अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 56/ मन्त्र 3
यदु॒दीर॑त आ॒जयो॑ धृ॒ष्णवे॑ धीयते॒ धना॑। यु॒क्ष्वा म॑द॒च्युता॒ हरी॒ कं हनः॒ कं वसौ॑ दधो॒ऽस्माँ इ॑न्द्र॒ वसौ॑ दधः ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । उ॒त्ऽईर॑ते । आ॒जय॑: । धृ॒ष्णवे॑ । धी॒य॒ते॒ । धना॑ ॥ यु॒क्ष्व । म॒द॒ऽच्युता॑ । हरी॒ इति॑ । कम् । हन॑: । कम् । वसौ॑ । द॒ध॒: । अ॒स्मान् । इ॒न्द्र॒ । वसौ॑ । द॒ध॒: ॥५६.३॥
स्वर रहित मन्त्र
यदुदीरत आजयो धृष्णवे धीयते धना। युक्ष्वा मदच्युता हरी कं हनः कं वसौ दधोऽस्माँ इन्द्र वसौ दधः ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । उत्ऽईरते । आजय: । धृष्णवे । धीयते । धना ॥ युक्ष्व । मदऽच्युता । हरी इति । कम् । हन: । कम् । वसौ । दध: । अस्मान् । इन्द्र । वसौ । दध: ॥५६.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 56; मन्त्र » 3
भाषार्थ -
(यद्) जब जीवन में (आजयः) देवासुर-संग्र्राम (उदीरते) उठते हैं, तब (धृष्णवे) असुरों का धर्षण अर्थात् पराभव करनेवाले के लिए, हे परमेश्वर! आप द्वारा (धना) आध्यात्मिक धन, अर्थात् आत्मिक बल (धीयते) स्थापित किया जाता है। (मदच्युता) जिनसे मद-मस्ती च्युत हो गई है, हट गई है, ऐसे (हरी) कर्मेन्द्रिय और ज्ञानेन्द्रियरूप अश्वों को आप (युक्ष्व) ही योगयुक्त करते हैं। हे परमेश्वर! आप (कम्) किसी व्यक्ति का तो हनन करते हैं, अर्थात् जन्म-मरण की परम्परा द्वारा उसे कष्ट भुगवाते हैं, और (कम्) किसी व्यक्ति को आप (वसौ) आध्यात्मिक-सम्पत् में (दधः) स्थापित करते हैं [यह सब उन-उनके कर्मानुसार है]। (इन्द्र) हे परमेश्वर! (अस्मान्) हम पाप धर्षकों को आप (वसौ) आध्यात्मिक-सम्पत् में (दधः) स्थापित कीजिए।