ने प्रकट कर दिया है, (वलम्) और ज्ञानकिरणों पर पड़े आवरण को, रजस् और तमस् को, मानो (अर्वाञ्चम् नुनुदे) उसने नीचे पटक दिया है।
टिप्पणी -
[प्राणयाम के परिपक्क हो जाने पर, ज्ञानप्रकाश पर पड़ा आवरण, क्षीण हो जाता है। “ततः क्षीयते प्रकाशावरणभ्” (योगदर्शन २.५२)।]